डॉ शोभा भारद्वाज-
चुनाव का सीजन चल रहा है| पंजाब और गोवा के चुनाव सम्पन्न हो गये लेकिन तीन प्रदेशों के चुनाव बाकी हैं | आजाद भारत के पहले चुनाव में महिलायें गाती बजाती वोट देने आयीं थीं | अधिकतर पढ़ना लिखना नहीं जानती थीं ,चुनाव चिन्ह को पहचानती थीं| सास और बहू दोनों ने अपने मताधिकार का प्रयोग किया लेकिन घूँघट उठा कर बहू का वोट देना सास को गवांरा नहीं था अब बात बदल गयी है| महिला सशक्तिकरण का जमाना है लेकिन क्या अपने मताधिकार का महिलायें पूरी तरह उपयोग करती हैं? या परिवार का जिधर रूझान होता है अधिकतर महिलायें उसी को वोट दे देती हैं |महिलाओं की सुरक्षित सीटें हैं चुनाव प्रचार के पम्पलेट पर महिला उम्मीदवार से भी बड़ा उसके पति का चित्र और परिचय होता है महिलाओं के लिए सुरक्षित कई पंचायतों में सरपंच के आसन पर पति महोदय आसीन दिखाई देते हैं पत्नी से केवल कागजात पर दस्तखत करवाते हैं | शिक्षा ने महिलाओं को अपने अधिकारों के प्रति जागरूक किया है लेकिन एक सीमा तक | मुस्लिम समाज वोट बैंक की तरह इस्तेमाल होता हैं उनकी महिलायें झुण्ड बना कर वोट देने आती हैं हिजाब में उनकी लम्बी कतारें देखी जा सकती हैं परन्तु वोट अधिकतर परिवार के पुरुष सदस्यों के निर्देश पर देती हैं |बनारस से मोदी जी उम्मीदवार थे उनकी यात्रा में उनके सम्मान, स्वागत में मुस्लिम महिलायें अपने बच्चों के साथ फूल मालायें ले कर खड़ीं थीं, जताया उनका भी अपना अस्तित्व है मोदी जी ने झुक कर महिला वोटरों को प्रणाम किया |
महिलाओं की समस्यायें पुरुषों से अलग हैं उनकी सबसे बड़ी समस्या सम्मान और सुरक्षा पाने की है| बेटी बचाओ बेटी पढाओ का का नारा बुलंदी पर है बालिकाओं की शिक्षा पर जोर दिया गया है अलग सरकारी स्कूल हैं छुट्टी होने पर लड़कियाँ स्कूल से निकलती हैं मुख्य द्वार पर पुलिस का इंतजाम होता है लेकिन अपना काम धंधा छोड़ कर लड़कों की कतार खड़ी दिखाई देती है कुछ फब्तियाँ कसते हैं कुछ उस झुण्ड में घुसने की कोशिश करते हैं कुछ घर तक छोड़ने जाते हैं | कई लडकों को देख कर हंसी आती है पिचके गाल पेट और पीठ एक ,इतना खराब स्वास्थ्य कि हवा के झोंके से गिर पड़े लेकिन लड़कियों को छेड़ना जैसे उनका विशेषाधिकार है| लड़कियाँ घर में शिकायत करने से डरती हैं माता पिता पढ़ने नहीं भेजेंगे | आजकल इक तरफा प्रेम का चलन बढ़ रहा है एक फ़िल्मी डायलाग है ‘मेरी नहीं तो किसी की नहीं’ | कोई वहशी लड़की के चेहरे पर तेज़ाब डाल कर जिन्दगी मौत से भी बदत्तर कर देता हैं ऐसे अपराधी के लिए क्या सख्त सजा नहीं होनी चाहिये क्या जमानत मिलनी चाहिये ? रात बिरात की बात दूर की है बाजार में भी लड़कियाँ सुरक्षित नहीं हैं मौका पड़ते ही लड़की को उठा लेना आपराधिक वृत्ति के लोगों के लिए आम है समस्या केवल बड़े शहरों की नहीं रही है गाँवों और कस्बों में भी डर के साये में जीती हैं | रात बिरात काम से घर आने वाली लड़कियाँ कई बार कैब के ड्राईवरों या राहगीरों की शिकार हो गयी है अपराधी को दंडित करने के लिए लम्बी न्यायिक प्रक्रिया चलती है |
प्यार में फंसा कर शादी का लालच देकर शोषण करना लेकिन शादी से मुकर जाना | लड़की को अकेले बुला कर अपने दोस्तों में बाँट देना उनका अश्लील वीडियों बना कर प्रसारित करने की धमकी देना आम होता जा रहा | लड़कियाँ जहाँ नौकरी करती हैं वहाँ भी सुरक्षित नहीं है |महानगरों में लडकियाँ अपना कैरियर बनाने आती हैं उच्च शिक्षा’ टेकनिकल शिक्षा’ अपने मन पसंद के कोर्स करने के बाद नौकरी करना चाहती हैं जिससे वह स्वावलम्बी बन कर माता पिता का सहारा बनें पढ़ने और कैरियर बनाने के लिए आम घरों में लड़कियों को लड़कों से अधिक संघर्ष करना पड़ता