भोपाल। देश की धडक़न एवं मध्यप्रदेश का गौरव लता मंगेशकर सही अर्थों में हिन्दी का महागान है। लगभग 85 वर्ष आयु में आते आते तक वे हिन्दी में गीत गाकर जिस तरह हिन्दी को जनमानस में प्रतिष्ठित किया हैए स्थापित किया है वह अद्वितीय है। हिन्दी में गाये उनके हजारों गाने न केवल भारतीय समाज में बल्कि दुनिया के लोगों को अपने मोहपाश में बांधे हुये हैं। यह संयोग ही है कि सितम्बर माह में लताजी का जन्म और हिन्दी दिवस दोनों ही आते हैं। इस सुयोग को अपना केन्द्रिय विषय बनाकर शोध पत्रिका समागम ने ष्हिन्दी का महागान लता मंगेशकरष् अंक का संयोजन किया है। इस अंक में लताजी के अवदानए उनके जीवनवृत आदि को विस्तार से समाहित किया गया है। हिन्दी के पुरोधा भारतेंदु हरिशचंद्र का भी स्मरण किया गया है तो हिन्दी साहित्य में कविता के पक्ष पर शोध पत्र शामिल है। लताजी को समर्पित यह अंक संदर्भ की दृष्टि से महत्वपूर्ण तो है हीए संग्रहणीय भी बन पड़ा है।
शोध पत्रिका समागम के सम्पादक मनोज कुमार बताते हैं कि शोध पत्रिका का हर अंक विशेषांक होता है। 44 पृष्ठों की शोध पत्रिका का जुलाई 2014 का अंक कथाकार मुंंशी प्रेमचंद पर था तो आगामी अक्टूबर अंक गांधीजी को समर्पित है। इस अंक में एकाएक गांधीजी के सर्वमान्य हो जाने के सवाल को केन्द्र में रखा गया है। गांधीजी के धुर विरोधी भी अब गांधीजी के बताये मार्ग पर न केवल चलने के लिये तैयार दिख रहे हैं बल्कि वे दूसरों को भी प्रेरित कर रहे हैं। ष्गांधीजी की प्रासंगिकता के मायनेष् शीर्षक से तैयार इस अंक में गांधी की प्रासंगिकता पर कविए लेखक एवं पूर्व सांसद श्री बालकवि बैरागीए हिन्दी के प्रतिष्ठित आलोचक डाण् विजयबहादुरसिंहए कथाकार डॉण् उर्मिला शिरीषए डाण् महेश परिमलए डॉण् सोनाली नरगुंदे एवं डाण् राजु जॉन सहित कई बड़े लेखकों ने अपने विचार साझा किये हैं।
उल्लेखनीय है कि 14 वर्षों से निरंतर प्रकाशित हो रही शोध पत्रिका समागम का नवम्बर अंक बाल पत्रकारों एवं उनके अवदान पर केन्द्रित है। शब्दों के ये नन्हें सिपाही पत्रकारिता के नये युग की पहचान हैं। शोध पत्रिका समागम मीडिया एवं सिनेमा के क्षेत्र में हो रहे नवाचारों एवं शोध के प्रकाशन का खुला मंंच है किन्तु जीवन के हर क्षेत्र में होने वाले अनुसंधान भी शोध पत्रिका में प्रमुखता से प्रकाशित किया जा रहा है। आगामी फरवरी 2015 में शोध पत्रिका समागम प्रकाशन के 15वें वर्ष में प्रवेश कर जाएगी।