सुजीत ठमके
अपने सुविधा के हिसाब से मीडियाकर्मी सेक्युलरिज्म को परिभाषित करते है। समाजवाद का प्रभाव और सेक्युलरिज्म का तड़का राजदीप अपने पत्रकारिता में लगाते है। राजदीप सरदेसाई की सारी जिंदगी सेकुलरिज्म का पाठ पढने में चली गई। राजदीप पत्रकार की भूमिका में रहते हुए भी कांग्रेसी खेमो का पक्ष ज्यादा लेते रहे।
मीडियाकर्मी से उम्मीद रहती है कि वो पब्लिक प्लेटफार्म पर बात रखते हुए न्यूट्रल होकर बात रखे। अगर न्यूट्रल नहीं रह सकते तो कम- से -कम विचारधारा से समझौता भी मत करिये।
राजदीप सरदेसाई का लाइव शो हो, टीवी चैनल डिबेट , टॉक शो, करेंट अफेयर्स, अखबारों के कॉलम, पब्लिक प्लेटफार्म या राष्ट्रीय- अन्तराष्ट्रीय संगोष्ठी नमो की खुलकर आलोचना करने में राजदीप ने सारी जिंदगी दाँव पर लगा दी।
कई बार नमो को तानाशाह जैसे उपाधि से सम्बोधित किया। 2जी स्कैम हो या फिर वोट- फॉर- कैश मामला राजदीप पर कॉर्पोरेट लॉबिंग करने को लेकर संगीन आरोप लगे।
राजदीप ने हाल ही में ट्वीट किया जिसमे कहा की सुरेश प्रभु और मनोहर पर्रिकर को कैबिनेट में जगह मिलने से वो काफी गदगद है। दोनों गौड़ सारस्वत ब्राह्मण है। समाजवाद की थ्योरी में जात, धर्म, पंथ, उच्च, नीच, लिंग आदि में कोई जगह नहीं। ऐसेमे राजदीप ने ट्वीट के जरिये अपनी जाति जगजाहिर करने के पीछे क्या कोई हिडन एजेंडा है या राजदीप का सेक्युलर प्रेम ही ढकोसला है?
सुजीत
( एफबी वाल)