न्यूज चैनल की शक्ल में जिस दिन ये खुलासा होगा, वो महाएपीसोड होगा और विज्ञापनों से राष्ट्रीय समाचारपत्र रंग दिए जाएंगे लेकिन अब तक के प्रसारित एपीसोड में आपको अक्सर लगेगा कि या तो आप सीरियल भीतर डी ग्रेड का सिनेमा या फिर कॉमेडी सर्कस के सस्ते से चुटकुले देख-सुन रहे हैं. बस ये है कि अर्चना पूरन सिंह या नवजोत जैसी आपने आदत विकसित नहीं की है कि हंस सकें. वैसे अगर सीरियल के भीतर सिनेमा ही होना था तो इससे कई गुना बेहतर इसी चैनल पर “मधुबाला” पहले से है. टेलीविजन होना था तो “ससुराल सिमर का” पहले से है. ये ठीक बात है कि अगर सीरियल का मुख्य चरित्र ही सिनेमा की दुनिया में जाना चाहता है तो आसपास की दुनिया तो फिल्मी होगी ही..लेकिन आखिर दर्शक भी सालों से वही पुराने- आज खुश तो बहुत होगे तुम जैसे डायलॉग सिनेमा तो सिनेमा, सीरियल में भी ढोता रहेगा. एक तो इन सीरियलों पर प्रोमोशन की इतनी मार पड़ी है कि चाहे कोई भी देखो, सब चेन्नई एक्सप्रेस ही हो गया है. उधर कॉमेडी सर्कस से होड़ लेने में जिन नए फिल्मों के संदर्भ शामिल कर रहा है, वो मालिकविहीन थाली-लोटे की तरह इधर-उधर ढनमनाकर रह जा रहा है. आप कह सकते हैं इस सीरियल में सिनेमा की भारी बर्बादी हो रही है.
कामिनी फौजदार बनी “उषा नदकरनी” जीटीवी पर सविता दामोदर देशमुख का किरदार इतनी इमानदारी से जीती आयी है कि उसके स्क्रीन पर आते ही लगेगा आप कलर्स पर मिसेज पम्मी प्यारेलाल नहीं, जीटीवी पर पवित्र रिश्ता देख रहे हों. वो पुरानी होकर भी टाइप्ड हो चली हैं. कुल मिलाकर देखें तो एक ही सीरियल या शो में टीवी के सारे जार्गन की किराना दूकान खोलने की जो कवायदें तेज हुई है, ये सीरियल उसका बुरा तरह शिकार है और आप देखते हुए अक्सर कहें- तो फिर कोई ये क्यों देखे, वो क्यों न देखे ?
स्टार- डेढ़
समय : 7.00- 7.30 शाम
(मूलतः तहलका में प्रकाशित)