टीवी पर सांस्कृतिक ख़बरों की जगह दादागिरी की ख़बरें !

जगदीश्वर चतुर्वेदी

मीडिया से सांस्कृतिक कॉलम गायब हैं । टेलीविजन में सांस्कृतिक खबरों के लिए कोई जगह नहीं है । मसलन् लखनऊ में किसी गुण्डे की दादागिरी की खबर का टीवी पर कवरेज सहज ही देख सकते हैं लेकिन प्रगतिशील लेखक संघ या अन्य किसी सांस्कृतिक संगठन की खबर का कवरेज नहीं मिलेगा । यही हाल साहित्यिक पत्रिकाओं का है वहां पर भी सांस्कृतिक कॉलम नदारत हैं, कुछ पत्रिकाएं संक्षिप्त सांस्कृतिक खबरें जरुर दे देती हैं।

मीडिया में अब लाइफस्टायल के कॉलम नियमित आने लगे हैं । सनसनीखेज खबरें छाई हुई हैं । कहने का अर्थ है कि सांस्कृतिक न्यूज और कॉलम खत्म कर दिए गए हैं।

इसी तरह साहित्य समीक्षा या आलोचना अब गौण हो गयी है ।इसकी जगह परिचयात्मक पुस्तक समीक्षा ने ले ली है । हमारे ज्ञानी -गुणी लोग इस तरह का अन्याय क्यों कर रहे हैं ? क्या सांस्कृतिक कॉलम और साहित्यालोचना को अपदस्थ करके सांस्कृतिकचेतना का विकास संभव है ?

सुबोध खंडेलवाल

राष्ट्रीय परिदृश्य वाले न्यूज़ चैनल्स पर साहित्य और संस्कृति के लिए कोई जगह नहीं है. इन सारे चैनल्स पर कौनसे और किस तरह के समाचार दिखाए जाएंगे इसका निर्धारण संस्कृति और सुरुचि या गुणवत्ता के आधार पर नहीं बल्कि TRP की साप्ताहिक रिपोर्ट के आधार पर होता है. TRP की रिपोर्ट ये बताती है कि किस तरह के समाचार को दर्शकों ने ज़्यादा देर तक देखा.

संपादकों के लिए TRP की रिपोर्ट उस गाइड की तरह से हो गयी है जिसमें से सारे प्रश्न पूछने का इशारा मास्टर साहब ने कर दिया है तो अब वो कोई और किताब क्यों देखे ? अब वो ये चिंता नहीं करते कि कि समाज की रूचि को परिष्कृत करना उनकी जवाबदारी है. अब वो सिर्फ ये देखते है कि राखी सावाब्त या सनी लियोन के समाचार को ज़्यादा लोगों ने देखा है तो ऐसे ही समाचार दिखाए जाए ताकि और ज़्यादा लोग देखे और विज्ञापनदाताओं से ज़्यादा कीमत वसूली जा सके जिससे सबकी तनख्वाह टाइम पर मिलती रहे.

अरुण चवाई जी न्यूज़ रूम में जन चेतना जैसा शब्द भी प्रयोग नहीं होता इसके बारे में सोचना तो दूर की बात है. इसका उपयोग बड़े-बड़े पत्रकार फेसबुक पर या सेमिनार में करते है न्यूज़ में नहीं मगर इसका दूसरा पहलू भी है उन संपादकों पर न्यूज़ चैनल के मोटे खर्चे निकालने की जवाबदारी भी रहती है इसलिए किसी सम्पादक के लिए साहित्य या संस्कृति पर किसी समाचार को प्रसारित करना या इस तरह के समाचार लगातार प्रसारित करना बहुत बड़ी जोखिम लेने जैसा है.जोखिम इस बात की कि यदि इन समाचारों को TRP नहीं मिली तो मालिक को क्या जवाब दिया जाएगा ?

मीडिया इंडस्ट्री में सबका भविष्य अनिश्चित है ऐसे में इस तरह की जोखिम लेने की जोखिम लेना किसी के लिए आसान नहीं है,चाहे वो कितना ही बड़ा हो.

(स्रोत-एफबी)

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