मनीष ठाकुर-
बिहार में लोकसभा चुनाव के दौरान कई प्रेस कांफ्रेंस में देखा कि लालू कैमरे पर ही नहीं ऑफ कैमरे में भी पत्रकारों को अपमानित करते है। बिहार के रिपार्टर तो लालू के इतने किस्से सुनाएंगे की आप दंग रह जाएंगे। कैसे जब उन से कहा जाता था कि लालू जी शॉट बनाना है तो लालू किस स्तर तक अष्लील भाषा का प्रयोग करते थे। कैसे डांटते डपटते थे।ढाई दशक से मीडिया को अपमानित करना लालू का डेली रूटीन था और उस अपमान पर दांत चिआर देना रिपोर्टर ,संपादक की आदत बन गई थी । हाँ यह भी माना जाता था कि लालू जीतनी मदद अपमान की घूंट पीने वाले पत्रकारों की करते थे कम ने किया। 14 जून को लालू ने रिपब्लिक टीवी के साथ जो किया उसमे कुछ भी नया नहीं था। आप यदि गौर करे तो पाएंगे कि रिपब्लिक के रिपोर्टर मेरे बीट सहयोगी रहे परीक्षित संग दस से ज्यादा चैनल के रिपार्टर थे जिनके लिए लालू की हरकत में कुछ भी नया नहीं था। सम्पादक और रिपोर्टर मानने लगे थे कि लालू का अधिकार है अपमानित करना। गाली देना । इसमें कुछ नया नहीं था। नया था रिपोर्टर का लल्लू की भाषा में उसे जवाब देना। इसलिए क्योंकि तीन दशक पुराने अखवार के किसी संपादक की तरह, टीवी इतिहास के पहले संपादक ने अपने रिपोर्टर को कह दिया था बेटा ,केचुआ मत बनना। पत्रकार बन कर बात करना। मैं हूँ न। लेकिन कैमरे के साथ सवाल कर पसीना उतारने वाला कोई पत्रकार हो सकता है यह लालू के लिये नया था। उन्हें कोई उनकी भाषा में बात कर सके। उनके अपराध पर उन से सवाल कर सके । यह सब भयावह सपने की तरह था।
नब्वे की दशक की शुरुआत में लालू पिछड़ों के मसीहा के रूप में उभर रहे थे। धीरे धीरे लालू का मसखरा अखबारों में लोग चटकारे मार का पढ़ने लगे। उसी दौर में भारतीय निज़ी टेलीविज़न मीडिया अपने शैशव अवस्था में था। s.p singh के आज तक पर लालू की होली हीट हो चुकी थी। गुज़रते दौर में विज़ुअल मीडिया के लिए लालू मसाला बन चुके थे। लालू का मसखरापन, लालू के देहाती अल्हड शॉट, टीवी की टीआरपी बन चुकी थी। संपादक का दवाब था, लालू का हर हाल में बाइट। लालू मीडिया की इस मज़बूरी को जान चुके थे। लिहाज़ा वो अक्सर पत्रकारों को कह देते थे की तुम सब की नॉकरी मेरी वजह से चलती है। संपादकों ने अपने रिपोर्टरों को लालू के सामने नतमस्तक कर दिया। फिर नई परम्परा की शुरुआत हुई । रिपोर्टर हर नेता के सामने वैसे ही करने लगेे जैसे लालू के पास करते थे।
सख्त सवाल करने पर, मंत्री नेता सीधे संपादक को फोन करने लगे । लालू यह अक्सर करते थे क्योंकि उन्हें पता था कि वे मीडिया की जरुरत है। अपने मसखरेपन से लालू भारतीय राजनीति के वो इकलौता शख्स बन गए जिसे नफ़रत करने वाले और प्रेम करने वाले स्क्रीन पर देखकर भी चैनल नहीं बदलते थे। लालू इस कदर मिडिया की मज़बूरी बन गए कि संपादक तक अपमानित हो कर भी दांत चिआर देते थे। राजदीप से लेकर पुण्य तक टीवी का कोई संपादक नहीं बचा जिसे लालू ने कैमरे पर अपमानित नही किया। इण्डिया टीवी के संपादक को तो उसके खास् प्रोग्राम में लालू से सरेआम अपमानित किया। बार बार किया।
‘आप’ कहना तो लालू जानते नहीं। जिस बिहार में तू का प्रयोग अपमानजनक है उस बिहार का नेता हर संपादक को कई बार कह देते थे तुमको कुछ बुझाता है। सोचिये सजायाप्ता अपराधी से अपने संपादक को सरेआम अपमानित होते देखकर कोई रिपोर्टर लालू जैसे नेता के पास केचुआ से ज्यादा की हैसियत रख सकता है क्या?ऐसे हालात में उन रिपोर्टरों से पत्रकारिता की उम्मीद क्या कर सकते है,जिनके संपादकों ने उन्हे किसी हाल में नहीं छोड़ा। हर चीज़ का अंत होता है। सज़ायप्ता अपराधी होकर भी टीवी पर बैठकर संपादकों को अपमानित करना पता नहीं मीडिया की यह कौन सी मज़बूरी बन गई थी? मीडिया की ये मज़बूरी मीडिया को घुन की तरह खा रहा था? उम्मीद करें लालू पर मामला दर्ज होने की हिम्मत चौथे स्तंभ को आत्म सम्मान देगा । स्वभिमान देगा। क्योंकि इसी से उसकी साख बनेगी ,जो मीडिया की एकमात्र पूँजी है। बिना साख वाली मीडिया लोकतंत्र के लिए कोढ़ बन जाता। यह कोढ़ ही लोकतंत्र के खात्मे का कारण बन जाता है। शायद अब अति हो गया था। लालू की दो मुक्का मार कर गिरा देने की धमकी कही मीडिया को जगा दे और वो रेंगने के बदले उठ कर स्वभिमान संग खड़ा हो सके इसकी उम्मीद करें।