Home Blog Page 264

पुण्‍य प्रसून हाथ मलते हुए अवतरित हुए तो मीर की याद के साथ

आजतक पर पुण्य प्रसून की मुस्कराहट और भाजपा के प्रभात झा का व्यंग्य
आजतक पर पुण्य प्रसून की मुस्कराहट और भाजपा के प्रभात झा का व्यंग्य

अभिषेक श्रीवास्तव

पुण्य प्रसून बाजपेयी
पुण्य प्रसून बाजपेयी

महीनों बाद आज घंटे भर के लिए टीवी खोला तो देखा, चारों ओर जंग का माहौल है। इस बीच दस बजे पुण्‍य प्रसून हाथ मलते हुए अवतरित हुए तो मीर की याद के साथ। उनके पीछे परदे पर लिखा था, ”आगे-आगे देखिए होता है क्‍या…।”

जंग के माहौल के बीच इश्‍क़ की बात करना गुनाह है, लेकिन उन्‍होंने संदर्भ-प्रसंग सहित मीर के इस मशहूर शेर की न सिर्फ व्‍याख्‍या की, बल्कि महेश भट्ट के जन्‍मदिन पर जाते-जाते ज़ख्‍म का गीत भी सुना दिया- तुम आए तो आया मुझे याद…!

क्‍या? ”लव इन दि टाइम ऑफ कॉलरा”! मार्खेज़! गली या चांद नहीं। प्रसून वैसे तो ऐसे ही हैं, लेकिन कभी-कभी चुपचाप अपना काम कर जाते हैं। पत्रकार जैसे भी हों, आदमी ज़हीन जान पड़ते हैं। सॉरी, ज़हीन नहीं… जहीन! जाहिर है, जाहिर है।

@fb

संघ के साथ मिलकर ज़ी न्यूज़ के सुभाष चंद्रा का उत्तरप्रदेश में गोलमाल !

दिलीप मंडल




subhash-chandra-mohan-bhagwatशिवपाल यादव के पुत्र आदित्य यादव की शादी का दिल्ली में 2 अप्रैल, 2016 को रिसेप्शन ZEE टेलीफिल्म्स के सुभाष चंद्रा कोठी में होता है. पार्टी सुभाष चंद्रा की कोठी में हैं और होस्ट हैं अमर सिंह. जबकि पास में ही मुलायम सिंह यादव जी की विशाल कोठी है.

लेकिन शिवपाल यादव को सुभाष चंद्रा की कोठी पसंद है.

RSS से जुड़े सुभाष चंद्रा का चैनल ZEE न्यूज 2 सितंबर को अपने ओपिनियन मेकिंग पोल में BJP को यूपी की सबसे बड़ी पार्टी के तौर पर प्रोजेक्ट करता है. कैराना को कश्मीर बताता है. सांप्रदायिक तनाव फैलाता है. इसके बावजूद सुभाष चंद्रा सपा के हितैषी बने हुए हैं.

2 अप्रैल को सुभाष चंद्रा शिवपाल यादव के पुत्र की शादी की रिसेप्शन पार्टी देते हैं और इसके छह दिन बाद 8 अप्रैल को वे नागपुर में RSS के समारोह में मुख्य अतिथि होते हैं, जिसमें मोहन भागवत भी शामिल हैं. (देखें फोटो)

कुछ समझ में आ रहा है…दिमाग का दही बन गया कि नहीं?

@एफबी

kairana-up

शहादतों का सिलसिला थमता क्यों नहीं

डॉ नीलम महेंद्र




18 सितम्बर 2016 घाटी फिर लाल हुई ! ये लाल रंग लहू का था और लहू हमारे सैनिकों का ! सोते हुए निहत्थे सैनिकों पर इस प्रकार का कायरतापूर्ण हमला ! इसे क्या कहा जाए ? देश के लिए सीने पर गोली तो भारत का सैनिक ही क्या इस देश का आम आदमी भी खाने को तैयार है साहब ! लेकिन इस प्रकार कायरतापूर्ण हमले में पीठ पीछे वार ! और ऐसे छद्म हमलों में अपने वीर सैनिकों की शहादत हमें कब तक सहनी पढ़ेगी ?

यह कोई पहला आतंकवादी हमला नहीं है लेकिन काश हम सभी एक दूसरे से प्रण करते कि यह पहला तो नहीं है किन्तु आखिरी अवश्य होगा। काश इस देश के सैनिकों और आम आदमी की जानों की कीमत पहली शहादत से ही समझ ली गई होती तो हम भी अमेरिका फ्रांस ब्रिटेन रूस और कनाडा की श्रेणी में खड़े होते। काश हमने पहले ही हमले में दुश्मन को यह संदेश दे दिया होता कि इस देश के किसी भी जवान की शहादत इतनी सस्ती नहीं है! काश हम समझ पाते कि हमारी सहनशीलता को कहीं कायरता तो नहीं समझा जा रहा ?

