दिलीप मंडल,वरिष्ठ पत्रकार –
मुसलमानों को तलाक़ और खुला के बारे में मत सिखाइए। जो सुधार करना होगा, वे कर लेंगे। अपना घर संभालिए। शादी के वक़्त लड़की की रज़ामंदी पूछने का साहस जिस समाज में न हो, वह दूसरों को विवाह और नैतिकता के उपदेश दे, यह अच्छी बात नहीं है।
पुरूषों के लिए तलाक़ और महिलाओं के लिए खुला यानी विवाह के कानूनसम्मत अंत के बारे में दुनिया ने मुसलमानों से सीखा है।विवाह जब न चल पाए तो अलग हो जाना ही बेहतर है, यह विचार दुनिया को इस्लाम की देन है।
कैथलिक ईसाई और हिंदू धर्म में विवाह एक धार्मिक पवित्र बंधन है,जिसे हर हाल में निभाया जाना है। इनमें अब जाकर सुधार आया और तलाक़ का प्रावधान जोड़ा गया। वैटिकन में आज भी तलाक़ मुमकिन नहीं है। फ़िलीपींस में मुसलमानों के अलावा और किसी को तलाक़ नहीं मिल सकता।
बाबा साहेब के लिखे हिंदू कोड बिल में पहली बार हिंदुओं को तलाक़ का अधिकार देने की कोशिश गई।हिंदू मैरिज एक्ट 1955 से पहले हिंदू अपनी शादी नहीं तोड़ सकते थे।पारसी मैरिज और डिवोर्स एक्ट 1936 में बना।भारतीय ईसाइयों को यह अधिकार 1869 में मिला।
मुसलमानों को यह अधिकार इस्लाम के आने के साथ ही मिल चुका था। समस्याएँ होंगी। लेकिन बाहर से आपके कोंचने से कुछ नहीं होगा। तलाकशुदा महिलाओं के बारे में जिन सुधारों की ज़रूरत है, वह मुसलमान कर लेंगे। उनकी मदद कीजिए।
मुसलमानों की सबसे बड़ी समस्या अशिक्षा है। बुरा हाल है। हो सके तो सरकार को उनके लिए गर्ल्स स्कूल खोलने चाहिए। लड़कियों को स्कॉलरशिप देनी चाहिए।बशर्ते नीयत में ईमानदारी हो।वैसे भी, आपके पास इतना ज्ञान और अनुभव नहीं है कि आप मुसलमानों को विवाह करने और तोड़ने के बारे में बताएँ।
हिंदुओं में तो अभी अभी तक विधवाओं को जला देने का चलन था। विधवा विवाह भी नई चीज़ है। बिना तलाक़ छोड़ देना बहुत ज़्यादा है। गर्भ में बेटियों को मारने का चलन ज़्यादा है।जेंडर रेशियो मुसलमानों से बुरा है। दहेज हत्याएँ हैं। अपना घर संभालिए।
अगर पढ़ना-लिखना आता है तो सरकारी वेबसाइट पर जाइए और भारत की जनगणना, 2011 के आँकड़े देखिए।
तलाकशुदा हिंदू महिलाएँ = 3.44 लाख
तलाकशुदा मुसलमान महिलाएँ = 57 हज़ार
अब लाइए गालियाँ, क्योंकि वह आपका धर्म है।
मुसलमानों में आबादी के हिसाब से तलाक़ का प्रतिशत ज़्यादा है। लेकिन इतना भी नहीं कि आप तलाक़ को मुसलमानों की समस्या बता दें।
हिंदुओं के अंदर तलाक़ कम है लेकिन बिना तलाक़ छोड़ देने का प्रतिशत ज़्यादा है और मुसलमानों में तलाक़ ज़्यादा है और यूँ ही छोड़ देना कम। भारत में 68% तलाक़शुदा लोग हिंदू है। आबादी के हिसाब से मुसलमानों में तलाक़ का प्रतिशत ज़्यादा है। हर समुदाय में तलाक़ की मार औरतों पर ज़्यादा है क्योंकि पुरुषों की अक्सर दोबारा शादी हो जाती है।इसलिए हर चार तलाकशुदा मुसलमानों में तीन महिलाएँ हैं। सभी धर्मों का मिलता जुलता हाल है।सबसे भले हैं सिख परिवार।भारत की जनगणना 2011 के विवाह, सेपरेशन और तलाक़ के धर्मगत आँकड़े देखने से मिला ज्ञान।सेंसस की सरकारी साइट आपको भी देखनी चाहिए। वरना कोई भी कुछ कहकर निकल लेता है।
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