ABP NEWS के महाकवि में इस बार का एपिसोड दुष्यंत कुमार पर था. गौरतलब है कि पहला एपिसोड राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर पर था.उसी की समीक्षा करते हुए वरिष्ठ पत्रकार वेद उनियाल लिखते हैं –
शायर साहिर लुधियानवी ने जिस तरह शायरी को प्रेम मोहब्बत के खूबसूरत इजहार से थोडा बाहर निकाल कर उसे तपिश दी, जनचेतना के स्वर दिए उसी तरह दुष्यंत की गजल भी श्रगार रुमानियत से निकल कर आग बन गई। वह मन को झकझोरने और देश की बैचनी में आवाज देती एक ताकत हो गई। एबीपी के महाकवि सीरियल में दुष्यंत को आज सुना जाना और उनके बारे में कई पहुलओ का जानना सुखद अनुभव है।
कुमार विश्वास के लिए दुष्यंत पर कहना मानो किसी पुरानी अभिलाषा का पूरा होना जैसा था। वह पूरे भाव में थे। और कह भी गए कि समय और परिस्थितियों में दुष्यंत कुमार की गजल विधा हथियार के रूप में सामने आई वरना वह तो प्रेम के कवि होते। वास्तव में दुष्यंत ने प्रेम ही किया था। अगर उनके मन में सच्ची छटपटाहट न होती तो वे पंक्तियां भी नहीं कलम से नहीं निकलती। भूख है तो सब्र कर, हो गई पीर पर्वत सी , मैं बेपनाह .कौन कहता है आकाश में,,,
सत्तर के दशक में असंतोष और बैचेनी चारों ओर थी । आक्रोश था परिवर्तन की चाह थी। छात्रों के आंदोलन में जेपी आगे आए और नेतृत्व करने लगे। तब मंचों से जेपी का आह्वान था और लोगों की जुबान में दुष्यंत की पंक्तियां । उस गहरे असंतोष में जेपी नायक बने और दुष्यंत कुमार आवाज।
सत्तर के दशक में जेपी और दुष्यंत जिस तरह थे , वही आहट दिल्ली के रामलीला मैदान में अन्ना हजारे के आंदोलन में महसूस की जा रही थी।
यहां अन्ना हजारे अपने आंदोलन के साथ थे और कुमार विश्वास उनके मंच पर अपनी कविता पढ पढ कर समा जगाते थे। शायद , कोई ््दिवाना कहता है . मे भले थोडा नाजुक अंदाज में कहा हो, लेकिन. उस परिवेश को लिया हो। लेकिन वो भी सफल थे और कम के कम आंदोलन के स्तर पर अन्ना और कुमार विश्वास भी सफल थे। इसलिए जब कुमार विश्वास एबीपी के महाकवि में दुष्यंत को पढते दिखे तो बहुत कुछ उस अनुभूति को अपने साथ लिए थे। हर गजल को भाव में गाया। बस एक जगह फिसले जहां पुरानी कव्वाली हमें तो लूट लिया वाली तर्ज पर एक गजल दोहरा दिया। सगीत के विस्तृत आकाश में किसी एक कव्वाली की पुरानी धुन की जरूरत क्यों पड गई। वैसे चिरागा मय्यसर, भूख है तो सब्र कर का पाठ अच्छा था।
इस एपिसोड में दुष्यंतजी के परिवार से मुलाकात अच्छी लगी। खासकर यह जानना अच्छा लगा था कि दुष्यंतजी की पत्नी राजेश्वरीजी उनकी पहली श्रोता होती थीं। यह अपने आप में एक सुंदर अहसास था। माहौल यह भी कि घर पर अक्सर पिता के दोस्तों के चलते बेटे अालोक त्यागी को पढने के लिए किसी दूसरे घर में जाना पडता था। वैसे थोडा और प्रयास होता कि दुष्यंतजी के भाई मुंबई के एक पूर्व वरिष्ठ पुलिस अधिकारी आर डी त्यागी से भी कुछ और बातें हो जाती।
दुष्यंतजी के शेरों को पत्रकारिता में आने वाले जोशीले छात्र और जनकवि काफी गुनगुनाया करते हैं। शायद किसी भावी क्रांति के मकसद से। साहित्य में उनकी एक अलग जगह है। सच कहा था उन्होंने उनके जो विचार है वहीं कविता में ओढते बिछाते हैं। जो सोचा वही लिखा वहीं जिया। जेपी को जिस तरह याद किया जाता है , दुष्यंत का भी वही परिचय है। बेशक जेपी के आंदोलन का बाद में जो भी हश्र हुआ हो लेकिन दुष्यंत के गीत अगली सजग चौकस पीढी के लिए अपने आप को अभिव्यक्त करने के माध्यम बन गए। कुछ और भूल भी गए हों तो मेरे सीने में न सही, तो गुनगुनाते ही रहे।
दुष्यंतजी के पुराने चित्र दिखाए गए। एपिसोड में जयप्रकाश नारायण की आवाज को भी सुना गया। दुष्यंतजी को सुनना भी अलग अनुभव होता। बिजनौर की वो गलियां देख पाते। हां कालिदास के अभिज्ञान शांकुतलम में शकुंतला और दुष्यंत का पहला परिचय रुमानियत कवि की कल्पनाशीलता अभिव्यक्त हुई थी। वह स्थल कण्व ऋषि का आश्रम था। और यह जगह कोटद्वार के निकट मालिनी नदी के तट के पास बताई जाती है। कुमार विश्वास ने शकुंतला दुष्यंत के प्रसंग में आकर बिजनौर के पास इस स्थल का जिक्र किया।
खैर ये अलग अलग धारणाएं हो सकती हैं। पर इस समय महाकवि के माध्यम से दूसरी कडी में ही दुष्यंत के जीवन को दिखाना महत्वपूर्ण लगा। जो समय बदले वो महाकवि। दिनकर ने आजादी के बाद कुछ हताश लाचार और दिशा बदल रहे भारत को अपन कविता से झकझोरा था। दौर के जननायक को भी सजग किया था। दुष्यंत भी असंतोष के माहौल में वक्त को बदलने और संग्राम की कविता गढ रहे थे।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)