आज़ादी से लेकर आज तक पाकिस्तान द्वारा घाटी में लगातार वार किया जा रहा है तीन आमने सामने के युद्ध हारने के बाद भोले भाले कश्मीरियों को गुमराह करके लगातार अस्थिरता फैलाने की कोशिशों में लगा है। अब जबकि वह अन्तराष्ट्रीय समुदाय के सामने बेनकाब हो गया है और जानता है कि पानी सर से ऊपर हो चुका है तो भारत को परमाणु हमले की धमकी देने से भी बाज नहीं आ रहा।

आज पूरे देश में गुस्सा है और हर तरफ से बदला लेने की आवाजें आ रही हैं । यह एक अच्छी बात है कि देश के जवानों पर हमले को इस देश के हर नागरिक ने अपने स्वाभिमान के साथ जोड़ा और कड़ी कार्यवाही की मांग कर रहे हैं। हर ओर से एक ही आवाज , अब और नहीं ! आज हर कोई जानना चाहता है कि क्या हुआ ,कैसे हुआ , कब हुआ ? लेकिन काश कि हमारे सवाल यह होते कि ‘क्यों हुआ ? और इसे कैसे रोका जाए ?

युद्ध किसी भी परिस्थिति में आखिरी विकल्प होना चाहिए और खास तौर पर तब जब दोनों ही देश परमाणु हथियारों से लैस हों । युद्ध सिर्फ दोनों देशों की सेनाएँ नहीं लड़तीं और न ही उससे घायल होने वाले युद्ध भूमि तक सीमित होते हैं। युद्ध तो खत्म हो जाता है लेकिन उसके घाव नासूर बनकर सालों रिसते हैं। सम्पूर्ण अर्थव्यवस्था हिल जाती है और समय थम सा जाता है।
हमारी लड़ाई आतंकवाद से है वो हम लड़ेंगे और अवश्य जीतेंगे लेकिन हमारी जीत इसमें है कि इस लड़ाई में बहने वाला ख़ुन सिर्फ आतंक का हो न तो हमारे सैनिकों का और न ही नागरिकों का। युद्ध तो कृष्ण भगवान ने भी लड़ा था महाभारत का लेकिन उससे पहले शांति के सभी विकल्प आजमा लिए थे। हमें भी सबसे पहले अन्य विकल्पों पर विचार कर लेना चाहिये।

सर्वप्रथम जब हम इसकी जड़ों को खोजेंगे तो पाएंगे कि कमी हमारे भीतर है। 9/11 के हमले के बाद अमेरिका ने एक महीने के भीतर 10/7 (7 अक्तूबर) को न सिर्फ अन्तराष्ट्रीय नियमों की अनदेखी करते हुए अफगानिस्तान में स्थित तालीबान का सफाया किया बल्कि डेढ महीने के भीतर ही अमरीकी पेट्रियेट एक्ट बना , सुरक्षा बलों और एफ बी आई को ताकतवर बनाया जिसके परिणामस्वरूप 9/11 के बाद अमेरिका आतंकवादियों के निशाने पर रहने के बावजूद वे वहाँ कोई बड़ा हमला दोबारा करने में नाकाम रहे हैं।

इसी संदर्भ में भारत को देखा जाए तो सख्त कानून तो हमारे देश में भी बने मसलन टाडा और पोटा लेकिन इनका लाभ से अधिक विरोध और राजनीति हुई जिसके फलस्वरूप इनका मकसद ही पूर्ण नहीं हो पाया।
जब सुरक्षा बलों द्वारा जाँच की जाती है तो आत्मसम्मान और निजता के हनन जैसे विवादों को खड़ा कर दिया जाता है। यहाँ कानूनों का पालन चेहरा देख कर होता है क्योंकि कुछ ख़ास वर्ग कानून से ऊपर होता है। और जब कभी कानून लागू करने का समय आता है तो कानून व्यवस्था के बीच में केंद्र और राज्य का मुद्दा आ जाता है।यह एक कटु सत्य है कि हमारी ही कमियों एवं कमजोरियों का फायदा उठाकर हमें ही बार बार निशाना बनाया जाता है।जिस प्रकार अमरीका ने न सिर्फ आतंकवाद से लड़ाई लड़ी बल्कि अपने कानून में सुधार एवं संशोधन करके उसका कड़ाई से पालन किया देश की सुरक्षा से किसी प्रकार का कोई समझौता नहीं किया उसी प्रकार हमें भी देश की सुरक्षा को सर्वोपरि रखना होगाIसमझौतों को ‘ ना ‘ कहना सीखना होगाIकानून का पालन कठोरता से करना होगा और यह समझना होगा कि देश का गौरव व सम्मान पहले है न कि कुछ खास लोगों का ‘आत्मसम्मान ‘ ।

