“हेडलाइन टुडे चैनल” ने एक रिपोर्ट दिल्ली के शोहदों पर दिखाई, इस रिपोर्ट में दिखाया कि किस तरह पुलिस ने अभी भी सक्रियता नहीं दिखाई है और दिल्ली आज भी असुरक्षित शहर है औरतों के लिए।
इस चैनल की महिला संवाददाता के साथ छेड़खानी करने वाले तीन मनचले कैमरे में धरे गए और पुलिस देखती रही ,पुलिस वालों ने कोई एक्शन नहीं लिया, मनचले बदतमीजी करते रहे,बाद में उनको पता चला कि उनके इस कुकर्म को कैमरे में कैद कर लिया गया है तो भागे,लेकिनतब तक वे सभी कैमरे में कैद थे।
यह रिपोर्ट ऐसे समय आई जब संसद से सड़क तक दिल्ली में शोहदों के खिलाफ प्रतिवाद चल रहा था।
इससे यही पता चलता है कि दिल्ली के शोहदे किसी की परवाह नहीं करते।
हेडलाइन टुडे इस बेहतरीन कवरेज के लिए बधाई का पात्र है।
(प्रोफेसर जगदीश्वर चतुर्वेदी के फेसबुक वॉल से साभार)
हेडलाइन टुडे इस बेहतरीन कवरेज के लिए बधाई का पात्र
अंजना कश्यप के साथ मनचलों की चुहलबाजी, कैमरा देख दुम दबाकर भागे
दिल्ली में एक लड़की के साथ दुष्कर्म हुआ तो सुरक्षा व्यवस्था के हालात का जायजा लेने के लिए आजतक ने दस महिला रिपोर्टर की टीम को सड़क पर उतार दिया. आजतक की प्रमुख एंकर अंजना कश्यप भी उनमें से एक थी. लेकिन जब वह अपनी तफ्तीश कर रही थी तभी कुछ मनचले छेडखानी के इरादे से अंजना कश्यप के पास पहुंचे , लेकिन कैमरा देखते रफूचक्कर हो गए. पूरा वीडियो :
काश आजतक का एक कैमरा वहां भी होता !
न्यूज़ चैनलों के क्राइम शो की दुनिया से निकलकर कई बार क्राइम और क्रिमिनल अपने सबसे घिनौने रूप में कुछ यूँ सामने आकर खड़े हो जाते हैं कि सहसा विश्वास नहीं होता कि ऐसा भी हो सकता है. हकीकत के हकीकत होने का यकीन नहीं होता और यह सब अपराध कार्यक्रमों के नाटकीय रूपांतरण जैसा लगता है. दिल्ली में बीते दिन एक महिला के साथ चलती बस में गैंगरेप हुआ तो सत्ता के गलियारे से लेकर सड़क तक और फेसबुक – ट्वीटर से लेकर न्यूज़ चैनलों के स्क्रीन तक शोर – ही – शोर सुनायी दिया.
आम जनता में ऐसी घटनाओं को लेकर व्याकुलता है और वह पत्थर मार – मार कर बलात्कारियों का फैसला तुरत – फुरत कर देना चाहती है ताकि उसके घर की माँ – बहन सुरक्षित रह सके. दूसरी तरफ विपक्षी दलों के लिए सत्ता पर काबिज पार्टी को घेरने का एक सुनहरा अवसर. ऐसे में समाचार चैनलों के लिए भी बड़ी गुंजाइश बनती है. जी – जिंदल के उगाही वाली संस्कृति के ज़माने में खबरों के कारोबार के बीच थोडा सरोकार दिखाने का मौका खबरिया चैनलों को भी ऐसी घटनाओं के घटित होने के बाद मिल जाता है. इसलिए आजतक से लेकर एबीपी न्यूज़ और तमाम बड़े – छोटे चैनल एक मुहिम की तरह खबर चलाते हैं.
