रमेश यादव
पूँजीगत आस्था, भगवाननुमा भक्ति और राजसत्ता की श्रद्धा में आकंठ तक डूबी टेलिविॹन और प्रिंट मीडिया को इन दिनों डौंडिया खेड़ा (उन्नाव) के अलावा कुछ दिखायी नहीं दे रहा है.बिड़ला के बचाव में घुटने पर झुकी केन्द्र सरकार पर मीडिया को शंका नहीं होती.भारत से लूट कर स्विट्ज़रलैंड में रखे गये काले धन पर मीडिया में मरघट का सन्नाटा छाया हुआ है.
कोल ब्लाक से लेकर CWG घपले-घोटाले पर मीडिया रतौंधी की शिकार है.राजतंत्र के ख़ात्मे और लोकतंत्र की स्थापना के बावजूद उदयपुर सहित राजस्थान के सर्वाधिक राजाओं के क़िलों और अकूत संपत्तियाँ को सरकार द्वारा अधिग्रहण न करना, उसे अनियंत्रित कारोबार और धंधों के लिए उन परिवारों पर छोड़ देने के मामले पर मीडिया दिनौनी की शिकार है क्यों…?
इस तरह के राष्ट्रीय संपत्तियों से जनता को अवगत कराना,सरकार और राजपरिवारों के आपसी साँठगाँठ का ख़ुलासा करने से मीडिया अब तक बचता क्यों रहा है…? किसकी दबाव में सही सूचनाओं को दबा रहा है…?
21 सदी में जब आज का समाज अधिक वैज्ञानिक,आधुनिक ज्ञान-विज्ञान से प्रभावित हो रहा है,ऐसे में एक बाबा के सपने पर क़िले की खुदाई,उसी बाबा के मंत्रोच्चारण और भूमि-पूजन की थाप पर उन्नाव के ज़िलाधिकारी को पहला फरसा चलाते हुए प्रसारित-प्रकाशित करना मीडिया के किस वैज्ञानिक सोच को उजागर करता है…?
आधुनिक सुख-सुविधाओं में रह कर ज़िले को चलाने वाला ज़िलाधिकारी किस आस्था की मज़बूरी में फावड़ा चलाया,इसका विश्लेषण कौन करेगा..? एक केन्द्रीय मंत्री का शोभन सरकार के पास जाना,उसके सपने पर सरकारी निर्णय लेने का पड़ताल कौन करेगा…?
मीडिया ख़ुद को चौथा खंभा होने का दावा करता है.मात्र इसीलिए न कि सामाज के प्रति उसकी जवाबदेही है,ज़िम्मेवारी और प्रतिबद्धता है.उसके अपने नैतिक उसूल हैं. सिद्धांत और आदर्श हैं.यदि यह थोड़ा-बहुत भी सच है तो फिर मीडिया को वैज्ञानिक रास्ते पर चलने में क्या कष्ट है…?
टेलीविजन और प्रिंट मीडिया को निम्नलिखित बातों की भी खुदाई करनी चाहिए कि केन्द्रीय मंत्री चरण दास महंत,शोभन सरकार के पास क्यों गये थे…? चरण दास,शोभन सरकार के पास सरकारी खर्चे से गये थे या व्यक्तिगत …? इस दौरे पर कुल कितना धन ख़र्च हुआ…? इसका भुगतान कौन और किस मद से किया? महंत के साथ और कौन-कौन गया था …?
महंत अब तक शोभन सरकार से कितनी बार मिल चुके हैं.इसका वाजिब कारण क्या रहे हैं…? यदि शोभन सरकार से मिलना,महंत की व्यक्तिगत आस्था थी,तो इस पर सरकारी धन क्यों ख़र्च किया गया …?
बताया जा रहा है कि शोभन सरकार से मिलने के बाद़,महंत,कांग्रेस अध्यक्ष से मिले थे.दोनों में आपसी चर्चा के बाद ही खुदाई का निर्णय लिया गया…यदि यह सच है तो क्या कांग्रेस अध्यक्ष को महंत के ,शोभन में अंध आस्था की जानकारी थी…? उन्नाव के ज़िलाधिकारी किसके आदेश पर खुदाई के लिए पहल किये…? शोभन सरकार अभी तक कुल कितने सपने देखें हैं,जितने देखें हैं,उनमें कितने सच निकले हैं…?
