यूं तो हर क्षण का अपना एक महत्व होता है, लेकिन वर्ष- 2014 भारतीय राजनीति के इतिहास में हमेशा याद किया जाता रहेगा। स्वतंत्र भारत के इतिहास में इस वर्ष प्रथम बार ऐसा हुआ कि प्रमुख राजनैतिक दल कांग्रेस के विरुद्ध भारतीय जनता पार्टी को पूर्ण बहुमत मिला। कांग्रेस सत्ता से तो कई बार दूर हुई है, लेकिन उसका प्रभाव और उसकी चर्चा कभी कम नहीं हुई। इमरजेंसी के बाद हुए चुनाव में भी कांग्रेस हर भारतीय के मन में थी, उस चुनाव में लोगों का कांग्रेस के प्रति अति का प्रेम अति के क्रोध में ही बदला, इसीलिए क्रोध अधिक दिनों तक ठहर नहीं पाया, लेकिन वर्ष- 2014 के आम चुनाव में कांग्रेस के प्रति लोगों के मन में क्रोध नहीं, बल्कि घृणा के भाव थे। इस चुनाव में लोग कांग्रेस की चर्चा तक करना पसंद नहीं कर रहे थे।
कांग्रेस की स्थापना कुलीन वर्ग के लिए ब्रिटिश काल में 28 दिसंबर 1885 को ए.ओ. ह्यूम ने की थी। कांग्रेस की सदस्यता के लिये उस वक्त अंग्रेजी का ज्ञान और अंग्रेजों के प्रति भक्ति अनिवार्य थी। शुरू के बीस वर्षों तक तो काँग्रेस पूरी तरह अंग्रेजों की ही भक्त रही। बाद में बाल गंगाधर तिलक ने स्वराज का नारा दिया, तो 1907 में कांग्रेस में नरम और गरम दल के रूप में दो तरह की विचारधारायें आमने-सामने आ गईं। गरम दल के नेता थे बाल गंगाधर तिलक, लाला लाजपत राय और विपिन चंद्र पाल, जिन्होंने पूर्ण स्वराज की मांग उठाई, लेकिन नरम दल के नेता गोपाल कृष्ण गोखले, फिरोज शाह मेहता और दादा भाई नैरोजी ही इनके आड़े आ गये। नरम दल के नेता अंग्रेजों के अधीन ही स्वशासन के पक्ष में थे, लेकिन प्रथम विश्व युद्ध के बाद महात्मा गाँधी सक्रिय हुए, तो उन्होंने कांग्रेस को पूरी तरह बदल दिया। उन्होंने कांग्रेस को जन-जन से जोड़ना शुरू किया और चम्पारन एवं खेड़ा में भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के आंदोलन को जन समर्थन से पहली बार सफलता दिलाई। वर्ष- 1919 में हुए जलियाँवाला हत्या कांड के बाद महात्मा गांधी कांग्रेस के महासचिव बने, तो उन्होंने कुलीन वर्ग की संस्था कही जाने वाली कांग्रेस को आम जन की संस्था बना दिया।
स्वतंत्रता के आंदोलन के बीच कांग्रेस से तमाम नेता जुड़ते रहे। जवाहर लाल नेहरू भी बड़े नेता के रूप में उभर कर सामने आये, लेकिन जवाहर लाल नेहरू में एक बात खास थी, जो बाकी नेताओं में नहीं थी। जवाहर लाल नेहरू महात्मा गांधी के जितने नजदीक थे, उतने ही नजदीक शीर्ष स्तर के अंग्रेजों के भी थे, यही वो खास कारण था, जिसके चलते वे आजाद भारत में सत्ता के केंद्र बन पाये। महात्मा गांधी जवाहर लाल नेहरू को जानते थे, साथ ही वे यह भी जानते थे कि कांग्रेस के प्रति भारतीय जनता के हृदय में श्रद्धा का भाव है और उस भाव का कोई सत्ता प्राप्ति के लिए दुरूपयोग न कर पाये, इसलिए उन्होंने कांग्रेस को भंग करने का सुझाव रखा, जिसे अन्य कांग्रेसियों ने नहीं माना।
कांग्रेस की स्थापना का मूल उद्देश्य अंग्रेजों के प्रति लोगों के मन में श्रद्धा भाव बढ़ाना था। कांग्रेस की यह मूल प्रकृति कांग्रेसियों में कहीं न कहीं बनी रही, इसलिए कांग्रेस और कांग्रेस के नेतृत्व में भारत वैसी प्रगति नहीं कर पाया, जैसी उसे करनी चाहिए थी। कांग्रेस की नीतियाँ अजीबो-गरीब रही हैं, इसीलिए स्वतंत्रता आंदोलन और बंटवारे की मार झेल चुकी जनता ने स्वतंत्रता मिलने के अल्प समय बाद ही कई बड़े आंदोलन किये। कांग्रेस की नीतियों का विरोध करने वालों में रामनोहर लोहिया का नाम अग्रणी नेताओं में है, वे जवाहर लाल नेहरू के धुर-विरोधी थे, उन्होंने पहली बार नारा दिया कि “काँग्रेस हटाओ, देश बचाओ” और 1967 के आम चुनाव में कांग्रेस उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल, बिहार, उड़ीसा, मध्य प्रदेश, तमिलनाडु, केरल, हरियाणा और पंजाब से गायब हो गई।
