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‘लक्ष्यनिष्ठ लखीराम’ का डा. रमन सिंह ने किया विमोचन




भोपाल,22 सितंबर। पूर्व सांसद और अविभाजित मध्य प्रदेश के प्रख्यात सामाजिक कार्यकर्ता स्वर्गीय लखीराम अग्रवाल के व्यक्तित्व और कृतित्व पर केंद्रित पुस्तक ‘लक्ष्यनिष्ठ लखीराम’ का विमोचन बुधवार को छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री डा.रमन सिंह ने किया। इस ग्रंथ का संपादन माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय के जनसंचार विभाग के अध्यक्ष संजय द्विवेदी ने किया है। इस ग्रंथ में स्वर्गीय लखीराम अग्रवाल की संगठन और नेतृत्व क्षमता के साथ-साथ शून्य से शिखर तक पहुंचने की उनकी जीवनयात्रा का विस्तृत वर्णन है।

समारोह में मुख्यमंत्री डा.रमन सिंह ने स्वर्गीय लखीराम अग्रवाल की दृढ़ता और कठिन समय में सही फैसले लेने की अद्भुत क्षमता को प्रतिपादित किया और कहा कि आज मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ में जो विधायक और मंत्री हैं, उनमें से कई उनके प्रशिक्षण की देन हैं। डा. सिंह ने लखीराम अग्रवाल स्मृति ग्रंथ के प्रकाशन के लिए संजय द्विवेदी को बधाई देते हुए कहा कि इस ग्रंथ में उनकी स्मृतियों को संजोने का कार्य भली भांति किया गया है। समारोह को छत्तीसगढ़ विधानसभा के पूर्व अध्यक्ष धरमलाल कौशिक ने भी संबोधित किया। बिलासपुर स्थित स्व. लखीराम अग्रवाल स्मृति सभागार में आयोजित इस समारोह में छत्तीसगढ़ नगरीय निकाय मंत्री अमर अग्रवाल, विधानसभा उपाध्यक्ष बद्रीधर दीवान, बिलासपुर के सांसद लखनलाल साहू, विधायक राजू क्षत्रिय, विधायक-रायगढ़ रोशनलाल अग्रवाल, बिलासपुर के महापौर किशोर राय आदि गणमान्य नागरिक, पत्रकार, बुद्धिजीवी एवं प्रशासनिक अधिकारी उपस्थित थे।




उन्मादी मीडिया जानों युद्ध क्यों न हो,इसके 23 कारण

ओम थानवी,वरिष्ठ पत्रकार

उड़ी हमले के परिप्रेक्ष्य में एक अनुभवी और ज़िम्मेदार नागरिक ने – जो मेरे मित्र भी हैं – अपने विचार मुझसे साझा किए हैं। उनका कहना है कि इस विकट घड़ी में जुमलों, राजनीतिक आरोपों-प्रत्यारोपों और उन्मादी मीडिया के विलाप से हटकर विवेक बनाए रखने की चरम आवश्यकता है; “युद्ध केवल और केवल अंतिम उपाय है, तभी जब बाक़ी सभी तरीक़े विफल हो चुके हों”। मैं उनसे पूरी तरह सहमत हूँ। वे अपना नाम नहीं देना चाहते, पर उनकी बात मुझे इतनी सारगर्भित और अहम लगी कि उनकी सम्मति से उनका मज़मून आपसे जस-का-तस साझा कर रहा हूँ:

1. ख़याल करें, पंजाब, असम, मिज़ोरम आदि में आतंकवाद पाकिस्तान पर हमले के बग़ैर क़ाबू किया गया था।

2. कश्मीर में भी पिछले साल तक हालात काफ़ी सामान्य हो गए थे। घाटी पर्यटकों से भरी थी और पिछले पाँच साल में घाटी में आतंकवादी घटनाएँ बहुत ही कम हो गई थीं।

