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समाचार चैनलों पर ‘बलात्कार’ का ‘बलात्कार’

women molestation

दिल्ली में महिलाओं के साथ बदसलूकी की वारदातें लगातार घटती हैं। मीडिया में इस तरह की घटनाएं सुर्खियां बटोरती हैं। इस तरह की घटनाओं की रिपोर्टिंग करते हुए मीडिया में नियम हैं, पर संयम नहीं!

वारदात की शिकार महिला का नाम, पता, पेशा सब उद्घाटित करके बार-बार ‘बलात्कार’ और ‘गैंगरेप’ जैसे शब्दों को दोहरा-दोहरा कर कितने घंटों बलात्कार किया, कैसे किया –इनका सबका शाब्दिक वर्णन कर जैसे न थके हों तो फिर से पूरी घटना का नाट्य-रूपांतरण पेश करते हैं जैसे ये कोई घृणित पैशाचिक घटना नहीं कोई तमाशा हो!

जिस घटना को मीडिया से बताते हुए दिल्ली पुलिस की महिला ऑफिसर की जुबान कई बार रूकी और अंत में उसने इसके लिए ‘वारदात’ शब्द का प्रयोग किया , वहीं उत्पीड़ितों की आवाज़ होने का दावा करनेवाली मीडिया में इस तरह की जघन्य घटना हमेशा पोर्नोग्रैफिक-भाषा-बिंबों के जरिए बयान की जाती है।

इसे कहते हैं रक्षा में हत्या!

(दिल्ली विश्वविद्यलय में मीडिया और मॉस कम्युनिकेशन विभाग में अध्यापन कार्य कर रही सुधा सिंह के फेसबुक वॉल से साभार)

हेडलाइन टुडे इस बेहतरीन कवरेज के लिए बधाई का पात्र

“हेडलाइन टुडे चैनल” ने एक रिपोर्ट दिल्ली के शोहदों पर दिखाई, इस रिपोर्ट में दिखाया कि किस तरह पुलिस ने अभी भी सक्रियता नहीं दिखाई है और दिल्ली आज भी असुरक्षित शहर है औरतों के लिए।
इस चैनल की महिला संवाददाता के साथ छेड़खानी करने वाले तीन मनचले कैमरे में धरे गए और पुलिस देखती रही ,पुलिस वालों ने कोई एक्शन नहीं लिया, मनचले बदतमीजी करते रहे,बाद में उनको पता चला कि उनके इस कुकर्म को कैमरे में कैद कर लिया गया है तो भागे,लेकिनतब तक वे सभी कैमरे में कैद थे।
यह रिपोर्ट ऐसे समय आई जब संसद से सड़क तक दिल्ली में शोहदों के खिलाफ प्रतिवाद चल रहा था।
इससे यही पता चलता है कि दिल्ली के शोहदे किसी की परवाह नहीं करते।
हेडलाइन टुडे इस बेहतरीन कवरेज के लिए बधाई का पात्र है।
(प्रोफेसर जगदीश्वर चतुर्वेदी के फेसबुक वॉल से साभार)

अंजना कश्यप के साथ मनचलों की चुहलबाजी, कैमरा देख दुम दबाकर भागे

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प्रतिकात्मक तस्वीर

दिल्ली में एक लड़की के साथ दुष्कर्म हुआ तो सुरक्षा व्यवस्था के हालात का जायजा लेने के लिए आजतक ने दस महिला रिपोर्टर की टीम को सड़क पर उतार दिया. आजतक की प्रमुख एंकर अंजना कश्यप भी उनमें से एक थी. लेकिन जब वह अपनी तफ्तीश कर रही थी तभी कुछ मनचले छेडखानी के इरादे से अंजना कश्यप के पास पहुंचे , लेकिन कैमरा देखते रफूचक्कर हो गए. पूरा वीडियो :

काश आजतक का एक कैमरा वहां भी होता !

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anjana-kashyap-h1न्यूज़ चैनलों के क्राइम शो की दुनिया से निकलकर कई बार क्राइम और क्रिमिनल अपने सबसे घिनौने रूप में कुछ यूँ सामने आकर खड़े हो जाते हैं कि सहसा विश्वास नहीं होता कि ऐसा भी हो सकता है. हकीकत के हकीकत होने का यकीन नहीं होता और यह सब अपराध कार्यक्रमों के नाटकीय रूपांतरण जैसा लगता है. दिल्ली में बीते दिन एक महिला के साथ चलती बस में गैंगरेप हुआ तो सत्ता के गलियारे से लेकर सड़क तक और फेसबुक – ट्वीटर से लेकर न्यूज़ चैनलों के स्क्रीन तक शोर – ही – शोर सुनायी दिया.

