सुयश सुप्रभ
ऐसा लगता है कि हमारी सरकार द टाइम्स ऑफ़ इंडिया के संपादकीय पढ़कर फ़ैसले लेती है। सीसैट के मामले में ऐसा लग रहा है कि सारी रामायण सुन लेने के बाद सरकार ने यह तय किया कि रामायण में कर्ण के चरित्र को ठीक से नहीं दिखाया गया था। जो बात पूरी बहस से ग़ायब थी, उसे बहस के केंद्र में लाने की कोशिश बेवकूफ़ी नहीं बल्कि सोचा-समझा षड्यंत्र है।
अंग्रेज़ी के जिन आठ सवालों से भारतीय भाषाओं के परीक्षार्थियों को परेशानी थी ही नहीं उनके नंबर मेरिट लिस्ट में नहीं जोड़कर सरकार ने न जाने कौन-सा तीर मार लिया।
पूरी परीक्षा को प्रबंधकों और इंजीनियरों के लिए रसमलाई बनाने के तरीके की आलोचना पर तो विचार ही नहीं किया गया। सत्ता अपनी जगह आसानी से नहीं छोड़ती है। अभी सरकार नासमझ बनने का नाटक कर रही है, लेकिन आप उसे बता दीजिए कि नासमझों को सरकार चलाने की अनुमति नहीं दी जा सकती है।
(स्रोत-एफबी)