सार्थक पहल – मीडिया इंडस्ट्री पर केंद्रित किताब ‘मंडी में मीडिया’ (Buy Mandi Mein Media from Flipkart.com) की रॉयल्टी कैंसर पीड़ित कोष में जाएगा. किताब के लेखक विनीत कुमार ने एफबी पर आज यह बात कही. उन्हें इस किताब से जो भी रॉयल्टी मिली है वह उसे कैंसर पीड़ित कोष में जमा करवाएंगे. यह एक सार्थक पहल है और विनीत कुमार इसके लिए प्रशंसा के पात्र हैं. बहरहाल एफबी पर लिखा उनका पूरा वक्तव्य –
विनीत कुमार
मेरी पहली किताब मंडी में मीडिया की दो साल की एकमुश्त रॉयल्टी आज मेरे अकाउंट में आ गयी. जितनी रकम मेरे प्रकाशक वाणी प्रकाशन ने भेजी हैं, उतनी में ओल्ड मोंक की दर्जनों बोतलें आ जाएंगी और वो भी फुल्ल, ज़्यादा नहीं तो कम से कम आधी दर्जन तो जॉनी वॉकर की भी..लेकिन
मैं ये पूरी रकम(18,653 रूपए )अपने उस लेखक के लिये बचाकर रखना चाहता हूँ, उन्हें देना चाहता हूँ जो घोर धंधेबाजी के दौर में भी लिखने को ही अपनी ज़िन्दगी मानते हैं..ऐसा करते हुये न वो अपने भविष्य की चिंता करते हैं और न ही अपने स्वास्थ्य की और लिखते हुये, जूझते हुये एक दिन हमारे बीच से चले जाते हैं.
मैंने अपनी इस छोटी सी उम्र में ठीक-ठाक पैसे कमाए लेकिन सेविंग-इन्वेस्टमेंट की गणित से मुक्त रहा..अकाउंट में दो-तीन महीने के किराये हों तो अपने को बादशाह मानता हूँ..अकाउंट के मामले में बेहद लापरवाह लेकिन इस रकम के बहाने मैं अपने उस हिंदी के लेखक के लिये थोड़े-थोड़े पैसे बचाकर रखना चाहता हूँ जो बीमारी,अकेलेपन और कई बार त्रासदी से जूझता है.
मुझे याद है- ओमप्रकाश वाल्मीकि कैंसर से जूझ रहे थे और मैं खुद कैंसर होने की आशंका से..तब अशोक वाजपेयी ऐसे लेखकों के लिये निधि बनाने की बात कर रहे थे..तब मेरी किताब से किसी भी तरह की रकम आने की सुन-गन नहीं थी लेकिन भविष्य को लेकर बेहद स्वार्थी होने के अंदाज़ में मैंने लिखा था कि हम जैसे नये लेखक कुछ तो नहीं लेकिन अपनी पहली किताब की रॉयल्टी इस लेखक निधि में ज़रूर देना चाहेंगे.
मुझे नहीं पता कि ये निधि बनी है या नहीं और न ही अशोकजी से मेरा कोई सीधा संपर्क है…लेकिन ये युवा लेखक अपनी किताब से मिली ये छोटी सी रकम अपने हिंदी के लेखक के लिये सुरक्षित करब चाहता है..आप मेरी बात उन तक पहुंचाये..औपचारिकता के स्तर पर क्या करना होगा,प्लीज बताएं.
माँ-बाप की परवरिश का कर्ज तो इस जन्म में चुकता न हो पायेगा..इसके लिये शुरू से गलत पेशे में आ गये लेकिन अपने उन लेखकों के प्रति एक छोटी सी कोशिश तो कर ही सकते हैं जिनके शब्दों, जज़्बातों को हम बस गर्म करके पेश कर रहे हैं..
इस रकम में आप पाठकों की हिस्सेदारी शामिल है…आपने किताब खरीदी..आगे भी ज़रुरत पड़ने पर खरीदयेगा..मैं आगे भी ये रकम अपने लेखक के लिये जोड़ता रहूँगा.आभार.