निमिष कुमार
एक जर्नलिस्ट के तौर पर आप ज़िंदगी में कई अहम घटनाओं के साक्षी बन जाते हैं। आज भी जब-जब भोपाल गैसकांड की खबर पढ़ता हूं, तो वो सारी घटनाएं, सारी बातें स्टेशन पर खड़े व्यक्ति के सामने गुजरती ट्रेन के समान आंखों के सामने आ जाती है।
दृश्य एक– 3 दिसंबर,1984 की सुबह..घर का दरवाजा घटघटाया जा रहा है। मालूम चलता है मेरी नई चाची अपने भाई के साथ आई हैं। चाय पर बातें होती है, पापा आदत के मुताबिक रेडियो पर सुबह की न्यूज़ लगा देते है, टीवी होते नहीं थे, और बुश का बड़ा-सा रेडियो कई सौ किलोमीटर दूर के शहर से खरीद के लाया गया था। न्यूज़ सुनकर चाची और मामाजी रेडियो से चिपक जाते है। मामाजी बताते हैं कि स्टेशन पर भी उन्हें किसी गैस की गंध तो आ रही थी। लोग भी बात कर रहे थे। मेरी छोटी चचेरी बहन होने वाली थी। यदि चाची उस दिन भोपाल से घर नहीं आ रही होती, तो मालूम नहीं क्या अनर्थ होता। आज मेरी वो प्यारी से बहन विदेश में है और अपने पति के साथ खुश है। लेकिन भोपाल के हजारों बच्चे जो उस गैसकांड के बाद जन्में उतने खुशनसीब नही हुए।
दृश्य दो– हायर सेकेंडरी स्कूल के दिनों में रात के खाने के बाद रोज की तरह मंदिर तक वॉक करने के लिए निकलता हूं। दो दिसंबर की ठंडी रात। मंदिर के पास इस्माइल भैया का घर है। वो भी रास्ते में मिल जाते है और बात होती। वो बताते है कि कैसे दो दिसंबर की काली रात के बाद के दिन उन्होंने भोपाल में बिताए। कितनी ही लाशों को केरोसीन डालकर जला दिया गया। इस्माइल भैया सुबकने लगते है। ‘या अल्लाह मेरा गुनाफ मुआफ करना, मैं नहीं जानता था कि वो हिंदू थे या मुसलमान, मेरे लिए तो वो खुदा के बदनसीब बंदे थे, बस।’ ..मैं इस्माइल भैया के कंधे पर हाथ रखता हूं और उन्हें दिलासा देने की कोशिश करता हूं। सोचता हूं एक दिन बड़ा होकर कुछ जरुर करुंगा, भोपाल गैसकांड के उन खुदा के बदनसीब बंदों के लिए।
दृश्य तीन– दिल्ली में नया खुला पांच सितारा होटल। एक बोर्ड रुम में प्रवेश करता हूं, सूटेडबूटेड। सामने तीन-चार विदेशी संपादक नुमा पत्रकार बैठे हैं, वो तब दुनिया में बीबीसी औऱ सीएनएन को टक्कर देने के लिए मुस्लिम देशोंं के पैसों पर खड़ा हो रहा दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा न्यूज़ नेटवर्क अल ज़जीरा का एडिटोरियल बोर्ड था। बातचीत शुरु होती है। और भोपाल का जिक्र आता है। फिर सारी बातें भोपाल के गैसकांड और उस पर एक्सक्लूसिव स्टोरीज़ की सीरिज़ को लेकर। अल ज़जीरा के साउथ एशिया ब्यूरो के लिए एक कारस्पोंडेंट के रुप में। भोपाल का गैसकांड फिर यादों में आ जाता है, ज़िंदगी का पहला बड़ा इंटरनेशनल न्यूज़ असाइनमेंट और वो भी भोपाल गैसकांड पर?