3. आतंकवाद को पालने-पोसने के कारण पाकिस्तान आज एक विफल राष्ट्र है।

4. आतंकवाद पालना किसी भस्मासुर को पैदा करने जैसा है। पाकिस्तान में आए दिन बम विस्फोट और आतंकवादी हमले जगज़ाहिर हैं।

5. कभी भारत ने भी भस्मासुर पालने की कोशिश की थी। भिंडरावाले और LTTE के रूप में। उसकी हमने भारी क़ीमत अदा की ।

6. यह बात अपनी जगह सही है कि जब बात सुरक्षा और राष्ट्रहित की हो, तो कई बार युद्ध ज़रूरी हो जाता है।

7. पिछले सत्तर सालों में सैन्य शक्ति का विकास, परमाणु शक्ति, मिसाइलों का विकास, युद्धपोतों, पनडुब्बियों, उपग्रहों, राकेटों आदि की प्रगति युद्ध की तैयारी का ही हिस्सा है।

8. लेकिन यह भी याद रखना चाहिए कि युद्ध केवल और केवल अंतिम उपाय है। तभी जब बाक़ी सभी तरीक़े विफल हो चुके हों।

9. आतंकवाद को पालने और समर्थन देने के कारण ही आज पाकिस्तानी पासपोर्ट को पूरी दुनिया में शक की नज़र से देखा जाता है।

10. अपने नैतिक स्टैंड और आर्थिक, शैक्षिक तरक़्क़ी की वजह से ही भारतीय पासपोर्ट की पूरी दुनिया में इज़्ज़त है और भारतीय न सिर्फ़ दूसरे देशों में आराम से रह रहे हैं, बल्कि सम्मान भी पाते हैं।

11. यदि सिर्फ़ पाकिस्तान को सबक़ सिखाने के लिए जवाबी तरीक़े अपनाए गए, तो विश्व में भारतीय पासपोर्ट के प्रति क्या नज़रिया पनपेगा, ख़ास तौर पर तब जब पूरी दुनिया हिंसा और आतंकवाद से त्रस्त है?

12. पाकिस्तान आज भारत से बहुत पीछे है। भारत की यह तरक़्क़ी ही हमारी असली विजय है।

13. पाकिस्तान की तमाम कोशिशें भारत की इस तरक़्क़ी को रोकने के लिए हैं। इसलिए जो भी जवाबी कार्रवाई हो, वह विकास के इस सफ़र को न तो ब्रेक लगाए, न पीछे की और मोड़े।

14. यदि जवाबी कार्यवाही के चलते भारत के विकास को भारी नुक़सान हुआ तो पाकिस्तान हार कर भी जीत जाएगा।

15. पाकिस्तान की ‘हम तो डूबे हैं सनम, तुम्हें भी ले डूबेंगे’ की नीति को सफल होने का मौक़ा नहीं देना चाहिए।

16. पिछले सात आठ सालों से भारत की स्पेशल फोर्स चुपचाप बदला लेती रही है। सौरभ कालिया और उसके साथियों का बदला भी इसी तरह लिया गया था। हाँ, वह सब मीडिया और जनता से साझा नहीं किया जाता था, क्योंकि राष्ट्रहित में की गई हर कार्यवाही जनता को दिखाने के लिए नहीं की जाती।

17. लोकतंत्र में चुनाव जीतने के लिए बहुत सी बातें कही जाती हैं और भावनाएँ उभारी जाती हैं। वह सब लोकतांत्रिक खेल का हिस्सा है। लेकिन राष्ट्रीय हित के सामरिक फ़ैसले न तो चुनावी बातों के बंधक हो सकते हैं, न भीड़तंत्र से निर्देशित हो सकते हैं, न भावनाओं के वशीभूत हो सकते हैं।

18. निपट शक्ति प्रदर्शन से न तो अमेरिका जैसा देश इराक़, अफ़ग़ानिस्तान, सीरिया आदि पर पूरा नियंत्रण कर सका है, न ही इज़रायल कभी फ़िलिस्तीन को पूरी तरह नेस्तनाबूद कर सका है।