हमारी सीमाओं से बार बार घुसपैठ क्यों हो रही है कि बजाय कैसे हो रही है इसका उत्तर तलाशना होगा।
सामने वाला अगर हमारे घर में बार बार घुस कर हमें मार रहा है तो यह कमी हमारी है।सबसे पहले तो हम यह सुनिश्चित करें कि वह हमारे घर में घुस ही न पाए। व्यवहारिक रूप में यह सुनिश्चित करने में जो रुकावटें हैं सर्वप्रथम तो उन्हें दूर किया जाए और फिर भी यदि वो घुसपैठ करने में कामयाब हो रहे हैं तो उन्हें बख्शा नहीं जाए ।

कितने शर्म एवं दुख की बात है कि भारत में जिस वर्ग को कश्मीर में सेना के जवानों पर पत्थर बरसाने वाले लोगों पर पैलेट गन का उपयोग मानव अधिकारों का हनन दिखाई देता था आज सेना के जवानों की शहादत पर मौन हैं !

उरी आतंकी हमले के बाद केंद्र सरकार की सोशल मीडिया पर किरकिरी

amit-shah-expressपाकिस्तान सरकार और पाक खुफिया एजंसी आईएसआई के फंडिंग पर पाला गया आतंकी संगठन जैश – ए – मोहम्मद द्वारा जम्मू कश्मीर के उरी सेक्टर में इन्डियन आर्मी के बेस कैंप पर आतंकियों द्वारा निशाना बनाया गया। जिसमे हमारे वीर जाबांज २० जवान शहीद हुए और ३० से अधिक जख्मी अवस्था में है। इस हमले की सभी देश वासी घोर निंदा कर रहे है। सभी के जुबान पर एक ही लब्ज दिखाई देता है। अब बस….. पाकिस्तान को मुंहतोड़ जवाब देना चाहिए।

केंद्र सरकार ने गृहमंत्री राजनाथ सिंह, रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर, एक्सपर्ट अजित डोवाल और आर्मी चीफ के साथ सलाह मशवरा कर रहे देश के प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने ट्वीट करके कहा की हमले के दोषियों को बख्शा नहीं जायेगा।

प्रधानमंत्री के इस बयान पर सोशल मीडिया पर काफी किरकिरी हो रही है। सोशल मीडिया पर सक्रिय रहने वाला एक तबका अब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के चुनाव के समय दिए गए बयान, इंटरव्यू आदि सोशल मीडिया पर अपलोड कर रहे है। जो पाकिस्तान के खिलाफ थे। पठानकोट में इंडियन आर्मी बेस कैंप पर पाक आतंकियों द्वारा किया गया हमला और अब उरी में किया गया आतंकी हमला जिसके कारण सोशल मीडिया पर केंद्र सरकार की किरकिरी हो रही है।

सुजीत ठमके

तहलका हिंदी में क्यों मच रहा तहलका ?

मीडिया मजदूर
मीडिया मजदूर

भारतीय पत्रकारिता के इतिहास में ‘तहलका’ पत्रिका का अपना एक विशिष्ट स्थान है. ये स्थान तहलका ने अपनी तथ्यपरक रिपोर्ट और खोजी पत्रकारिता के बदौलत हासिल की. लेकिन तरुण तेजपाल प्रकरण के बाद तहलका और उसके पत्रकारों पर जो संकट के बादल मंडराए, वे अबतक छंटने का नाम नहीं ले रहे. वैसे तो ज्यादातर पुराने पत्रकार तहलका (हिंदी)को छोड़कर जा चुके हैं,लेकिन अभी ताजा प्रकरण में बची-खुची टीम ने भी सामुहिक रूप से इस्तीफा दे दिया. इस्तीफा देने वालों में कार्यकारी संपादक बृजेश सिंह,प्रशांत वर्मा, मीनाक्षी तिवारी, अमित सिंह, कृष्णकांत और दीपक गोस्वामी शामिल है.गौरतलब है कि तहलका में पिछले काफी समय से सैलरी संकट भी चल रहा था. बहरहाल इस मामले में मेल के जरिए एक नया तथ्य सामने आया है जिससे पुरानी टीम के प्रति मैनेजमेंट की बेरुखी और तहलका के पत्रकारों के इस्तीफे की असल वजह का पता चलता है. मेल से आए उस पत्र को ज्यों का त्यों हम प्रकाशित कर रहे हैं.अपने आप में ये विडम्बना है कि जिस पत्रिका ने कभी पत्रकारों के शोषण आदि के खिलाफ आवाज़ बुलंद करते हुई ‘मीडिया मजूरी’ जैसी ख़बरों को आवरण कथा बनायी, आज उसी संस्थान के पत्रकारों को ये दिन भी देखने पड़ रहे हैं.




