डीएलएफ-वाड्रा प्रकरण में विधिक कार्य विभाग, विधि मंत्रालय द्वारा आरटीआई कार्यकर्ता डॉ नूतन ठाकुर को प्राप्त कराये गए नोटशीट से यह साफ़ जाहिर होता है कि प्रधानमंत्री कार्यालय (पीएमओ) सहित पूरी सरकार किस प्रकार इस मामले में गहरी रूचि ले रही थी.
मामले में स्वयं पीएमओ ने 05 नवम्बर 2012 को विधिक कार्य विभाग को विस्तृत निर्देश भेजे थे. इसमें डॉ ठाकुर द्वारा इलाहाबाद हाई कोर्ट की लखनऊ बेंच में इस प्रकरण में दायर याचिका का शुरुआती स्तर पर ही पुरजोर विरोध के निर्देश शामिल थे. तत्कालीन नए विधि मंत्री अश्विनी कुमार से व्यक्तिगत निर्देश लेने को कहा गया था.
निर्देश में कहा गया था कि याचिका की प्रति पीएमओ को नहीं मिली है जबकि लखनऊ स्थित सहायक सोलिसिटर जनरल आई एच फारुकी ने 09 अक्टूबर को याचिका दायर होने के साथ उसकी प्रति पीएमओ के सचिव को भेज दी थी.
प्रतिशपथपत्र एटोर्नी जनरल से परामर्श से बनाया गया था और उनकी राय के अनुसार मोहन पराशरन, तत्कालीन अतिरिक्त सोलिसिटर जनरल को लखनऊ जा कर बहस करने को कहा गया था.
मामला इतना महत्वपूर्ण था कि अश्विनी कुमार ने हस्तलिखित नोट में लिखा कि पीएमओ का 05 नवम्बर का निर्देश उन्हें 17 नवम्बर को दिखाया गया, भविष्य में कोई निर्देश प्राप्त होते ही तत्काल उनके सामने रखा जाये.