आम जनता में ऐसी घटनाओं को लेकर व्याकुलता है और वह पत्थर मार – मार कर बलात्कारियों का फैसला तुरत – फुरत कर देना चाहती है ताकि उसके घर की माँ – बहन सुरक्षित रह सके. दूसरी तरफ विपक्षी दलों के लिए सत्ता पर काबिज पार्टी को घेरने का एक सुनहरा अवसर. ऐसे में समाचार चैनलों के लिए भी बड़ी गुंजाइश बनती है. जी – जिंदल के उगाही वाली संस्कृति के ज़माने में खबरों के कारोबार के बीच थोडा सरोकार दिखाने का मौका खबरिया चैनलों को भी ऐसी घटनाओं के घटित होने के बाद मिल जाता है. इसलिए आजतक से लेकर एबीपी न्यूज़ और तमाम बड़े – छोटे चैनल एक मुहिम की तरह खबर चलाते हैं.

दिल्ली में बलात्कार, टेलीविजन चैनलों पर सरोकार

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मेरा सवाल सीधा है – क्या हमें महिला आयोग जैसे चिंता जताने वाले आयोगों की जरूरत है ।। क्या हम अपराध से जूझने के लिए तैयार हैं। क्या हम अपराध को लेकर संवेदनशील हैं। क्या हम एकजुट हो पाते हैं और क्या हम सोती हुई सत्ता को जगाने और झकझोर डालने के काबिल हैं। कल एक अपराध हुआ- जघन्य, दुखद और बेहद शर्मनाक। देश की संसद में बहस हुई है। सुषमा स्वराज, मायावती और जया बच्चन जोरदार तरीके से बोलतीं दिखीं।

फेसबुक पूरी तरह से दुख में सराबोर। वसंत विहार थाने के बाहर लोगों का आक्रोश है और टेलीविजन चैनलों पर सरोकार। पर क्या इसके कोई नतीजे निकलेंगें। हर बार ऐसा होता है। कुछ अपराध अनायास होते हैं, कुछ अपराध शातिर तरीके से परत दर परत। जो पीड़ित पुलिस और इन आयोगों के पास जाती हैं, उनका साथ कौन देता है। क्या पुलिस उस पर तुरंत कार्वाई करती है। क्या महिला आयोग कहता है कि हम देगें साथ। हमारा कथित पेज थ्री समाज तब चुप रहता है। वह व्यस्त रहता है।। घटना हो जाए, वो भी बड़ी, तो देखिए तमाशा। इस सबके बीच एक अदद पीड़ित हमेशा के लिए एक ऐसा युद्ध हार जाता है जिसकी न तो वो शुरूआत करता है और न ही जिसके लिए वो जिम्मेदार होता है।

दूसरे अपराध वे जो परतों में नहीं, किसी एक पल पर होते हैं. जैसे इस घटना में हुआ। बस दिल्ली में घूमती रही। पुलिस का सीसीटीवी ठीक से काम नहीं कर रहा था, वो लड़की बस में चिल्लाई होगी, उसका दोस्त भी चिल्लाया होगा पर किसी को आवाज नहीं सुनाई दी। ऐसे अपराध करने वाला अपराधी किसी अजीब मानसिक विकृति से भरे आत्मविश्वास से लबरेज होता है। वह कानून पर जमकर हंसता है और यह मान कर चलता है कि कुछ नहीं होगा। वह उन तस्वीरों पर विश्वास रखता है जो उसे दिखती हैं। संसद में पहुंचते अपराधी, आसानी से जिंदगी में जीत जाते अपराधी।

तो समाज चुप रहता है। घटना से पहले आवाजें कहां चली जाती हैं। किसी को सुनाई नहीं देतीं। घटना के दौरान भी आवाजें सुनाई नहीं देती। घटना के बाद एकाएक दिखती है सक्रियता।

लेकिन इस बार सब कुछ बदल गया है। एकजुट हुआ है समाज। छात्र, अध्यापक, महिला कार्यकर्ता, लेखक। एक जोरदार आवाज उठी है। पर यह भी साफ है कि इस सोती हुई व्यवस्था के बीच अगर मीडिया भी न होता तो घटना के बाद भी कुछ न होता। शुक्र है एक जीवंत मीडिया है हमारे पास।

अब समय है एकदम जोरदार तरीके से किसी एक्शन को लाने का। यह दबाव भी डालने का कि कम से कम कुछ जिम्मेदार लोग इस्तीफे जरूर दें। हमें बलात्कार हो या घरेलू हिंसा, हमारे समाज ने औरत को बार-बार हराया ही है।

अब हमें बेहतर पुलिस चाहिए, बेहतर महिला आयोग।

सीधी बात है- जब तक कुछ कुर्सियां हिलेंगी नहीं, कुछ होगा नहीं। एकदम नहीं ।

( डॉ.वर्तिका नन्दा की एक टिप्पणी )

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