अरविंद शेष
एक गुदगुदा देने वाला मजेदार चुटकुला-
“राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ एक सांस्कृतिक संगठन है और राजनीति में इसका कोई हस्तक्षेप नहीं है…!”
यह चुटकुला नया नहीं है, लेकिन वाजपेयी-आडवाणी से चलते हुए यह मोदी-शाह-खट्टर-बत्रा वगैरह के अलावा सरकारी संस्थानों तक के शीर्ष पदों के सर्वेसर्वा बनाए जाने के बावजूद जब वे “साधु-भाव” से बोलते हैं कि “आरएसएस एक सांस्कृतिक संगठन है और इसका राजनीति से कोई लेना-देना नहीं है” तो और ज्यादा मजा आने लगता है..! दरअसल, वे जानते हैं कि ये वही महान हिंदू समाज है, जिसे राजनीति को संस्कृति से अलग बता कर गधा बनाया जा सकता है! इनके हिसाब से संस्कृति माने खाली गाना-बजाना-नाचना, व्रत-त्योहार, पूजा-पाठ, सांस्कृतिक वर्चस्व के लिए किसी भी तरह का “यज्ञ” (2002 टाइप!), बियाह-शादी आदि है..!
राज-काज की राजनीति तो छोड़िए, वे हर वक्त इस पर परदा डालने की जुगत में रहते हैं कि जाति-व्यवस्था के सबसे मुख्य और सड़ांध के साथ-साथ (इनकी) संस्कृति के ही नाम से जो-जो होता है, वह कैसे राजनीति है..! और संस्कृति के दायरे में राजनीतिक गतिविधियां आती हैं या नहीं…! हालांकि वे अपने स्तर पर इसे खूब निभाते है! वे आपको बेवकूफ बनाने के लिए हर बार कहेंगे कि “आरएसएस एक सांस्कृतिक संगठन है और राजनीति से इसका कोई लेना-देना नहीं है”, लेकिन उनकी अपनी राजनीतिक शाखा भाजपा की जिंदगी “आरएसएस निर्देशित” ही होनी चाहिए और अब सरकारी संस्थानों से लेकर मुख्यमंत्री या प्रधानमंत्री पद भी चाहिए…!
…यह ध्यान रखिए… कि यह उनकी संस्कृति की सियासत है, सांस्कृतिक रूदाली नहीं…! सांस्कृतिक ठगी की राजनीति ही उनके लिए “संस्कृति” है..! इसलिए यह एक मजेदार चुटकुला नहीं, पाखंड और धूर्तता की राजनीति है… ख़ालिस राजनीति…!!!