चेतावनी : कमजोर दिल वाले हिंदी प्रेमी/ हिंदी भाषी न पढ़ें
हिंदी बोलना या हिंदी में लिखना या कि हिंदी की नौकरी करना और हिंदी की रोटी कमाना क्या किसी हिंदी प्रेम का नतीजा है। आप हिंदी में इसलिए बकबकाते हैं क्योंकि दिल से हिंदी के लिए मरे जाते हैं। नहीं जनाब, ये इसका नतीजा है कि-
1- आपको हिंदी ही आती है।
2- ये इसका नतीजा है कि संभवत: आप हिंदी प्रदेश से आते हैं।
3- ये इसका नतीजा है कि आप हिंदी मीडियम स्कूल में पढ़े हैं।
4- ये इसका नतीजा है कि हिंदी मीडियम सरकारी स्कूल सस्ते और ऑलमोस्ट फोकट में पढ़ाई कराने वाले होते हैं।
5- ये इसका नतीजा है कि जिस घर में आप पैदा हुए, वो घर आपको सरकारी या नॉन सरकारी, लेकिन हिंदी मीडियम स्कूल में ही पढ़ाने की हैसियत रखता था, या आपके पिताजी अपने वक्त के मिजाज को न समझने वाले, गांधीवादी, सिद्धांतवादी टाइप कुछ रहे होंगे।
6- ये इसका नतीजा है कि आपके शहर के सेंट जोसेफ, सेंट फ्रांसिस, सेंट डॉन बॉस्को स्कूल की फीस अगर पांच हजार है तो आर्य कन्या पाठशाला की फीस पांच रुपया।
7- ये इसका नतीजा है कि आपके द्वारा बोली, लिखी जाने वाली और नौकरी का जरिया बनी भाषा की औकात से ही आपकी सामाजिक औकात तय हुई है।
8- किसी मुगालते में न रहिए। मैं तो नहीं ही हूं। मैं हिंदी में इसलिए नहीं लिखती कि हिंदी के लिए मेरा दिल धड़कता है। इसलिए लिखती हूं क्योंकि सिर्फ यही भाषा मुझे तमीज से आती है। वरना अगल बदल सकती तो कब का अपना क्लास (वर्ग) बदल चुकी होती।
जैसेकि हिंदी बोलने, लिखने, कमाने, खाने वाले तकरीबन 99 फीसदी लोग अपने बच्चों को सेंट जोसेफ और सेंट फ्रांसिस में पढ़ाकर उनका क्लास बदलने की तैयारी कर ही रहे हैं।
प्रिसाइसली, “अंग्रेजी क्लास की भाषा है, सामाजिक औकात की भाषा है।”
“अब अगर यहां भी आपका स्वाभिमान कुलांचे मारने लगे और हिंदी राष्ट्रवादी आत्मा पुनर्जागृत हो जाए तो आय एम सॉरी। आय कांट हेल्प इट।”
(पत्रकार मनीषा पाण्डेय के फेसबुक वॉल से साभार)
manisha , you are an illeterate lady…. dont know power of hindi….