19. हाँ, भारत ज़रूर अपने कई हिस्सों से आतंकवाद का पूरी तरह ख़ात्मा करने में कामयाब हुआ है। हमारा अनुभव और रेकार्ड दूसरे देशों से कहीं बेहतर रहा है। आज ज़रूरत अपने सफल अनुभवों को समझने की है।

20. सामरिक फ़ैसले जनता की राय से नहीं, जानकारों से मशविरे के बाद किए जाते हैं। ये जानकार सिस्टम के भीतर भी होते हैं और पुरानी सरकारों के नुमाइंदे भी इस मशविरे में साथ लिए जा सकते हैं ।

21. राष्ट्रहित के मामलों में सरकार को भीड़तंत्र के दबाव से मुक्त रखना ख़ुद सरकार की, विपक्ष की और मीडिया की – सबकी – सामूहिक ज़िम्मेदारी है, ताकि निर्णय विवेक से, सलाह से और जानकारों की सहमति से हो। और जब ऐसा फ़ैसला हो जाए तो सब एकजुट, चट्टान की तरह खड़े हों।

22. सबसे पहले, इस घड़ी में, देश में अंदरूनी एकता के लिए सामाजिक विभेद और तनाव को कम करने की हर सम्भव कोशिश होनी चाहिए।

23. और अंत में: यह हमेशा याद रखें कि पिछले सत्तर साल में भारत ने हर अंदरूनी-बाहरी चुनौती का सफलता से मुक़ाबला किया है। इन सत्तर सालों में भारत बिखरा नहीं, बल्कि इसने मज़बूती और एकजुटता से उन्नति की है । यक़ीन रखें कि नारों, चुनावी आरोपों-प्रत्यारोपों और उन्मादी मीडिया के विलाप से परे भारत एक सशक्त और सफल राष्ट्र है। जय हिंद।

@fb

अर्णब का दहाड़हीन रूख देखकर चचा ग़ालिब ही ख़याल आए




अर्णब के अखाड़े में आज आधा हिस्सा विवेक-केंद्रित था। कूटनीति के जानकार ही नहीं, पूर्व सेनाध्यक्ष तक पाकिस्तान पर हमले के ख़तरे समझा रहे थे। कहा गया कि ख़याल करें क्या पाकिस्तान पलट कर हमला नहीं करेगा? इससे भी बड़ा पहलू यह सामने आया कि पाकिस्तान की सुरक्षा पर हाथ देख क्या चीन चुप बैठा देखता रहेगा? वह पाकिस्तान के साथ हो जाएगा। एक पूर्व राजनयिक ने कहा – 1962 वाली चोट न हो जाय।

बहस के अगले हिस्से में जनरल बक्षी की धारा मुखर हो गई। मारूफ़ रज़ा – जिन्हें राजनयिक केसी सिंह पहले फटकार चुके थे – ने कहा टाइधारी राजनयिक कुछ नहीं कर सकते, सेना पर छोड़ दो सब कुछ। मगर अर्णब का समापन वक्तव्य आश्चर्यजनक रूप से संयत था – यह सही है कि राष्ट्र अधीर है, पर जो किया जाय जल्दबाज़ी में न किया जाय।
क्या वाक़ई उन्मादी तत्त्व जल्द विवेक की ओर झुकने लगे? और चैनलों का पता नहीं, पर अर्णब का दहाड़हीन रूख देखकर चचा ग़ालिब ही ख़याल आए – कभी नेकी भी उसके जी में आए है … जफ़ाएँ करके अपनी याद शरमा जाए है …



पंकज श्रीवास्तव

अर्णव को पता चल चुका है कि सरकार हमला करने नहीं जा रही है…वह इज़रायल की तरह घुस कर मारने की वक़ालत चीख चीख कर कर रहा था…लगता है कि पीएमओ से चेताया गया है …. जोकर साबित होने से बचने के लिए संयम की गोली निगल रहा है…

टीवी पर पाकिस्तानी चरमपंथियों की धमकी !