है यदि माता पिता बेटियों की पढ़ाई और कैरियर के लिए समवेदन शील है क्या वर्किंग वुमैन हास्टल पर्याप्त हैं ? या सुरक्षित पेईंग गेस्ट हाउस हैं ? एक आम सिर पर ईंटे ढोने वाली स्त्री से लेकर अभिजात्य वर्ग की लड़की भी असुरक्षित हैं| महिलाओं के खिलाफ होने वाले अपराधों के लिये कठोर दंड कागज पर ही है ? नन्ही बच्चियों को वहशियों द्वारा जान से मारने की धमकी देकर हवस का शिकार बना कर, मरने के लिए छोड़ देना बच्चियों का जीवन बर्बाद कर उसे खौफ के साये में जीने के लिए मजबूर करना, कई बार अपराध के बाद पकड़े जाने से बचने के लिए मार कर कूड़े की तरह फेंक देते हैं मासूम में जान ही कितनी होती है | घृणित अपराध के लिए शीघ्र ट्रायल कर मृत्यू दंड का विधान क्यों नहीं होना चाहिये ? कोर्ट के चक्कर काटना बच्ची के माता पिता की तकदीर बन जाती है अपराधी को वकीलों की चालों से जमानत मिल जाती है कानून लचर है या अपराधी शातिर| समाज कुछ समय तक सम्वेदना प्रगट करता है तब तक अन्य बड़ी दुर्घटनायें चर्चा में आ जाती हैं |
भारतीय संविधान में महिलाओं को समानता का अधिकार दिया है समय – समय पर कानून बना कर अधिकारों की रक्षा की कोशिशें जारी हैं | वोट देने का अधिकार,महिला पुरुष के वोट का मूल्य बराबर है ,एक ही काम के लिए समान वेतन,काम के स्थान पर यौन उत्पीडन अपराध है, उत्पीडन की शिकार महिला का नाम नहीं छापा जाएगा न्याय प्रक्रिया लम्बी नहीं चलेगी ,घरेलू हिंसा अपराध है ,प्रसव के समय अवकाश ,मोदी सरकार ने इसकी अवधि तीन महीने से छह महीने कर दी है ,कन्या भ्रूण हत्या दंडनीय अपराध है ,रेप की शिकार महिला को मुफ्त कानूनी मदद , माता पिता की सम्पत्ति पर अधिकार ,महिला को रात के समय गिरफ्तार नहीं किया जायेगा उसकी गरिमा का पूरा ध्यान रखा जाएगा | जब सभी महिलाये एक जुट होकर अपनी समस्यायें समझेंगी, महिला संगठन उन्हें उनके अधिकार समझा कर सही नेतृत्व करेंगे, ‘नेतृत्व का मतलब यह नहीं है नेताओं की बेटियाँ या बहुयें उनका प्रतिनिधित्व करें’ कर्मठ महिलायें सेवा भाव से आगे आयें सबकी एक आवाज हो तभी महिला सशक्तिकरण सार्थक होगा | विभिन्न दलों के घोषणा पत्रों में उनके कल्याण की कौन सी योजनायें हैं ? क्या पहले किये वायदे पूरे किये गये हैं ? बिहार में महिलाओं के दबाब में नितीश सरकार ने ‘शराब बंदी’कानून सख्ती से लागू करने का सराहनीय काम किया जबकि यह कदम आसान नहीं है |
महिलायें चाहें तो चुनाव की धारा बदल दें| महिलायें अपने वोट की कीमत जान जायेंगी उन्हें संसद में आरक्षण की जरूरत ही नहीं पड़ेगी जरूरत है संगठित स्त्री समाज के आगे नेता वर्ग भी नत मस्तक हो जायेंगे जिस सुरक्षा के लिए बार-बार आवाज उठानी पडती है राज नेता गन विशेष चिंता करेंगे लेकिन इसके लिए जाति, धर्म, शिक्षित अशिक्षित अभिजात्य और गरीब सभी औरतों को एक मंच पर संगठित आवाज बनना पड़ेगा ट्रिपल तलाक और बहुविवाह का प्रश्न ही गौण हो जाएगा किसी शाहबानों को रोना नहीं पड़ेगा सरकार में बैठे लोग मजबूत कानून बनायेंगे संसद के दोनों सदन एक स्वर से उसका समर्थन करेंगे क्योंकि अगली बार भी तो वोट लेना है | घरेलू हिंसा की शिकार कोई भी महिला हो जाती है समाज इसे पति पत्नी के बीच का मामला कह कर पल्ला झाड़ लेता है तलाक शुदा या पति द्वारा छोड़ी गयी महिला को महिलायें ही सम्मान की दृष्टि से नहीं देखती माता पिता कन्यादान कर दिया समझ कर अपने दायित्वों से मुक्ति पा लेते हैं महिलाओं की रक्षा के लिए सख्त कानून हैं फिर भी जला कर मारी जाती हैं या आत्महत्या के लिए विवश कर दी जाती हैं | क्या जरूरत नहीं है कानून का सही ढंग से पालन हो लेकिन बेजा लाभ उठाने वालों को भी दंडित किया जाये |