ये नरेंद्र मोदी का बनारस है और अखिलेश यादव की पुलिस।

नवीन कुमारपत्रकार,न्यूज24

जिस घोटाले की आंच ने यूपीए को चुनाव में ख़ाक कर दिया वो अब एक फूहड़ मज़ाक में बदलकर रह गया है। प्रशांत भूषण के वकीलों और सीबीआई के वकीलों के बीच सुप्रीम कोर्ट में साढ़े चार घंटे तक तीखी बहस चली। इस बहस से कुछ निकला हो या नहीं लेकिन ये बेनकाब हो गया कि सीबीआई एक सड़ चुकी संस्था है जिसे सच की कोई परवाह नहीं। ये यहीं हो सकता है कि सरकारी वकील कहे कि जांच के सबसे बड़े सूरमा ऐसी अर्जी लगाने वाले थे जो 2जी केस की पूरी प्रक्रिया को ही उलट-पुलटकर रख देता। और ये भी यहीं हो सकता है कि इतना कूड़ा होने के बाद भी ऐसे अफसर न हटें और न हटाए जाएं। ..

..कितना शक्तिशाली शब्द लगता है। आईपीएस। इंडियन पुलिस सर्विस। लेकिन अब तो डर लगता है। एसपी फिरौती दिलवाए, सारी तैयारियों के बावजूद फिरौती लेकर भाग जाने दे और दो दिन बाद मुंह उठाकर जली हुई लाश पंचनामे के लिए उठाने पहुंच जाए तो सिर्फ डर नहीं लगता, नफरत भी होती है। पांच दिन का मौका था पुलिस के पास नितिन को बचाने का। लेकिन इन पांच दिनों में उसने सिर्फ नितिन की मौत का इंतज़ार किया है। फिरौती का थैला पहुंचाने वाली पुलिस से ज़िंदगी की उम्मीद बेकार थी। ..

..ये नरेंद्र मोदी का बनारस है और अखिलेश यादव की पुलिस। और ये लाठियां लोकतंत्र मांगने के कसूर में। जिन मदन मोहन मालवीय की मूर्ति पर माला चढ़ाकर मोदी ने बनारस के चुनाव अभियान की शुरूआत की थी उन्ही मालवीय की मूर्ति के सामने उनके बनाए विश्वविद्यालय के छात्रों को दौड़ा-दौड़ाकर पीटा गया। लोकतंत्र का झंडा उठाने के जुर्म में छात्रों पर गोली भी चलाई गई। चुनाव हारने के बावजूद मंत्री बनने वाली स्मृति ईरानी को छात्रों का चुनाव मंजूर नहीं हुआ। वो लौट गईं। और पीछे छोड़ गईं एक वाजिब लोकतंत्र की मांग करते छात्रों पर लाठी फटकारती पुलिस और उनके चरित्र प्रमाण-पत्र पर शांति भंग करने की दफाएं।..

..रेत से लदा हुआ ट्रक उत्तर प्रदेश और मध्यप्रदेश को जोड़ने वाले इस पुल से गुजर रहा था। ट्रक पुल के बीच में पहुंचा ही था कि वो आगे बढ़ने की बजाए पीछे की तरफ खिसने लगा। ड्राइवर डगमग डमगम। और जबतक वो क्रिया के बराबर और विपरीत प्रतिक्रिया का रहस्य समझ पाता उसका पिछला हिस्सा नदी में घुस चुका था और अगला मंगल की ओर उड़ने को तैयार। जैसे ये पुल टूटा वैसे तो तारे भी नहीं टूटते। अब ये भारतीय निर्माण इंजीनियरिंग की महान कलाकृति की तरह आसमान की ओर शान से सिर उठाए खड़ा है। बोले तो मेक इन इंडिया। वो तो अच्छा हुआ कि ट्रक पुल के अंदर चला गया। रफ्तार तेज़ होती तो मंगल ग्रह की तरफ निकल गया होता। जरा सोचिए इसपर बुलेट ट्रेन दौड़ रही होती तो कहां निकल गई होती। ..

(न्यूज़ 24 की रिपोर्टों का हिस्सा – स्रोत-एफबी)

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