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चैनलों का ब्रेकफास्ट इस्लामाबाद में होगा जब अर्नब वहां तिरंगा फहराएगा

आउटलुक के कवर पेज पर विलेन अर्णब गोस्वामी !

अजीत अंजुम,मैनेजिंग एडिटर,इंडिया टीवी

किसी भाई ने कमेंट में ये लिखा था…हम सब इसके किरदार हैं ..कभी कभी ख़ुद पर हँसना चाहिए …आप भी मजे लीजिये
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कल रात एबिपी न्यूज़, न्यूज़ नेशन, आजतक, एनडीटीवी, जी न्यूज़, आईबीएन7, इंडिया न्यूज़, इंडिया टीवी, सुदर्शन टीवी, ndtv, टाइम्स नाउ, टीवी टुडे, न्यूज़ x, सभी चैनलों पर आठ बजे से भयंकर युद्ध शुरू हुआ। पहले बंदूकें चली, फिर मशीनगन चले, मोर्टार चले, तोपखाना बमबारी करने लगा, मल्टी बरेल रॉकेट्स फायर हुए, मिसाइलें चलने लगी, युद्धक जहाज और जलपोत गडगडाने लगे। मैंने जीवन में कभी इतना घनघोर भयंकर हाहाकारी युद्ध नही देखा था। युद्ध के परिणाम की सोचते ही सिहर गया। फिर देखा जनरल बख्शी के मुंह से झाग निकल रहा है, नथुने फडफडा रहे हैं, आँखे गुस्से से लाल हो चुकी हैं। समझ गया कि अब विजय निश्चित है और फिर टीवी बंद कर के सो गया।

ब्रेकिंग न्यूज़ –
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ज़ी न्यूज़ ने लाहौर पर ….टाइम्स नाउ ने पेशावर एयर बेस, इंडिया न्यूज़ ने कराची, सुदर्शन टीवी ने क्वेटा, आजतक ने गिलगिट बाल्टिस्तान और मुजफ्फराबाद…और इंडिया टीवी ने ग्वादर पोर्ट पे कब्ज़ा कर लिया है ………..भीषण युद्ध जारी है .

दनादन मिसाइल छूट रहे हैं। राहिल शरीफ और नवाज शरीफ बंकर में छुपे हुए हैं। अब सुबह का ब्रेकफास्ट इस्लामाबाद में होगा जब अरनब वहां तिरंगा फहराएगा।

ओम थानवी के निशाने पर एबीपी न्यूज़ के संपादक मिलिंद खांडेकर

milind khandekar abp news

उड़ी में भारतीयों जवानों की शहाडत के बाद देशभर में गुस्से का माहौल है और पूरा देश चाहता है कि पाकिस्तान को मुंहतोड़ जवाब दिया जाए.

समाचार चैनल जनता के मिजाज को समझते इसी पर लगातार ख़बरें कर रहे हैं और ऐसी – ऐसी स्टोरी कर रहे हैं कि मानों बस युद्ध अब शुरू  हुआ या तब.

इसी मुद्दे पर जब एबीपी न्यूज़ के संपादक मिलिंद खांडेकर ने फेसबुक पर स्टेट्स डाला तो वरिष्ठ पत्रकार ओम थानवी ने उसपर तंज कसते हुए लिखा –

भारत का कथित वार रूम। तीनों सेनाध्यक्ष और राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार। मोदी को बताया जा रहा है कि पाकिस्तान पर हम किस तरह हमला बोलेंगे। ख़बर कहती है “रेत के मॉडल” बनाकर समझाया गया है!

रेत के मॉडल? हमले की इतनी सुविचारित योजना? वह भी रक्षामंत्री की अनुपस्थिति में? और योजना की या उसकी बैठक की ख़बर हमले से पहले टीवी को? … ख़बरों के नाम पर क्या-क्या नहीं हो रहा है!

न्यूज़रूम के गिरोह और समुद्री दस्यु गिरोहों में कोई खास फर्क नहीं होता

नवीन कुमार




एक बहुत बड़े संस्थान की घटना सुनिए। उन दिनों मुद्रा स्फीति तेजी से बढ़ रही थी। महंगाई भी बढ़ रही थी। (आज से मिलाएंगे तो उस महंगाई पर छाती पीटने वालों को आत्महत्या करनी पड़ जाएगी।) खैर, विद्वान पत्रकारों के गिरोह रोज मनमोहन सिंह को गालियां देते थे। उनके अर्थशास्त्री होने का मज़ाक उड़ाते थे। एक दिन हुआ यूं कि मेरे आसपास कोई आठ-दस ऐसे ही गिरोहबाज जमा थे। फितरतन मनमोहन सिंह की लानत-मलामत कर रहे थे। रुपया इतना गिर गया। मुद्रा स्फीति काबू में ही नहीं कर पा रहे। ऐसा कैसा अर्थशास्त्री है?

