रोअहू सब मिलिकै आवहु भारत भाई। हा हा! भारतदुर्दशा न देखी जाई ।।
ये पंक्तियाँ सन् 1875 ई. में भारतेन्दु हरिश्चन्द्र द्वारा रचित नाटक “भारत दुर्दशा” की है।जिसमे ब्रिटिश राज में भारत की दयनीय स्थिति का चित्रण किया गया है साथ ही इस स्थिति का सबसे बड़ा कारण अंग्रेजों की भारत को लूटने की आर्थिक नीति को माना था।
आज ठीक 141 वर्षो बाद भारत आज फिर अपनी दुर्दशा पर रो रहा है अंग्रेज तो चले गए लेकिन उनका दूसरा रूप इन भ्रष्ट नेताओ ने ले लिया। आजादी के 70 साल बीतने को है आज देश का ये हाल है की नेताओं, भ्रष्टाचारियों की जेबें नोटों से भरी हैं और गरीब महँगाई की मार से भूखों मर रहा है।
8 नवम्बर 2016 की रात प्रधानमंत्री द्वारा जब कालेधन पर सर्जिकल स्ट्राइक की गयी तो इन्ही भ्रष्टाचारियों की जेबें खाली हो गयी तो वे तिलमिला गए और काले धन के समर्थन में संसद मार्च निकॉलने लगे उन्हें जरा भी शर्म नहीं आयी की वे पूर्व में अन्ना हज़ारे की ईमानदारी की पाठशाला के पुरातन छात्र रहे है।
नोट बंदी से नेताओं की काली कमाई स्वाहा होने से उनकी कुंठा सरकार पर बरस रही है।गरीबों की परेशानी के नाम पर ये नेता काले धन पर सबसे बड़े प्रहार को निष्फल बनाने में जुटे है।
बैंकों में भीड़ लगातार कम हो रही है और कुछ दिन बाद ये नगण्य हो जायेगी एवं जब इसके फायदे सामने आएंगे तो इनका मुँह स्वतः बंद हो जाएगा। और देश का हर नागरिक इनको करारा जवाब देगा।
-अभय सिंह-
राजनैतिक विश्लेषक