टीवी शो में शराब पीकर बोलते मौलवी हाफ़िज़ ताहिर अशरफ़ी
टीवी शो में शराब पीकर बोलते मौलवी हाफ़िज़ ताहिर अशरफ़ी

संजय तिवारी,पत्रकार

पाकिस्तान से आनेवाली परमाणु धमकियां बढ़ गयी हैं। पहले टीवी पर कुछ चरमपंथी धमकी देते थे। अब विदेश और रक्षा मंत्री भी परमाणु हमले की धमकी देने लगे हैं। इससे भारत को कोई खतरा हो न हो पाकिस्तान जरूर खतरे में पड़ जाएगा। वह जितना परमाणु बम की धमकी देगा दुनिया उतना उसके खिलाफ होती जाएगी। वह दिन दूर नहीं जब उसके परमाणु जखीरे पर निगरानी रखने के लिए दुनियाभर की ताकते एक हो जाएंगी। यह भी हो सकता है कि उस पर कूटनीतिक हमला करके उसका परमाणु हथियार छीन लिया जाए या फिर पाकिस्तान को ऐसे गृहयुद्ध में फंसा दिया जाए कि उसके परमाणु हथियार अपने आप संयुक्त राष्ट्र की सेनाओं के हाथ में चले जाएं।

निश्चित रूप से दबाव बढ़ा तो चीन, सऊदी अरब और तुर्की पाकिस्तान की मदद करेंगे। लेकिन मामला परमाणु बम का हो तो दुनिया में कोई ताकत ऐसे देश की बहुत लंबे समय तक मदद नहीं कर सकता जो बात बात में परमाणु बम चलाने की धमकी देता हो। जो भी होगा, पाकिस्तान बहुत तेजी से परमाणु पतन की ओर आगे बढ़ रहा है। जिस परमाणु बम को भुट्टो ने इस्लामिक बम बताकर पाकिस्तान की ताकत बनाया था वही उसकी सबसे बड़ी कमजोरी साबित हो जाएगा।

हो सकता है भारत पाकिस्तान के बीच युद्ध हो, हो सकता है न भी हो। बदली दुनिया में भारत ने पाकिस्तान के खिलाफ जो आक्रामक रुख अख्तियार किया है वह रणनीतिक और कूटनीतिक है। पाकिस्तान पूरी तरह से अपने पाले हुए आतंकियों के पाले में चला गया है। अब वह आतंकवाद पर काबू नहीं पा सकता। आतंकवादी ही उस पर काबू पायेंगे। ऐसे माहौल में कूटनीतिक हमला सामरिक हमले से ज्यादा महत्वपूर्ण और निर्णायक होगा। ठीक उसी तरह जैसे अमेरिका ने किसी जमाने में सोवियत संघ पर किया था। दुनिया के दो परमाणु देश टकराये और बंदूक से एक गोली तक नहीं चली, सारे परमाणु हथियार धरे रह गये और सोवियत संघ का पतन हो गया। लोकतंत्र में आक्रामक कूटनीति आक्रामक युद्ध से ज्यादा विध्वंसक होती है।

@fb

मुजफ्फरपुर में ‘मीडिया खबर मीडिया कॉनक्लेव’ का शानदार समापन

मीडिया खबर मीडिया कॉनक्लेव 2016
मीडिया खबर मीडिया कॉनक्लेव 2016

बिहार में मीडिया के अर्थशास्त्र और राष्ट्रीय मीडिया में बिहार पर परिचर्चा

मीडिया खबर मीडिया कॉनक्लेव, मुजफ्फरपुर
मीडिया खबर मीडिया कॉनक्लेव, मुजफ्फरपुर

मुजफ्फरपुर. राष्ट्रीय मीडिया में बिहार की ख़बरें कम होती है और जो ख़बरें दिखाई भी जाती है वे बिहार की नकरात्मक छवि बनाते है. आखिर बिहार को लेकर नकरात्मक ख़बरों के पीछे का क्या अर्थशास्त्र है? ऐसे ही तमाम सवालों पर मुज़फ्फरपुर, मीडिया खबर मीडिया कॉनक्लेव के दौरान चर्चा हुई और राष्ट्रीय स्तर के इस सेमिनार में दिग्गज पत्रकारों ने हिस्सा लेकर अपनी राय व्यक्त की.