यदि हाँ तो अब तक उनके सपने की खुदाई से क्या-क्या मिला है…? अौर नहीं तो शोभन के सपने के आधार पर सरकार इतना बड़ा फ़ैसला ,इतनी जल्दबाज़ी में क्यों अौर किस लिए ली है …? क्या यह सारा फ़ैसला मीडिया का ध्यान भटकाने के लिए किया गया है..?
यह सर्वविदित है कि राजाअों ने जनता को लूट कर धन अर्जित किया था अौर उस ज़माने में हीरे,सोना,चाँदी,रूपये-पैसे ज़मीन में गाड़ने की परिपाटी थी. इस हिसाब से तो हर क़िले की खुदाई में कुछ न कुछ निकलेगा फिर सभी क़िलों का अधिग्रहण कर खुदाई कराने से सरकार क्यों पीछे हट रही है…?
चोंचलेबाज विश्लेषक आकलन कर रहे हैं कि डौंडिया खेड़ा की खुदाई से निकलने वाले सोने से देश की लुढ़कती अर्थव्यवस्था को उठाया जा सकेगा.महँगाई क़ाबू में आ जायेगी.डालर के मुक़ाबले,रूपया मज़बूत होगा.जहाँ क़िला है,उसकी खुदाई से निकलने वाला धन-संपदा से स्थानीय लोगों और संबंधित राज्य की अर्थव्यवस्था उठ खड़ी होगी.लोगों को रोज़गार मिलेगा.प्रत्येक घर से एक आदमी को सरकारी नौकरी मिल जायेगी आदि-इत्यादि…
आश्चर्य :
राज्य सरकार कह रही है कि खुदाई में जो निकलेगा,उस पर राज्य सरकार का हक़ होगा. उक्त धन से क्षेत्र अौर राज्य का विकास होगा.भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण की बदौलत केन्द्र अपना दावा ठोक रहा है.
ताज्जुब होता है कि “ट्रोजर ट्रोव एक्ट 1878 के अनुसार यदि किसी स्थान पर ज़मीन के एक फूट नीचे तक अचानक ख़ज़ाना मिलता है तो, उस पर पहला हक़ भूमि मालिक अौर ज़िलाधिकारी का होगा..,”
यहाँ गंभीर सवाल यह उठता है कि आज़ादी के 67 साल बाद भी क्या एक बार भी सरकार को ‘1878 ट्रोजर ट्रोव एक्ट’ बदलने की ज़रूरत नहीं महसूस हुई …क्यों ?
जैसा कि कहा जा रहा है,यह खुदाई एक महीने से अधिक चलेगी.मतलब नवम्बर बीत जायेगा.दिसम्बर आ जायेगा. इन्हीं दो महीन में दिल्ली,मध्य प्रदेश,राजस्थान और छत्तीसगढ़ सहित कुल पाँच राज्यों में चुनाव भी होंगे. खुदाई स्थल से रोज़ एकाध चीज़ निकलती रहेगी.जहां मीडिया के फ़्लैश चमकेंगे,जनता वहीं देखेगी.
मतलब लोग टुकुर-टुकुर टीवी देखेंगे.विज्ञापनो के बीच खुदाई की ख़बर ढूँढेंगे.इसी में फँसे रहेंगे,तब तक वोट पड़ जायेगा.सरकार किसकी बनेगी,यह बात की बात है.
उक्त राज्यों के सरकारों से की जन विरोधी नीतियों से हताश-निराश लोग उन्नाव में नज़र गड़ाये रहेंगे.
डौंडिया खेड़ा की तरफ पूरा देश देखे,इसके लिए टीवी मीडिया और प्रिंट मीडिया को मोटे-मोट- विज्ञापन दिया जायेंगे,पेड़ न्यूज़ छपेगा..
इस मामले में सरकार और मीडिया मालिकानों की बहुत बड़ी साज़िश की बू आती है..
दिनौनी और रतौंधी का शिकार मीडिया इस पक्ष की भी खुदाई करे.देखिए फिर क्या-क्या निकलता-मिलता है…?
किसको उल्लू बना रहे हो लाला ?
(लेखक मीडिया शिक्षण से जुडे हैं)