बहुत देर तक मैं सुनता रहा। कुछ बोलने का मतलब था कि सब पिल पड़ते। और यकीन मानिए न्यूज़रूम के गिरोह और समुद्री दस्यु गिरोहों में कोई खास फर्क नहीं होता। लेकिन जब रहा नहीं गया तो जो विद्वान साथी सबसे ज्यादा पसरे हुए थे उनसे पूछा कि अच्छा ये तो बता दीजिए कि मुद्रा स्फीति है किस चिड़िया का नाम? ऐसा क्या हुआ है कि बढ़ गई? पिछली बार ऐसा क्या हुआ था कि घट गई? ऐसा क्या कर दिया जाए कि हम महान अर्थव्यवस्था हो जाएं? कौन-कौन से इंडिकेटर्स हैं मुद्रा स्फीति के? उनका जवाब था – आएं, ये क्या बात हो गई? मैंने बारी-बारी से सबसे पूरी ढिठाई से पूछा। एक ने कहा आप टेस्ट ले रहे हैं? दूसरे ने कहा आप मजाक कर रहे हैं? कुल मिलाकर सब आयं-बांय-शांय करने लगे।

इस समय इस घटना का रेफरेंस ये है कि वही गिरोह अब कह रहा है कि पाकिस्तान पर हमला बोल ही देना चाहिए, लाहौर पर चढ़ जाना चाहिए, सबक सिखा देना चाहिए, अब और बर्दाश्त नहीं होता। उस गिरोह से अंतर्राष्ट्रीय संबंध, विदेश नीति, वैश्विक अर्थव्यवस्था, मुद्रा संकट जैसे मुद्दों पर बात करना शुरू कर दीजिए वो जेब से रजनीगंधा निकालने लगेगा, थूकने चल देगा, तुलसी मिलाने लगेगा। उसके लिए मुद्रा स्फीति भी रजनीगंधा-तुलसी से नियंत्रित होती है और युद्ध भी। लेकिन चूना कौन सा मिलाना है ये दक्खिन टोला के चच्चा बताते हैं। टेस्ट भी तो कोई चीज़ होती है। वही गिरोह कुछ दिनों बाद माहौल बनाने वाला है कि युद्ध देश के लिए अच्छा नहीं होता है। मतलब अपना न खराब न अच्छा, सही वही जो बोलें चच्चा।




पाकिस्तानी पत्रकार ने भारतीय चैनलों को बनाया बुद्धू !

हामिद मीर,पत्रकार,पाकिस्तान
हामिद मीर,पत्रकार,पाकिस्तान

दिलीप मंडल,दलित विचारक

हामिद मीर,पत्रकार,पाकिस्तान
हामिद मीर,पत्रकार,पाकिस्तान

पाकिस्तानी पत्रकार हामिद मीर ने ट्विट किया कि रात 10.20 बजे इस्लामाबाद के ऊपर F16 प्लेन उड़ रहे हैं। कई भारतीय चैनलों ने उनसे फ़ोन पर बात की।

हामिद मीर फ़ोन पर बात करने की जो फ़ीस लेते हैं, उसके आधार पर मेरा अंदाज़ा है कि उन्होंने दो घंटे के अंदर डेढ़ लाख रुपए से ज़्यादा कमा लिए…युद्ध हर किसी के लिए बुरी चीज़ नहीं है।

वैसे किसी भारतीय एंकर ने उनसे यह नहीं पूछा कि रात में उन्हें यह कैसे पता चला कि जो प्लेन उड़ रहा है वह F16 ही है!

मीर बुद्धु बनाकर चला गया अपने डॉलर गिनने।

एक ट्विट से डेढ़ लाख रुपए और यह तो शुरुआत है। वह अभी कई एक्सक्लूसिव बेचेगा।

देखते रहिए…मीर पर नज़र रखिए।

बंदा कमाल का है।

टीवी न्यूज इंडस्ट्री में अपने आठ साल के अनुभव के आधार पर यह लिख रहा हूँ।

फिर मत बोलिएगा कि बताया नहीं

हामिद मीर पर नज़र रखिए।

बीजेपी वाले पाकिस्तान से दोस्ती करने के लिये इतने उतावले क्यों रहते हैं?