दीप प्रज्ज्वलन के साथ शुरू हुए कार्यक्रम के उदघाट्न भाषण में मुजफ्फरपुर शहर के विधायक सुरेश शर्मा ने कार्यक्रम की तारीफ़ करते हुए कहा कि राष्ट्रीय पटल पर मुजफ्फरपुर की सांस्कृतिक पहचान को और अधिक मजबूत बनाने के लिए ऐसे और कार्यक्रम समय-समय पर होते रहने चाहिए. साथ में उन्होंने मुजफ्फरपुर में एयरपोर्ट की आवश्यकता पर भी बल दिया.

वरिष्ठ पत्रकार और बीबीसी हिंदी के पूर्व पत्रकार मणिकांत ठाकुर ने परिचर्चा की शुरुआत करते हुए बिहार की मीडिया के इतिहास पर प्रकाश डाला और वर्तमान में बिहार के मीडिया की दयनीय स्थिति पर चिंता जाहिर की. उन्होंने राष्ट्रीय मीडिया द्वारा बिहार की सिर्फ नकरात्मक ख़बरें दिखाने की प्रवृति पर निशाना साधते हुए संपादकों को आगाह किया कि वे अपनी मानसिकता बदलें.

वरिष्ठ पत्रकार शैलेश ने न्यूज़ चैनलों के अपने अनुभवों को बांटते हुए कहा कि अच्छी ख़बरों का भी अपना एक अलग अर्थशास्त्र होता है. मेरा मानना है कि नकरात्मकता की बजाए ख़बरों की गुणवत्ता को बरकरार रखते हुए भी मीडिया के व्यापार में लाभ कमाया जा सकता है. लेकिन फायनेंशियल एक्सपर्ट और फिल्म प्रोड्यूसर कवि कुमार ने बिहार में मीडिया के खराब अर्थशास्त्र के लिए सरकारी नीतियों के अलावा उद्योग धंधे की कमी को बड़ा कारण माना. उन्होंने कहा जब इंडस्ट्री ही नहीं होगी तो विज्ञापन कैसे मिलेगा और विज्ञापन नहीं मिलेगा तो मीडिया का अर्थशास्त्र कैसे तैयार होगा.इसलिए जरूरी है कि समाज,सरकार और उधमी अपनी मानसिकता बदलें.

लेकिन इंडिया न्यूज़ के मैनेजिंग एडिटर राणा यशवंत ने मीडिया के अर्धसत्य और अर्थशास्त्र का मनोवैज्ञानिक विश्लेषण करते हुए कहा कि नकरात्मक ख़बरों के लिए सिर्फ चैनल नहीं बल्कि बिहार के दर्शक भी समान रूप से जिम्मेदार हैं. उन्होंने वहां बैठे श्रोताओं से सवालिया लहजे में पूछा कि आप अपने आस-पास की कितनी सकरात्मक चीजों को हाईलाईट करते हैं? बिहार से नकरात्मक ख़बरें ही छन-छनकर आ रही है तो राष्ट्रीय समाचार चैनल इसे कैसे नज़रअंदाज कर सकता है.

मीडिया खबर मीडिया कॉनक्लेव 2016
मीडिया खबर मीडिया कॉनक्लेव 2016

सीएमएस मीडिया लैब के प्रमुख ‘प्रभाकर’ ने आंकडें पेश करते हुए कहा कि राष्ट्रीय मीडिया में बिहार की ख़बरें एक प्रतिशत से भी कम होती है और जो खबरें दिखाई भी जाती है उसमें 95% ख़बरें नकरात्मक होती है.ये स्थिति तब है जब ज्यादातर चैनलों के संपादक बिहार के हैं. बिहार को लेकर राष्ट्रीय मीडिया के इस अर्थशास्त्र को समझना वाकई मुश्किल काम है.

