रिपोर्टर की हत्या होते ही वह स्ट्रिंगर बन जाता है

साहू शिवनंदन

जब कोई पत्रकार चैनल पर खास खबर भेजता है…उस खबर को ब्रेकिंग न्‍यूज, एक्‍सक्‍लूसि‍व, बडी खबर, सबसे पहले और न जाने क्‍या क्‍या कह कर टीआरपी बटोर ली जाती है…पत्रकार का फोने भी चलता है…स्‍क्रीन पर लि‍खा आता है कि‍ फला संवाददाता…

लेकि‍न जब उसी पत्रकार की हत्‍या कर दी जाती है…खबर कवरेज के दौरान…तो उसका संस्‍थान उसे स्‍ट्रींगर लि‍खकर खबर चलाता है…संस्‍थान का कोई बडा अधि‍कारी सामने आकर सरकार से नहीं पूछता है कि‍ उसके पत्रकार को क्‍यों और कैसे मारा गया…कोई नि‍न्‍दा कोई शोक नहीं…

लेकि‍न जब उसी चैनल के एक पत्रकार को आशाराम के समर्थक मारते हैं मींडि‍या में भूचाल आ जाता है…बडे बडे चैनल खबर चलाते हैं कि‍ फला संस्‍थान का रि‍पोर्टर के साथ मार-पीट…यही नहीं एडीटर इन चीफ का भी इन्‍टरव्‍यू चलने लगता है…बीईए की ओर से नि‍न्‍दा होने लगती है…

केवल इसलि‍ए कि‍ वह पत्रकार स्‍टाफर था…स्‍टाफर को कुछ थप्‍पड लगे कैमरा तोडा गया तो खबर…कि‍सी जि‍ले के संवाददाता की हत्‍या हो जाय तो स्‍ट्रींगर में समेट दो…यह अन्‍याय है…मीडि‍या में स्‍ट्रींगर शब्‍द पर रोक लगना चाहि‍ए…क्‍या नहीं लगना चहि‍ए …एक बार देखि‍ए तो सही स्‍ट्रींगर क्‍या होता है फि‍र दीजि‍ए अपनी राय।

(साहू शिवनंदन के एफबी वॉल से)

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