माता रानी के नाम पर बिग 92.7 एफएम या माता रानी 92.7 एफएम?वैसे तो नवरात्र शुरु होने से पहले ही एफएफ चैनलों पर रामलीला, माता रानी आदि से जुड़े कॉन्टेस्ट शुरु हो गए..कहानी व्रत में खाने की चीजों से शुरु होकर तेरे नयना बड़े कातिल जैसे फिल्मी गानों पर भजन तक की पैरोडी तक चली गयी..लेकिन इन सबके बीच बिग 92.7 एफएम ने चैनल की शक्ल कुछ इस तरह कर दी कि इसे माता रानी 92.7 एफएम कहना ज्यादा सही होगा.
जिस चैनल की अब तक की यूएसपी हिन्दी की पुरानी फिल्मों, उनके गानों पर आधारित शो की रही है, इस दौरान पूरे प्रसारण का बड़ा हिस्सा चंचल चौहान के भजनों, फिल्मी गानों की पैरोडी और झंडेवालान मंदिर से पल-पल की खबर देने में खपा दी जा रही हैं. ऐसा कोई क्षेत्र नहीं बचा है जहां माता रानी की कृपा और बाजार के ऑफर एक-दूसरे से गुंथे न हों. इसी कड़ी में चैनल ने दूरदर्शन के राम अरुण गोविल को “श्रीराम की कहानी, बच्चों की जुबानी” का जज बनाया और उनसे रामकथा के चरित्रों को चुनने का काम दिया. अरुण गोविल ने आसित नाम के बच्चे को इसलिए चुना कि जिस तरह रावण अपनी बात मनवाने के लिए कुछ भी करता था, ये बच्चा भी अपनी जिद पर अड़ा था.
अब श्रोता अरुण गोविल और चैनल से ये पूछे कि क्या अभिनय का आधार कलाकार का स्वाभाव होता है या फिर उसकी अभिनय क्षमता..आवाज को आधार बनाते, फिर भी चल जाता लेकिन चरित्रों के अनुसार स्वभाव की तलाश और उनका चयन..ये तर्क सुनकर नाट्य अकादमी के दिग्गजों के भी पसीने छूट जाएंगे.
बहरहाल, नवरात्र के नाम पर बिग 92.7 एफएम चैनलों पर जो कुछ भी प्रसारित किया जा रहा है, साफ झलक जाता है कि ये इस मुगालते में है कि पुरानी फिल्मों, नास्टैल्जिया से लेकर खास मौके का वही ट्रेंड सेटर है. ये अलग बात है कि ऐसा करते हुए इसका चरित्र खबरिया चैनलों से अलग नहीं रह जाता.
जिंदगी चैनल पर धारावाहिक हमसफर‘बालाजी टेलीफ़िल्म’ प्रेमी क्षमा करें ! लेकिन गुज़रे सालों में भारतीय टीवी धारावाहिकों की तहज़ीब, ज़ुबान और कंटेंट को जितना एकता कपूर एंड पार्टी ने नष्ट-भ्रष्ट किया है, उतना और किसी ने नहीं ! इसमें हमारी घरेलू और फ़ुर्सतिया मांतोओं-बहनों और भाभियों का भी पर्याप्त योदगान है, जिनके ज़रिए हमारी ज़ुबान और कल्चर आने वाली नस्लों तक पहुंचता है. वर्ना ये वही देश है जहां तमस, बुनियाद, डिस्कवरी ऑफ़ इंडिया, चाणक्य और मिर्ज़ा ग़ालिब जैसे अनगिनत टीवी धारावाहिकों को हमने सर-आंखों पर बैठाया. इनके प्रसारण के समय गलियों में सन्नाटा पसरा देखा. ये बताते हुए ख़ुशी हो रही कि दूरदर्शन अपने उन दिनों को दोबारा वापस लाने के लिए इन दिनों, रात-दिन एक किए है. जिसकी उजली तस्वीर बहुत जल्द सामने होगी.
इधर, बहुत दिनों से नए चैनल ‘ज़िंदगी’ का ज़िर्क यहां-वहां है. और उस पर भी सीरियल ‘हमसफ़र’ का कुछ ज़्यादा ही. कल कुछ वक़्त मिला तो देखा. एक बात जो गुज़रे तीस बरस से मानता और बरतने की कोशिश करता आ रहा हूं, फिर एक बार सही साबित हुई. और वो ये कि – ”आप जब भी इंसानी ज़िंदगी की सच्चाइयों को आम-फ़हम ज़ुबान, और सादा-अंदाज़ में पेश करने की कोशिश करेंगे, वो दिल से निकलेगी और सीधे दिल तक जाएगी.” मेरा नज़रिया है कि यही कमाल, इस चैनल पर भी कमाल दिखा रहा है. रोज़मर्रा की ज़िंदगी. हमारे-आपके जैसे सीधे-सादे लोग. उनकी आम-फ़हम ज़ुबान. कहीं-कहीं – मुसल्सल, अक़ीदत, अदा, अना, ज़िक्र, अज़ीज़,मुश्किलात, मशहूर जैसे मीठे-मीठे लफ़्ज़ ! और उनका बयान – एक दम सादा ! ज़ुबान सुनिए भी और सीखिए भी. और हां अगर कोई एकता कपूर को भी यह चैनल दिखा सके या इंसानी ज़िंदगी की ज़ुबान सिखा सके तो भला हो.
