तीन दिन पहले जेएनयू,नई दिल्ली के बीए थर्ड इयर के एक छात्र ने अपनी ही क्लासमेट पर कुल्हाडी और कट्टे से वार करने उसकी हत्या करने की कोशिश की और लड़की अस्पताल में जिंदगी और मौत से जूझ रही है. इधर लड़के में इतनी भी साहस नहीं बची थी और इतना बड़ा कायर निकला कि वो अपनी वार से तड़पती हुई लड़की को देख सके, उसकी मौत का जश्न मना सके इससे पहले ही जहर खाकर इस दुनिया से कट लिया. दैनिक भास्कर की वेबसाइट ने अपनी ट्रैफिक हिट्स बढ़ाने के लिए इस पूरी खबर को पोर्न फ्लेवर देने की नियत से खबर का शीर्षक दिया-
“बदले के लिए करना चाहता था मर्डरःसेक्स तक कर चुकी थी गर्लफ्रेंड, पर बाद में उड़ाने लगी मजाक”
वर्चुअल स्पेस पर हमारे कुछ वरिष्ठ पत्रकार आए दिन व्याकरणिक दोष खोजने और उसके दुरुस्त होने की स्थिति में ही पत्रकारिता के स्वर्णकाल आगमन के संकेत देखते हैं, उन्हें इस वाक्य में शायद कोई व्याकरणिक दोष न दिखे लेकिन क्या इस शुद्ध वाक्य से पत्रकारिता बची रह जाती है ? क्या इस वाक्य के साथ ये सवाल लगातार नहीं उठाए जाने चाहिए कि हम पत्रकारिता के नाम पर क्या बचाना चाहते हैं ?
आत्महत्या कर चुके लड़के और जिंदगी-मौत से जूझ रही लड़की के बीच किस तरह के संबंध रहे हैं, उनके बीच आपसी व्यवहार को लेकर किस तरह की पेंचीदगियां रही है, ये बात अभी तक साफ नहीं हो पायी है..ऐसे में जाहिर है कि दैनिक भास्कर को किसी भी स्तर पर जजमेंटल होने की जरुरत सिर्फ और सिर्फ इस खबर को लंफगाछाप पोर्न स्टोरी में तब्दील करने के अलावे कुछ नहीं रही होगी. लेकिन इससे भी बड़ा सवाल है कि क्या देश के सबसे बड़े अखबार समूहों में से एक माने जानेवाले इस अखबार की वेबसाइट पर अगर स्त्री और पुरुष के बीच के संबंध को अभिव्यक्त करने की जरुरत पड़ती है तो उसकी यही भाषा होगी ? हमारे कुछ साथी इस शीर्षक पर आपत्ति दर्ज करके इसका विरोध कर रहे हैं जो कि जायज है लेकिन भारतीय प्रेस परिषद् को चाहिए कि इसके संपादक/मॉडरेटर के आगे अन्तर्वासना डॉट कॉम की कोई एक स्टोरी सामने रखे और तब पूछे कि इस पोर्न वेबसाइट से किस स्तर पर आपकी वेबसाइट अलग है और अगर नहीं है तो आपको लोकतंत्र का चौथा खंभा चलाने की लाइसेंस क्यों दी जाए और आप पर क्यों न कानूनी कार्रवाई हो ? ये सवाल किसी भी हद तक जाकर सेल्फ रेगुलेशन और मीडिया एथिक्स में ले जाकर बात करने की नहीं है..ये बात पूरी तरह एक न्यूज वेबसाइट के भीतर पोर्न वेबसाइट चलाने की रिवन्यू मॉडल, मानसिकता, व्यवहार और ऑपरेशनल एटीट्यूड का है. दैनिक भास्कर से फेसबुक पर कई लोग सवाल कर रहे हैं कि ऐसा लिखने के पहले क्या उसने सोचा कि उस लड़की के साथ आगे समाज क्या करेगा ? ये बेहद की संवेदनशील समाज होने के बजाय गलत मीडिया समूह से पूछा जा रहा है क्योंकि पोर्न साइट चलानेवाले के आगे इस तरह के सवाल उनके लिए सिर्फ अट्टाहास का हिस्सा बनकर रह जाता है. आप किसी भी पोर्न वेबसाइट पर जाते हैं तो वहां उन संबंधों के साथ भी शारीरिक संबंध की स्टोरी और वीडियो होती है जो कि सामाजिक रुप से,नैतिक रुप से और नागरिक समाज के हिसाब से घोर आपत्तिजनक है लेकिन इनके मॉडरेटर से ऐसे सवाल नहीं किए जा सकते. इन्हें सिर्फ और सिर्फ कानूनी स्तर पर सख्ती से निबटाया जा सकता है.
