सुजीत ठमके-
वरिष्ठ पत्रकार राजदीप सरदेसाई एक मजे हुए राजनीतिक पत्रकार है। राजनीतिक खबरों पर पकड़ बेहतर है। खबर के पीछे की राजनीति खबर की भनक राजदीप को पहले से ही लग जाती है। राजदीप की खासियत है की वो दिल्ली के स्टूडियो में बैठकर कभी कयास नहीं लगाते। ग्राउंड ज़ीरो पर जाकर, जनमत के लिए वोटरों का मूड तलाशते है।
राजदीप सरदेसाई अपने समूचे पत्रकारिता कैरियर में वो किस राजनीतिक धरातल से ताल्लुकात रखते है इसका आंकलन अभी तक कोई नहीं कर पाया । २०१४ के लोकसभा चुनाव के पहले वो कांग्रेस के पक्ष में खुलकर बैटिंग करते थे। भाजपा, आरएसएस और मोदी को टीवी, अखबारों में लगातार कोसते रहते थे। गाहे – बगाहे सेक्युलरिज्म पाठ दर्शको को पढ़ाते रहते थे। सेक्युलरिज्म का मंत्रोउपचार करते थे।
” कैश – फॉर – वोट” के समूचे स्टिंग का मरा हुआ हिस्सा टीवी पर दिखाया। इसको लेकर दिल्ली के मीडिया में राजदीप सरदेसाई की खुप किरकिरी हुई थी। मीडिया का एक बड़ा धड़ा यहाँ तक कहता था की ” कैश – फॉर – वोट” समूचा स्टिंग नहीं दिखाने के पीछे राजदीप सरदेसाई ने सरकार से गुप्त समझौता किया था। और बड़े पैमाने पर आर्थिक व्यवहार हुए थे।
२०१४ के लोकसभा चुनाव के बाद देश में मोदी लहर का आगाज हुआ और राजदीप ने यू- टर्न लेना शुरू किया। २०१४ चुनाव पर एक मोटी किताब लिखी जिसमे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के तारीफो में कशीदे पड़े है। इतने पर ही वो रुके नहीं। जब मनोहर पर्रिकर को कैबिनेट में लिया गया तब उन्होंने खुलकर ट्वीट किया था की ” गोवा के दो सार्वस्वत ब्राह्मण” नेता दिल्ली में आने से वो गदगद है।
हाल ही में राजदीप सरदेसाई ने हिंदुस्तान टाइम्स और दैनिक भास्कर में एक लेख लिखा, जिसमे यूपी में मोदी लहर होने पर मुहर लगाईं है। अब बड़ा सवाल है जो राजदीप सरदेसाई २०१४ के पहले बीजेपी को चौबीस घंटे कोसते रहते थे और खुलकर कांग्रेस के पक्ष में बात करते थे वो अब बीजेपी के पक्ष में इतने खुलकर क्यों बेटिंग कर रहे। इसके पीछे का मकसद क्या राज्यसभा पहुचना है। या और कुछ ?
(सुजीत ठमके)
(लेख में व्यक्त विचार लेखक के निजी विचार है. मीडिया खबर का इससे सहमत होना आवश्यक नहीं)