Nadeem Khan
आलोक भाई, मुंबई में एक अजीब टाइप का तर्क अकसर सुनता हूँ की जो आज का दर्शक देखता है,वही एकता कपूर और दुसरे प्रोडूसर दिखाते हैं मगर ये तर्क न केवल बकवास है बल्कि गुमराह करने वाला भी है क्योंकि अगर ऐसा होता तो आज की भागती-दौड़ती ज़िन्दगी में ‘ज़िन्दगी’ जैसा चैनल इतना पसंद न किया जाता, दरअसल कंटेंट, स्क्रीन प्ले और डायलॉग अच्छे हों तो ‘सच’ के करीब दिखने वाला हर सीरियल पसंद किया जायेगा ! अब दूरदर्शन को भी एकता कपूरी षड्यंत्र,चालबाजियां और रिश्तों में घुले हुए ज़हर से दूर होकर ‘आमफहम’ सीरियल को तवज्जु देनी चाहिए जिससे दर्शक रोमांच के साथ अपनेपन का मज़ा ले सके…
Pramod Kumar Pandey
नीम का पेड़, नुक्कड़ और न जाने ऐसे ही कितने धारावाहिक प्रसारित होते थे.!. फिल्म या धारावाहिकों का निर्माण यदि सामजिक हितों और मेल-जोल को बढाने, अपने अतीत की विरासतों को सबके सम्मुख रखने, भाषाओँ-बोलियों को मजबूत करने, और ऐसे ही अन्य सन्देश जो कि समाज और देश को मजबूत करते हैं, के लिए नहीं होगा तो उसके परिणाम यही होंगे जो एकता कपूर जी परोसती हैं। कमर्सिअलाईजेशन यदि ज़िम्मेदारी के बिना होगा तो उसका परिणाम ऐसा ही होगा। कुछ हद तक हम भी उत्तरदाई हैं क्यों कि “पेरेस्त्रोइका” और “ग्लास्नोस्त” के नाम पर ऐसे लोगों को उलूल-झुलूल बेचने का बाज़ार हमीं ने दिया है। स्वागत है दूरदर्शन का यदि वे अपनी पुरानी विलक्षणता, गुणवत्ता और विविधता को वापस ला रहे हैं तो।
मोदी बम की धूममोदी के नाम के चलते इस पटाखा बम की जबरदस्त डिमांड है और लोग इसे हाथों-हाथ खरीद रहे हैं. इलाहाबाद के पटाखा बाजार में इस बार मोदी बम के साथ ही प्रियंका फुलझड़ी, मेरीकॉम अनार, मंगलयान रॉकेट व हिन्दुस्तानी चटाई व विद्या बालन चकरी भी खूब बिक रही है.
क्या खास है “मोदी बम” में पीएम नरेंद्र मोदी के नाम और उनकी तस्वीर का इस्तेमाल कर जो पटाखा बम तैयार किया है, उसमे तमाम खूबियां हैं. मोदी बम आवाज़ काम करता है और रोशनी ज्यादा बिखेरता है. यह बम सात बार अलग- अलग आवाजें निकालकर हर बार रंगीन रोशनी बिखेरता है.
“मोदी बम” कीमत बजट में तीन साइजों में मौजूद मोदी बम 30 से 70 रूपये प्रति पीस बिक रहा है. वैसे तमाम लोग तो ऐसे हैं, जो मोदी बम को इसकी खूबियों के बजाय सिर्फ मोदी नाम जुड़ा होने की वजह से खरीद रहे हैं.
भाजपा के कुछ विधायकों का फेसबुक एकाउंट महाराष्ट्र से अपडेट होता है। इसका असर कई बार बिहार की संस्कृति और बिहारियत पर देखा गया है। छत्रपति शिवाजी की जयंती पर शुभकामना दिख जाती है लेकिन कुंवर सिंह या बिहार के दूसरे किसी राजा महाराजा को याद नहीं किया जाता।
बिहार के लोकपर्व का संज्ञान नहीं लिया जाता, लेकिन गणेश पूजा पर इतने प्रकार के कामेंट की पता ही नहीं चलता कि बिहार में यह पर्व उतना लोकप्रिय नहीं है।
आज भी कई नेताओं के वाल पर दीपावली के मौके पर लक्ष्मी की जगह गणेश की तसवीर देखी जा सकती है। काली पूजा महाराष्ट्र में नहीं होता है तो इनके वाल पर से भी यह गायब है। यह एक अलग प्रकार का सांस्कृतिक सामाज्यवाद है।
धन-हित में जारी- बुरा ना मानें दीवाली है। सस्ते सैटलाइट बनाने की टेक्नोलोजी चाहे हम अमेरिका को दे सकते हों, पर महंगी चड्ढी बनाने की टेक्नोलोजी हम अमेरिका से लेकर आते हैं। अमेरिकन मूल की जौकी-चड्ढी को इंडियावाले दबादब खरीद रहे हैं। कितना दबादब , यह देखिये जौकी चड्ढी को इंडिया में बनानेवाली कंपनी पेज इंडस्ट्रीज का शेयर पिछले पांच साल में 13 गुना हो गया और सात साल में 20 गुना। टाप इंडियन बैंक- एचडीएफसी बैंक का शेयर दस साल में ग्यारह गुना ही हो पाया। रे अमरीका तू भौत श्याणा है रे।