यह दिलचस्प तथ्य है कि भारत के किसी कांग्रेसी पीएम ने कभी पाकिस्तान के साथ दोस्ती कायम करने का उतावलापन नहीं दिखाया। मगर बीजेपी वालों ने हर बार दोस्ती की ऐसी मुहिम चलाई कि जैसे भारत और पाक कुम्भ में बिछड़े भाई हों। अटल बिहारी बाजपेयी बस लेकर लाहौर चले गये तो मोदी ने अपना हवाई जहाज ही नवाज शरीफ के दरवाजे पर उतार दिया। किसी कांग्रेसी पीएम ने कभी ऐसी कोई मिसाल पेश की हो यह मुझे याद नहीं।

नेहरू एक ही दफा चीन से ठगे गये और उसके बाद उनके खानदान के तमाम लोगों ने सीख लिया कि दुश्मन दुश्मन ही होता है। एक दिन में अचानक उसके दोस्त बन जाने की कोई गुंजाइश नहीं होती। उससे कुछ समझौते जरूर किये जा सकते हैं ताकि शांति कायम रहे। मगर उतावलापन दिखाना ठीक नहीं। मगर बीजेपी वाले इस बात को नहीं समझते मुहब्बत लेकर जाते हैं और लौटते हैं तो उनके पूँछ में isi वाले पटाखा बांध देते हैं। फिर जंग होती है।

यह सिर्फ इतनी सी बात नहीं कि पाकिस्तान का कट्टरपंथी सेक्टर भारत से दोस्ती नहीं करना चाहता। सच यही है कि पाकिस्तान अपने जन्म से ही एक ही सपना देखता आया है कि उसे भारत को तबाह करना है। पहले कश्मीर फिर बांग्लादेश गंवाकर वह ऐसे इंफेरिओरिटी काम्प्लेक्स का शिकार हो गया है जिसका कोई इलाज नहीं है। एक राष्ट्र के रूप में भारत के सामने कई सपने हैं। जैसे विकसित देशों की सूची में शामिल होना और सुरक्षा परिषद की सदस्यता हासिल करना। मगर पाकिस्तान का सपना क्या है? सिर्फ भारत को तबाह करना और कश्मीर और बांग्लादेश का बदला लेना।

हम भी चीन से हारे हैं। मगर हमने कभी चीन को मजा चखाने के लिए अपने अस्तित्व को दांव पर लगाने का जुनून नहीं पाला। हमने अलग रास्ता चुना। इस दुनिया में अपनी अलग पहचान बनाने की तरफ कदम बढ़ाया। हालाँकि इसके बावजूद हम कई कमियों के शिकार हैं मगर ईश्वर की कृपा है कि हम पाकिस्तान नहीं हुए।
यह हमारी बदकिस्मती है कि हमें एक ऐसा कुंठित पड़ोसी मिला है जो भूखे रहकर फिदाईनो को बम बनाने के लिए पैसा देता है। अब उसे हमें झेलना है। मगर इस झेलना का मतलब यह कतई नहीं है कि हम उसके साथ दोस्ती कर लें। क्योंकि दोस्ती की भी एक तासीर होती है। आप हर किसी के दोस्त नहीं हो सकते। आप दुश्मनी की धार को कम कर सकते हैं। सम्बन्ध सामान्य बना सकते हैं और लम्बे वक़्त में अगर सम्बन्ध सामान्य रहे और वक़्त की कसौटी पर खड़े उतरे तभी दोस्ती का हाथ बढ़ाया जा सकता है।
मगर अफ़सोस बीजेपी वालों ने हर बार इंस्टेंट नूडल की तरह दुश्मनी को दोस्ती में बदलने की कोशिश की और नतीजा यह हुआ कि जंग जैसे हालात बन गये। यह सच है कि बाद के हालात को मोदी और उसकी टीम ने अच्छी तरह से हैंडल किया है और हमने पाकिस्तान को अलग थलग करने में काफी हद तक सफलता हासिल की है। मगर मोदी जी के दो साल तक चले अन्तर्राष्ट्रीय अभियानों का हासिल यही होना चाहिये? यह अभियान तो सुरक्षा परिषद की स्थायी सीट के लिये था और पूँजी निवेश के लिए था। क्या हम दो साल की उस मेहनत के बदले पाकिस्तान को झुका कर खुश हो सकते हैं?

ध्यान रखिये, हम पाकिस्तान नहीं हैं। पाकिस्तान की तबाही हमारा मकसद नहीं हो सकता। हाँ उसकी शैतानियों की सजा हम देंगे और उसी तरह देंगे जैसे कोई वर्ल्ड पॉवर देता है। मगर हम उसके पीछे उलझे नहीं रहेंगे। न दोस्ती के लिये न दुश्मनी के लिए। क्योंकि हमारा मकसद पाकिस्तान नहीं है। हमारा मकसद उससे कहीं अधिक है।

(लेखक प्रभात खबर से जुड़े हैं. आलेख उनके एफबी वॉल से साभार)

पुष्य मित्र

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