अंकित रॉय
आज से एक साल पहले जब मैंने #Newsroom में कदम रखा था…तब जिस बड़ी खबर का सामना हमने किया वो उत्तराखंड की त्रासदी थी…आज एक साल पूरे हो गए उस त्रासदी को…जो पहला गंभीर काम मुझे और मेरे कुछ साथियों को सौंपा गया वो कुछ ऐसा था…कि हम में से कुछ लोग #PCR में आने वाले फोन को अटेंड करते थे…फोन करने वालों का नाम और नंबर नोट करते थे…और फिर वो लिस्ट हमें दे दी जाती थी…पहले पहल हमने सोचा कि ये कैसा अजीब सा काम है….एक पल के लिए ऐसा लगा कि मै किसी कॉल सेंटर में आ गया हूँ…मेरा काम था उन सभी लोगों को दोबारा फोन करना..उनसे बात करना…और उनसे ये जानकारी इकट्ठा करना कि उनके परिवार से कितने लोग लापता हुए हैं…उनसे आखिरी बातचीत किस जगह पर हुई…उनके नाम और तसवीरें अगर संभव हो तो उसे मेल के ज़रिये मंगा लेना…जैसे जैसे फोन कॉल्स की संख्या बढती गयी…मुझे अपने काम की गंभीरता समझ आने लगी..मैंने फोन पर रोते-बिलखते, परेशान परिवार वालों को सुना…उनमे से कई लोगों को लगता था कि हम चैनल वाले उनके परिवार वालों को ढूंढ निकालेंगे..लेकिन उन्हें ये समझाना मुश्किल था कि अगर हम कुछ कर सकते हैं तो सिर्फ इतना कि उनके परिवार से अगर कोई लापता हुआ है तो उसकी तस्वीर और आखिरी लोकेशन टीवी पर दिखा सकते हैं…अगर उन लापता लोगों को किसी ने भी कहीं देखा हो या किसी के पास कोई जानकारी हो तो वो फोन करके बता सकता है….हम सबने हज़ारों कॉल किये होंगे और पांच हज़ार से ज्यादा लोगों की तसवीरें अपने चैनल पर चलाई होंगी…सबसे ज्यादा ख़ुशी उस वक़्त मिलती थी जब कुछ लोग फोन करके बताते थे कि उनके परिजन सही सलामत हैं..या फिर सकुशल घर लौट आए हैं…Newsroom में रहते हुए हमने दिल देहला देने वाली तसवीरें देखीं…हमने देखा कि जब प्रकृति सजा देती है तो क्या हाल करती है…पिछले साल लापता हुए लोगों में से अब भी कुछ परिवार ऐसे हैं जो ये मानने को तैयार नही कि उनके परिजन अब इस दुनिया में नहीं है…तब से लेकर अब तक हमने बहुत कुछ सीखा है…त्रासदी में मरने वालों को हम क्या श्रद्धांजलि दे सकते हैं…हम तो उस जगह कभी मौजूद भी नहीं थे..न ही हमने वो दर्द महसूस किया…और न ही वो तकलीफें झेली…बस इतनी दुआ करते हैं कि इस त्रासदी की वजह से टूटे-बिखरे परिवारों को इतनी शक्ति मिले कि वो अपनी ज़िन्दगी दोबारा पटरी पर ला सकें….
#KedarnathTragedy
(स्रोत-एफबी)