दृश्य चार– देश के सबसे बड़े अखबार का भोपाल स्थित हेडक्वार्टर। ग्रुप एडिटर से मीटिंग। वो जानना चाहते थे कि उनके टेबोलॉयड के सिटी चीफ के रुप मे भोपाल गैसकांड की 25वीं बरसी पर हम क्या करेंगें। भोपाल गैसकांड फिर यादों में। लेकिन इस बार मेरे पास कलम थी। माध्यम था। मैने अल-ज़जीरा से अब तक की तमाम बातों को एक चैलेंज के रुप में लिया और भोपाल शहर की गली-गली नापना शुरु किया। मैं उन लोगों से नही मिला जो टीवी पर दिखते या अखबारों में छपते आए थे। मैं उन लोगों से मिला जो वाकई में 25 सालों से जंग लड़ रहे थे, न्याय की जंग। पुराने भोपाल की तंग गलियों से होता हुआ मैं एक टूटे से घर में पहुंचा। खटिया पर लाचार से पड़े मुस्लिम बुजुर्ग से मिला। ‘आप 25 सालों में पहले हिंदुस्तानी खबरनवीस हो जो मुझसे मिलने आए हो, वरना अब तक तो सिर्फ गोरे ही आते रहे।’ ..मैं जानता था। मेरे किसी साथी ने ये जहमत नहीं उठाई थी. मुझे भी उस व्यक्ति के बारे में मेरे तमाम विदेशी पत्रकार साथियों ने ही मेल पर बताया था, फिर वो अमेरिकी थे या यूरोपीय। आखिरकार मेरा भोपाल गैसकांड को लेकर की हजारों स्टोरीज़ के बाद भी एक अबतक कवर नहीं हुई स्टोरी को करने का सपना पूरा हुआ। एक ऐसी स्टोरी, जो उन 25 साल में किसी भारतीय या विदेशी पत्रकार ने नहीं की थी। भोपाल गैसकांड फिर यादों में था।
दृश्य पांच– भोपाल गैसकांड की 25 वीं बरसी की उस स्टोरी के बाद शहर और वो अखबार छूटा। इंदौर पहुंचा एक अंग्रेजी अखबार का सिटी चीफ होकर। चुनाव का वक्त था। कलेक्टर-पुलिस अधिक्षक दोस्त बन गए थे। मालूम चला कि दोनों को मुझसे काम है, बहुत जरुरी। स्टेडियम पहुंचे,जहां मतगणना होने वाली थी। दोनों ने समस्या बताई। हल केवल आप ही, और आपको हमारी मदद करनी होगी। चुनाव परिवेक्षक रिटायर्ड आईएएस थे, जिनके दुनियाभर के नॉलेज से सुर से सुर, ताल से ताल मिलना आप ही कर सकते हैं, आप उन्हें संभालिए प्लीज, हम अपना काम संभालते हैं।..हम दोनों वीवीआईपी प्लेस पर बैठा दिए गए। बातें शुरु हुई, तो सिलसिला चल निकला। और फिर भोपाल गैसकांड एक बार फिर सामने था। मैं जिन शख्स से बात कर रहा था, वो थे भोपाल गैसकांड के वक्त के भोपाल कलेक्टर मोतीसिंह। कहा- मैंने तुम्हारी वो स्पेशल रिपोर्ट पढ़ी थी, वो तो हम लोग भी नहीं जानते थे…फिर उन्होंने ढेरों बातें शेयर की। जो किसी को ना बताई गई थी, ना मालूम चली। एंडरसन, तत्कालीन मुख्यमंत्री अर्जुनसिंह, वो और तत्कालीन एसपी।
आज फिर भोपाल गैसकांड आंखों के सामने है, सारी बातें, सारी यादें एक-एक कर सामने आ रही हैं। 30 साल…एक नरसंहार, जो औद्योगिक फायदे के लिए हुआ..ना सही जांच हुई, ना सही न्याय…इस्माइल भैया सही कहते थे- वो सारे शायद खुदा के बदनसीब बंदे थे….आमीन्