जयप्रकाश ने वर्ष- 1974 में संपूर्ण क्रांति का नारा दिया। अपार जन समर्थन से घबरा कर इंदिरा गाँधी ने इमरजेंसी लगा दी और देश भर में जमकर तांडव किया, जिससे जनता पार्टी अस्तित्व में आई और जनता ने इंदिरा को ही नहीं, बल्कि कांग्रेस को भी सत्ता से उखाड़ फेंका। विश्वनाथ प्रताप सिंह ने भी बड़ा आंदोलन चलाया और बोफोर्स कांड को मुददा बना कर उन्होंने भी कांग्रेस को पटखनी दी।
कुत्सित मानसिकताओं की जंग में जनता पार्टी विलुप्त हो गई, तो वर्ष- 1980 में भारतीय जनता पार्टी का उदय हुआ। वर्ष- 1984 के आम चुनावों में भाजपा मात्र दो लोकसभा सीटें जीत पाई। इसके बाद “राम जन्मभूमि” आंदोलन शुरू हुआ, जिससे भाजपा को बड़ी ऊर्जा मिली और कई राज्यों पर कब्जा करने के बाद वर्ष- 1996 में भाजपा सब से बड़े दल के रूप में उभर कर सामने आई। अटल बिहारी वाजपेई के नेतृत्व में मात्र 13 दिन सरकार चली। इसके बाद राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन का उदय हुआ और इस गठबंधन की सरकार एक वर्ष चली, फिर इस गठबंधन को पूर्ण बहुमत मिला और अटल बिहारी वाजपेयी के ही नेतृत्व में सरकार ने पांच वर्ष का कार्यकाल पूर्ण किया। अटल बिहारी वाजपेई के नेतृत्व में कार्यकाल पूर्ण करने वाली यह पहली गैर कांग्रेसी सरकार थी। अटल बिहारी वाजपेई बड़े ही विद्वान् और सफल नेता माने जाते हैं, लेकिन वे भी कांग्रेस का नुकसान नहीं कर पाये और वर्ष- 2004 के चुनाव में वे स्वयं अलोकप्रिय हो गये, इस चुनाव में भाजपा को करारी हार का सामना करना पड़ा।
देश में जनता पार्टी की मोरारजी देसाई के नेतृत्व में 24 मार्च 1977 को पहली गैर कांग्रेसी सरकार बनी, जो 28 जुलाई 1979 तक चली। इसी दिन जनता पार्टी की ही ओर से चरण सिंह प्रधानमंत्री बने, जो 14 जनवरी 1980 तक रहे। 2 दिसंबर 1989 को जनता दल की विश्वनाथ प्रताप सिंह के नेतृत्व में सरकार बनी, जो 10 नवबंर 1990 तक चली, इसके बाद समाजवादी जनता पार्टी की चंद्रशेखर के नेतृत्व में सरकार बनी, जो 21 जून 1991 तक चली। जनता दल की ओर से एच.डी. देवे गोड़ा 1 जून 1996 को प्रधानमंत्री बने, जो 21 अप्रैल 1997 तक रहे। जनता दल की ही ओर से इंद्र कुमार गुजराल 21 अप्रैल 1997 को प्रधानमंत्री बने और 19 मार्च 1988 तक रहे। इसके बाद अटल बिहारी वाजपेई ने जनता दल के इंद्र कुमार गुजराल से सत्ता छीनी और प्रधानमंत्री बने, लेकिन कांग्रेस ने भाजपा के अटल बिहारी वाजपेई से सत्ता छीनी और मनमोहन सिंह लगातार दस वर्ष तक प्रधानमंत्री रहे।
महत्वपूर्ण तथ्य यह है कि स्वतंत्र भारत में कांग्रेस सत्ता से तो दूर कई बार गई, लेकिन उसकी उपयोगिता और भूमिका कभी कम न हुई, इसीलिए सत्ता से दूर जाने के बाद कांग्रेस पुनः और बड़ी शक्ति के रूप में सत्ता में लौटती रही। कांग्रेस सत्ता से दूर भी गई, तो मुख्य विपक्षी दल बन कर सरकार पर हावी रही, लेकिन जनता के मानस पटल पर नरेंद्र मोदी ऐसे छाये कि उनके आह्वान पर जनता भारत को “कांग्रेस मुक्त” करने में जुट गई। भारतीय राजनीति के इतिहास में किसी गैर कांग्रेसी दल को पहली बार पूर्ण बहुमत मिला है। वर्ष- 2014 के आम चुनाव में नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भाजपा ने 282 सीटों पर और राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन ने 543 सीटों पर कब्जा किया। 26 मई 2014 से नरेंद्र मोदी भारत के पन्द्रहवें प्रधानमंत्री हैं, उनके प्रधानमंत्री बनने के बाद विश्व समुदाय के बीच भारत की अहमियत बढ़ी है।
आम जनता के बीच ऐसी सोच बन चुकी है कि स्वराज, कांग्रेस से मुक्ति और सशक्त भारत का महात्मा गाँधी, डॉ. राममनोहर लोहिया, जयप्रकाश और सरदार वल्लभभाई पटेल का सपना नरेंद्र मोदी पूरा कर सकते हैं, तभी राज्यों के चुनाव में भारतीय जनता पार्टी लगातार आगे बढ़ रही है। खैर, भारतीय जनता पार्टी को पूर्ण बहुमत मिलने से ज्यादा महत्वपूर्ण बात यह है कि भारतीय राजनीति की सिरमौर कही जाने वाली कांग्रेस को विपक्षी दल का भी दर्जा नहीं मिल सका है। सही मायने में नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भारत में पहली गैर कांग्रेसी सरकार बनी है, इसीलिए वर्ष- 2014 भारतीय राजनीति के इतिहास में हमेशा अपना अलग स्थान बनाये रखेगा।
(बी.पी.गौतम,स्वतंत्र पत्रकार)