दिल्ली में बलात्कार, टेलीविजन चैनलों पर सरोकार
मेरा सवाल सीधा है – क्या हमें महिला आयोग जैसे चिंता जताने वाले आयोगों की जरूरत है ।। क्या हम अपराध से जूझने के लिए तैयार हैं। क्या हम अपराध को लेकर संवेदनशील हैं। क्या हम एकजुट हो पाते हैं और क्या हम सोती हुई सत्ता को जगाने और झकझोर डालने के काबिल हैं। कल एक अपराध हुआ- जघन्य, दुखद और बेहद शर्मनाक। देश की संसद में बहस हुई है। सुषमा स्वराज, मायावती और जया बच्चन जोरदार तरीके से बोलतीं दिखीं।
फेसबुक पूरी तरह से दुख में सराबोर। वसंत विहार थाने के बाहर लोगों का आक्रोश है और टेलीविजन चैनलों पर सरोकार। पर क्या इसके कोई नतीजे निकलेंगें। हर बार ऐसा होता है। कुछ अपराध अनायास होते हैं, कुछ अपराध शातिर तरीके से परत दर परत। जो पीड़ित पुलिस और इन आयोगों के पास जाती हैं, उनका साथ कौन देता है। क्या पुलिस उस पर तुरंत कार्वाई करती है। क्या महिला आयोग कहता है कि हम देगें साथ। हमारा कथित पेज थ्री समाज तब चुप रहता है। वह व्यस्त रहता है।। घटना हो जाए, वो भी बड़ी, तो देखिए तमाशा। इस सबके बीच एक अदद पीड़ित हमेशा के लिए एक ऐसा युद्ध हार जाता है जिसकी न तो वो शुरूआत करता है और न ही जिसके लिए वो जिम्मेदार होता है।
दूसरे अपराध वे जो परतों में नहीं, किसी एक पल पर होते हैं. जैसे इस घटना में हुआ। बस दिल्ली में घूमती रही। पुलिस का सीसीटीवी ठीक से काम नहीं कर रहा था, वो लड़की बस में चिल्लाई होगी, उसका दोस्त भी चिल्लाया होगा पर किसी को आवाज नहीं सुनाई दी। ऐसे अपराध करने वाला अपराधी किसी अजीब मानसिक विकृति से भरे आत्मविश्वास से लबरेज होता है। वह कानून पर जमकर हंसता है और यह मान कर चलता है कि कुछ नहीं होगा। वह उन तस्वीरों पर विश्वास रखता है जो उसे दिखती हैं। संसद में पहुंचते अपराधी, आसानी से जिंदगी में जीत जाते अपराधी।
तो समाज चुप रहता है। घटना से पहले आवाजें कहां चली जाती हैं। किसी को सुनाई नहीं देतीं। घटना के दौरान भी आवाजें सुनाई नहीं देती। घटना के बाद एकाएक दिखती है सक्रियता।
लेकिन इस बार सब कुछ बदल गया है। एकजुट हुआ है समाज। छात्र, अध्यापक, महिला कार्यकर्ता, लेखक। एक जोरदार आवाज उठी है। पर यह भी साफ है कि इस सोती हुई व्यवस्था के बीच अगर मीडिया भी न होता तो घटना के बाद भी कुछ न होता। शुक्र है एक जीवंत मीडिया है हमारे पास।
अब समय है एकदम जोरदार तरीके से किसी एक्शन को लाने का। यह दबाव भी डालने का कि कम से कम कुछ जिम्मेदार लोग इस्तीफे जरूर दें। हमें बलात्कार हो या घरेलू हिंसा, हमारे समाज ने औरत को बार-बार हराया ही है।
अब हमें बेहतर पुलिस चाहिए, बेहतर महिला आयोग।
सीधी बात है- जब तक कुछ कुर्सियां हिलेंगी नहीं, कुछ होगा नहीं। एकदम नहीं ।
( डॉ.वर्तिका नन्दा की एक टिप्पणी )
दीपक शर्मा और आजतक के चैनल हेड सुप्रिय प्रसाद बधाई के पात्र
अंग्रेजी में एक कहावत है- Power corrupts and absolute power corrupts absolutely…देश के कानून मंत्री सलमान खुर्शीद को कल उनके घर पर प्रेस से मुखातिब होते जिन लोगों ने भी देखा, वो ये बताने के लिए काफी है कि सत्ता किस तरह अपने अहंकार में चूर होती है…’आज तक’ चैनल के ‘ऑपरेशन धृतराष्ट्र’ में दिखाए गए तथ्यों पर अगर पीएम मनमोहन सिंह और यूपीए की हेड सोनिया गांधी धृतराष्ट्र बने हुए हैं और ‘संजय बने सलमान’ पर यकीन करके पूरी ‘महाभारत’ को समझ रहे हैं तो सिर्फ इसलिए कि अपने एक ‘वफादार सिपहसालार’ को आखिरी दम तक बचाया जाए…चाहे उस सिपहसालार ने कितना भी बड़ा ‘घोटाला’ क्यों न किया हो.
सलमान के ट्रस्ट ने अनियमितता की है या नहीं, ये बहुत जल्द देश के सामने आ जाएगा लेकिन पूरे मामले को जिस तरह कानून मंत्री ने हैंडल किया, वह शर्मनाक है. इसे कहते हैं कि एक झूठ को सच साबित करने के लिए आप सौ झूठ और बोलिए…और फिर तानाशाह की तरह व्यवहार करिए…क्या सलमान खुर्शीद देश को ये बताएंगे कि जिन आरोपों पर सफाई देने के लिए वे पीसी कर रहे थे, उस पीसी से TV Today group के Reporters को बाहर निकल जाने की बात वो किस अधिकार और हक से कह रहे थे??? एक कानून मंत्री को क्या इतना भी नहीं मालूम कि लोकतंत्र में देश का हर नागरिक उनसे सवाल पूछ सकता है…अगर उन्हें ये नहीं मालूम तो उन्हें देश का कानून मंत्री बने रहने को कोई हक नहीं.
