ओम थानवी,संपादक,जनसत्ता
जे बात!?
रिपोर्टर मोहतरमा का गुस्सा जायज है, बलात्कारी दरिंदे को कड़ी से कड़ी, बड़ी से बड़ी सजा मिलनी चाहिए। पर पत्रकार के हाथ में कलम या माइक हो तब जोश में होश भी कायम रहना चाहिए। अति से दूर अभिव्यक्ति और असरदार होती है। गीता का सन्देश इस संदर्भ में बड़ा मौजूं है: दुख में इतना दुखी न हो कि आपा खो जाय और ख़ुशी में ज्यादा कूद मत! (अनुवाद नहीं, भावार्थ है) …
प्रसंगवश खयाल आया कि कुछ वर्ष पहले ज़ी पर हमारे यहाँ भी एक एंकर मोहतरमा ने आरोपितों के बीच स्टूडियो में अदालत लगा ली थी और पुरजोर जतन से न्याय करने को बेचैन थीं। वैसे संयमहीन, हाई-बीपी मार्का माइकगीरी के एक अवतार हमारे यहाँ अर्णब भी तो हो गए हैं!
(स्रोत-एफबी)