वही कशिश न्यूज़ के स्टेट हेड(बिहार) संतोष सिंह ने बिहार में क्षेत्रीय चैनलों की दयनीय आर्थिक स्थिति के लिए डिस्ट्रीब्यूशन को ज़िम्मेदार ठहराया और कहा कि डिस्ट्रीब्यूशन की व्यवस्था जबतक ठीक नहीं होगी तबतक क्षेत्रीय चैनलों की अर्थव्यस्था भी ठीक नहीं होगी.इसके लिए सभी चैनलों को एकजुट होकर काम करना होगा. लेकिन ईटीवी के नेशनल एडिटर आसित कुणाल ने क्षेत्रीय चैनलों के भविष्य को उज्जवल बताते हुए इस बात पर बल दिया कि यदि क्षेत्रीयता को ध्यान में रखकर कंटेंट तैयार किया जाए तो अर्थशास्त्र भी तैयार हो जाएगा. प्रातःकमल के संपादक ब्रजेश ठाकुर ने छोटे और मझोले अखबारों की समस्या पर बात की और कहा कि छोटे अखबार की अर्थव्यस्था संकट में है.

मीडिया खबर मीडिया कॉनक्लेव, मुजफ्फरपुर
मीडिया खबर मीडिया कॉनक्लेव, मुजफ्फरपुर

‘मीडिया खबर मीडिया कॉनक्लेव’ के दौरान ‘टीवी न्यूज़ चैनल्स इन इंडिया’ नाम की किताब का विमोचन और ‘किसान मंत्र’ और ‘बिहार दस्तक’ नाम के दो वेबसाइटों को लॉन्च भी किया गया. इसके अलावा ग्रामीण महिलाओं द्वारा संचालित ‘अप्पन समाचार’ और भोजपुरी वेबसाईट ‘जोगीरा डॉट कॉम’ को भी ‘मीडिया खबर मीडिया अवार्ड’ से सम्मानित किया गया. कार्यक्रम के दौरान मंच संचालन पुष्कर पुष्प ने किया जबकि धन्यवाद ज्ञापन ब्रजेश कुमार ने दिया,वही मनीष ठाकुर ने एक सत्र में सूत्रधार की भूमिका निभाई. इस मौके पर पत्रकार,बुद्धिजीवी और छात्रों के अलावा बड़ी संख्या में किसान भी मौजूद थे. मुजफ्फरपुर के अलावा दूसरे राज्यों और जिलों से कई पत्रकार,बुद्धिजीवी,राजनेता और कॉरपोरेट मौजूद थे. कॉनक्लेव के दौरान खचाखच भरे सभाघर में गोपाल त्रिवेदी(पूर्व उप कुलपति,पूसा एग्रीक्लचर),एस डी पांडेय(लीची अनुसंधान केंद्र),शैलेन्द्र सिंह(संपादक,प्रभात खबर,मुजफ्फरपुर),रीना कुमारी(विधायक,कुढनी), शिवकुमार (वरिष्ठ समाजवादी चिंतक), जीवनानंद सिंह(किसान), प्रेम बाबू(किसान),डॉ.विशाल नाथ(निदेशक,लीची अनुसंधान केंद्र),इंदिरा देवी(अध्यक्ष,जिला परिषद,मुजफ्फरपुर),आशुतोष श्रीवास्तव(कशिश न्यूज़),विजय श्रीवास्तव(दैनिक जागरण),ओम प्रकाश(कॉरपोरेट),शतीस कुमार,नरेश प्रसाद सिंह, शम्भू प्र.सिंह, विकास सिंह, लोकेश पुष्कर, सत्यप्रकाश, आलोक, नितेश, राजेश आदि अनेक गणमान्य लोगों के साथ बड़ी संख्या में लंगट सिंह कॉलेज के विद्यार्थी भी मौजूद थे.

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