मनीष कुमार,पत्रकार,चौथी दुनिया
अरविंद केजरीवाल का रोड शो….
आज केजरीवाल ने बनारस में जो किया वो रोड शो नहीं था. रोड शो का मतलब यह होता है कि एक नेता रोड़ पर अपनी गाड़ी पर सवार हो कर गुजरते हैं और लोग सड़कों पर खड़ा होकर उनका स्वागत करते हैं.. लेकिन आज बनारस में जो हुआ वो रोड शो नहीं था.. यह एक जुलूस था.. जुलूस और रोड शो में फर्क ये है कि जुलूस में एक नेता अपने समर्थकों के साथ में सड़क पर निकल पड़ते हैं.. नारे लगाते हुए अलग अलग इलाकों से गुजरते हैं.. आज केजरीवाल अपने समर्थकों के साथ साथ बनारस के अलग अलग इलाकों में गए.. ये और बात है कि उनके स्वागत में लोग सड़कों के किनारे इंतजार नहीं कर रहे थे…
जुलूस हो या रोड शो इससे कोई फर्क नहीं पड़ता क्योंकि यह केजरीवाल का बनारस में शक्ति प्रदर्शन था. यह कई मायने में ये शानदार रहा. आम आदमी पार्टी की तारीफ होनी चाहिए कि उन्होंने देश भर से हजारो कार्यकर्ताओं को बनारस में उतार दिया. ये सभी लोग आम आदमी पार्टी के सुप्रीम लीडर के लिए प्रचार प्रसार कर रहे हैं. यही लोग आज केजरीवाल के शक्ति प्रदर्शन में शामिल हुए. टीवी चैनलों ने जितने भी लोगों से बात की उनमें कुछ ने कहा कि वो नागपुर से तो कोई करनाल तो कोई मुंबई तो कोई बंगलौर से आया था… जो लोग लंका चौक से ये जुलूस शुरु हुआ और जो लोग साथ थे.. वही लोग आखिर तक साथ रहे… इस जुलूस की खासियत यह रही कि इसमें सिर्फ आप के कार्यकर्ता थे.. बनारस की जनता नदारद ही रही.
दरअसल, बनारस में केजरीवाल और कांग्रेस के अजय राय के बीच कांटे की लड़ाई हो रही है.. कल राहुल गांधी का रोडशो है.. देखना है कि ये रोड शो होता है या ये भी जुलूस में तब्दील हो जाएगा.. राहुल के सामने यह चुनौती होगी कि उनका जुलूस केजरीवाल के जुलूस से बड़ा हो. अजय राय और केजरीवाल में जो ज्यादा शक्तिशाली होगा उसे ही मुसलमानों का वोट मिलेगा… यही राजनीति की सच्चाई है..
वैसे, देश के सभी जाने माने हिंदी और अग्रेजी चैनलों के “न्यूज ट्रेडर” अपने काम में लगे हैं.. हिंदी चैनल वालों में क्रांतिकारी वाजपेयी बनारस के मिजाज की आड़ में अपनी दुकान चला रहे हैं.. तो “आप” के रविश कुमार बनारस में डोमेस्टिक वायोलेंस के खिलाफ इंफ्रास्ट्रक्टर ढूंढ रहे हैं. साथ ही देबांग बता रहे हैं कि डीएम साहब ने किन किन सड़कों को चौड़ा किया है.. आदि आदि ऐसे कई टीवी पत्रकार बनारस की गलियों में घूम रहे हैं, जिन्हें भ्रम है कि वो चुनाव के नतीजों को प्रभावित कर सकते हैं.. जीते रहे उम्मीदवार को हरा सकते हैं.. और हारे हुए को जिता सकते हैं…
कलमकार भी अब, पार्टियों के दलाल हो गये,
ईमानदारी-नैतिकता, नये धंधे में हलाल हो गये
(स्रोत-एफबी)