दूसरी बात, क्या उन्हें सिलसिलेवार तरीके से उन आरोपों का जवाब नहीं देना चाहिए था, जो उन पर लग रहे हैं???!!! उन सवालों के जवाब से मुंह चुराकर वे यही तो बता रहे थे कि चोर की दाढ़ी में तिनका होता है…अगर नहीं तो फिर वे सिर्फ अपनी ही क्यों कहना चाह रहे थे…क्या वह जो बोलेंगे, वही परम सत्य होगा..???!!!
तीसरी बात, उन्हें ये कहने का हक किसने दिया कि अरविंद केजरीवाल गटर के कीड़े हैं…???!!! ये बात कहकर सलमान ने ये साबित कर दिया कि वे देश का कानून मंत्री तो क्या, किसी सरकारी विभाग में चपरासी बनने के लायक भी नहीं हैं…क्या उन्हें इतनी भी समझ नहीं कि लोकतंत्र में कोई भी व्यक्ति सार्वजनिक पद पर आसीन किसी भी व्यक्ति की कारस्तानियों पर सवाल पूछ सकता है..!!! अरविंद के कार्यकलापों से आपकी असहमति हो सकती है लेकिन वो गंदी नाली के कीड़े कैसे हो गए और आप First class citizen कैसे हो गए…अरे, आप तो आम जनता के सेवक हैं कानून मंत्री जी…और जनता को गाली देकर आपने संविधान और लोकतंत्र का अपमान किया है..फिर भी लोग कहते हैं सलमान खुर्शीद बड़े तहजीब वाले आदमी हैं..आपकी हरकतों से तो ऐसा कतई नहीं लगा…कम से कम अपने नाना मरहूम डॉ जाकिर हुसैन साहब का तो ख्याल कर लिया होता आपने…क्यों उनके नाम को रुसवा कर रहे हैं…???
चौथी बात, इस पूरे प्रकरण में पूरी शिद्दत से अपनी खबर पर कायम रहने के लिए ‘आज तक’ की पूरी टीम, खास करके Editor Investigation दीपक शर्मा और आज तक के हेड सुप्रिय प्रसाद जी को बधाई, जो पूरी तैयारी के साथ मैदान में उतरे और सत्ता की कारस्तानियों को चैलेंज किया…निर्भीक होकर उसका पर्दाफाश किया…और बधाई India Today group के मालिक अरूण पुरी जी को भी, जो अपनी टीम के साथ खड़े हैं…
आपको अंदाजा नहीं होगा कि जब आप इस तरह की खबर छापते-दिखाते हैं, तो सत्ता आप पर किस-किस तरह के दबाव डालती है…धमकाती है…डराती है…लेकिन उन्हें झेलकर सत्ता का मुकाबला करना वाकई में एक सुखद अनुभूति है..आप एक शहर के डीएम-एसपी के खिलाफ खबर छाप दीजिए तो अखबार का higher management और मालिक लोग interfere करने लगते हैं…खबर को सॉफ्ट करने का आदेश सुना देते हैं..या फिर ऐसा करने की धमकीभरी नसीहत दे डालते हैं…फिर ये तो केंद्र सरकार के एक पावरफुल मंत्री और गांधी परिवार के loyal सलमान खुर्शीद की कारस्तानियों का गुलदस्ता है…मैं अंदाजा लगा सकता हूं कि back door से केंद्र सरकार की तरफ से किस-किस तरह के दबाव बनाए जा रहे होंगे या बनाए गए होंगे…
लेकिन आखिर में जीत सत्य की ही होती है…हर हाल में…’सत्यमेव जयते’…मुझे इस बात की बेहद खुशी है कि हमारे देश का मीडिया अभी इतना कमजोर नहीं हुआ कि सत्ता उसे झुका सके, कुचल सके, मिटा सके. जो सच है, वो सबके सामने आएगा ही. और हां, अगर सलमान खुर्शीद निर्दोष साबित हुए, तो संबंधित चैनल को उनसे माफी मांगने से भी कोई गुरेज नहीं होना चाहिए और उस खबर को भी उतने ही prominent तरीके से दिखाया जाना चाहिए…लेकिन ऐसे आसार कम ही हैं कि खबर गलत हो…आज तक चैनल और उसकी पूरी टीम अपनी विश्वसनीयता के लिए जानी जाती है…सो अगर सलमान खुर्शीद बौखलाए हुए हैं तो इसमें कोई अचरज नहीं…ठीक ही कहा गया है- झुठ के पांव नहीं होते. ( पत्रकार नदीम अख्तर के फेसबुक प्रोफाइल से साभार)