रवीश कुमार और पुण्य प्रसून बाजपेयी हिंदी समाचार चैनलों के दो बड़े चेहरे हैं.दोनों ही क्रांतिकारी हैं.न्यूज़रूम से राजनीतिक बहसबाजी के अलावा बीच-बीच में सरोकारी पत्रकार के अपने कर्तव्य का भी निर्वाहन कर देते हैं.टीवी न्यूज़ स्पेस में क्रांति के अलावा ये लेखन के क्षेत्र में भी सक्रिय हैं.हालाँकि दोनों की लेखनी में बड़ा अंतर है.रवीश कुमार गोल-मोल लिखते हैं तो पुण्य प्रसून बाजपेयी सीधे-सीधे हल्ला बोल वाली शैली में लेखन.वैसे दोनों ही टीवी न्यूज़ स्पेस की तरह यहाँ भी एक-दूसरे को कड़ी टक्कर देते हैं.लेकिन भाषा के मामले में पुण्य प्रसून बाजपेयी पूरी तरह से मात खा जाते हैं.
रवीश कुमार बोलते जरूर बिहारी लहजे में हैं लेकिन जब लिखते हैं तो कमाल की भाषा लिखते हैं और लोग अक्सर चमत्कृत हो जाते हैं.आप एक भी भाषाई अशुद्धि नहीं गिना सकते.लेकिन दूसरी तरफ पुण्य प्रसून बाजपेयी भाषाई रूप से इतनी गलती करते हैं कि कई बार आश्चर्य होता है कि ये कैसे इतने बड़े पत्रकार बन गए? क्या कभी किसी ने इनकी कॉपी चेक नहीं की. दरअसल जैसे जुमलों के साथ स्त्रीलिंग-पुल्लिंग, ‘कि- की’ जैसी साधारण गलतियों की इनके लेख में भरमार रहती है और सालों से टोका-टोकी के बावजूद ये कोई सुधार नहीं लाते और वही गलतियाँ बार-बार दुहराते रहते हैं.
लेख की छोडिये,ट्विटर आदि पर दो लाइन लिखने में भी ये शुद्धता नहीं बरतते.कल ही का उदाहरण लीजिए. उन्होंने मीडिया की आलोचना करते हुए एक ट्वीट किया. लेकिन इसमें भी मीडिया गलत लिखा. ‘मीडिया’ की जगह ‘मिडिया’ लिख दिया. कम-से-कम जिस पेशे में है उस पेशे का नाम तो ठीक से लिखें,इतने बड़े पत्रकार से इतनी तो आशा की ही जा सकती है.बहरहाल यदि पुण्य प्रसून बाजपेयी अपनी भाषा ठीक नहीं कर पा रहे तो रवीश कुमार से क्यों नहीं कुछ दिनों के लिए ट्यूशन ले लेते हैं. रवीश थोड़े ही मना करेंगे. अच्छे टीचर साबित होंगे दरअसल!
समरेश बाजपेयी