फिर ऐसा भी नहीं है कि दैनिक भास्कर डॉट कॉम ने इस तरह की घटिया हरकत कोई पहली बार की है. इस शीर्षक से तो आप सहज रुप से समझ ही रहे हैं कि मालिक की बढ़त के लिए पत्रकार की कुर्सी पर बैठा व्यक्ति दिमागी रुप से कितना सड़ चुका है, इससे पहले भी वो लगातार इस तरह का काम करता आया है और अगर चित्रों के साथ के कैप्शन को शामिल कर लें तो ये उसकी रुटीन का हिस्सा है.
2 फरवरी 2010 को इस वेबसाइट ने ऐसी ही खबर की थी. वेबसाइट के मुताबिक मुताबिक खबर थी कि- एक बर्थडे पार्टी में जाते समय एमी ने ऐसी ड्रेस पहनी कि बस देखने वाले फटी आंखों से देखते रह गए। अखबार की साइट ने इसके लिए शीर्षक दिया- फिर छलका एमी का ‘यौवन’। यौवन का सिंग्ल इन्वर्टेड कॉमा में रखा गया जिसे कि तस्वरे देखकर आप समझ जाएंगे कि ऐसा क्यों हैं? अखबार के लिहाज से ये शब्द एमी की अवस्था को बताने के लिए नहीं बल्कि उसके उभार को बताने के लिए है। आगे खुद साइट ही इसकी पुष्टि करता है- सेक्सी सिंगर एमी ने अपनी वार्ड रोब से ऐसी ड्रेस निकाली जिसने एक कंधे को नग्न ही छोड़ दिया था। अब इस ड्रेस से एमी के स्तन कैसे बाहर न छलक पड़ते तस्वीर देखकर ये अंदाज तो लगाया ही जा सकता है।
पोस्ट लिखने के कुछ ही घंटे बाद इस स्टोरी की लिंक हटा दी गई और दो-चार दिन बाद ही दैनिक भास्कर भोपाल से हमे फोन किया गया जिसमे लंबी बातचीत के दौरान हमसे वेबसाइट को बेहतर और साफ-सुथरा बनाने के लिए राय मांगी जा रही थी लेकिन बात करते वक्त ही हमें अंदाजा हो गया था कि ये मेरी लिखी पोस्ट को इगो सटिस्फाय करने का मामला मान रहे हैं और जिसे की बातचीत करके संतुष्ट किया जा सकता है. उसके बाद ये वेबसाइट गंभीर मुद्दे और तस्वीर के नाम पर लगातार इस तरह की हरकत करता रहा है.
वेबसाइट ने चित्र में उभार के हिस्से पर लाल रंग का बड़ा सा दिल बनाया और इस स्टोरी के साथ “फिर छलका एमी का यौवन” कैप्शन लगाकर अपलोड कर दिया. तब इसके विरोध में इसी तरह से वर्चुअल स्पेस और सोशल मीडिया के लोग सक्रिय हुए थे. जाहिर है इसने ये सब किसी पत्रकारीय चूक के तहत नहीं बल्कि बाकायदा उस घटिया बिजनेस स्ट्रैटजी के तहत किया था और आगे भी करता रहा. अंदरखाने की खबर तो ये भी है कि बाकी के प्रतिस्पर्धी वेबसाइट दैनिक भास्कर की इस वेबसाइट को अपना आदर्श मानते हैं जिसकी झलक नवभारत टाइम्स की वेबसाइट में मिलती रहती है. हिट्स के हिसाब से बिजनेस मिलने की दुष्टता से इन वेबसाइटों के भीतर पोर्न वेबसाइट का ऐसा बिजनेस मॉडल पनप रहा है जो न्यूज वेबसाइट की आड़ में अपना धंधा चमका रहा है. कायदे से अगर इन वेबसाइटों को लेकर रिसर्च किए जाएं तो संभव है कि ये नतीजे सामने आएं कि जो लोग पोर्न वेबसाइट पर अपना समय बिताते आए हैं, वो अब इन्हें रेगुलर विजिट करते हैं. इसका मतलब है कि ये न्यूज वेबसाइट पोर्न वेबसाइट देखने की इच्छा रखनेवाली ट्रैफिक को अपनी तरफ खींचने का काम कर रही है और जब मामला फंसता है तो उसे बड़ी खूबसूरती से चूक बताकर निकल जाते हैं. लेकिन