> मैं जो यह मेल लिख रहा हूँ और दो एक साथी और भी तहलका हिंदी से ही जुड़े हुए हैं। हम भी कोई आज नहीं जुड़े हैं। तब जुड़े थे जब तहलका हिंदी में संजय दुबे जी

तहलका हिंदी का वार्षिकांक
तहलका हिंदी का वार्षिकांक
कार्यकारी संपादक हुआ करते थे। और जिस आर्थिक परेशानियों का जिक्र करके बृजेश सिंह ने सामूहिक इस्तीफा दिया है वो कोई आज-कल में शुरू नहीं हुआ है। वो तरूण और शोमा के जाने के साथ ही शुरू हो गया था। फिर ये कथित क्रांतिकारी कदम अभी ही क्यों? क्या इसके पीछे कोई और कारण था जो न तो आपको बताया गया और ना ही तहलका हिंदी के दूसरे साथियों को। संजय दुबे के जाने के बाद अतुल चौरसिया तहलका हिंदी के कार्यकारी सम्पादक बनाए गए थे। जब अतुल चौरसिया गए तो बृजेश सिंह तहलका हिंदी के कार्यकारी संपादक बनाए गए। संजय दुबे के वक्त बृजेश एक संवाददाता थे।

> इसमें कोई शक नहीं कि बृजेश ने संजय दुबे और अतुल के बाद पत्रिका को बेहतर ढंग से सम्भाला। लेकिन जिस दिन उन्होंने अपने टीम के सामूहिक इस्तीफे का मेल मैनेजमेंट को भेजा था उसी दिन दोपहर एक बजे मैनेजमेंट से एक मेल तहलका में सबको आया था। इस मेल के तभी आ जाना चाहिए था जब संजय दुबे तहलका से गए थे। मैनेजमेन्ट ने अपने मेल में अनुभवी पत्रकार अमित प्रकाश सिंह को तहलका हिंदी पत्रिका का डिप्टी एडिटर बनाए जाने की घोषणा की थी। मैनेजमेंट से आए मेल को आप नीचे पढ़ सकते हैं। क्या अब भी आपको लगता है कि सामूहिक इस्तीफा केवल आर्थिक तंगी की वजह से था। मेरा भी मानना है कि आर्थिक तंगी तो है लेकिन हालात पिछले कई महीनों के मुकाबले ठीक हुए हैं।

> आप अमित प्रकाश जी से और तहलका मैनेजमेंट से इस बात की तस्दीक कर सकते हैं।

> हम उम्मीद करते हैं कि आप आपने वेब पोर्टल को किसी के द्वारा इस्तेमाल नहीं होने देंगे। और इसलिए पूरी सच्चाई सामने लाना जरूरी है।

> तहलका कर्मी




> Subject: Welcome to Mr. Amit Prakash Singh, Deputy Editor- Tehelka Hindi
>
> >
> > ——– Original Message ——–
> > Subject: Welcome to Mr. Amit Prakash Singh, Deputy Editor- Tehelka Hindi

> > Dear All,
> >
> > It gives us great pleasure in welcoming Mr. Amit Prakash Singh, who has
> > joined us as Deputy Editor- Hindi. He comes to us with rich experience
> > spanning over three decades.
> >
> > Before joining Tehelka, Mr. Amit Prakash Singh has worked as
> > Consulting Editor -India Today. He has also worked with Jansatta as
> > Editor- Delhi & News Editor- Kolkata.
> >
> > We welcome Mr. Amit Prakash Singh and wish him all the best for this
> > important assignment.
> >
> > With Regards,
> >
> > Tehelka HR
>

सोशल मीडिया पर मीडिया खबर

665,311FansLike
4,058FollowersFollow
3,000SubscribersSubscribe

नयी ख़बरें