वेद विलास उनियाल
उत्साहीलालों से एक निवेदन
1- दिल्ली चुनाव मे जो भी पार्टी जीते , उस नतीजे को स्वीकार करना सीखिए। कोई परमाणु बम नहीं गिरने वाला अगर आप जीती या भाजपा जीती। या फिर कांग्रेस। जो भी जीते। उसके काम काज को देखिए। फिर एक कम से कम डेढ़ या दो साल बाद अपनी कोई धारणा बनाइए।
2- आप जीते तो यह नहीं कि लोगों ने मोदी की केंद्र सरकार को ठुकरा दिया और भाजपा जीते तो यह नहीं कि आप को पूरी तरह खारिज कर दिया। यह चुनाव है। आप अगर विपक्ष में भी होता है तो उसका अपना महत्व है। बल्कि केजरीवालजी दिल्ली विधानसभा की विपक्ष में रहकर वो काम कर सकते हैं जो संसद में विपक्षी नेता नहीं कर सकता। भाजपा विपक्ष में रहती है तो उसके लिए अपने संगठन की कमियां सुधारने का अवसर होगा। वह केंद्र में सत्ता में है दिल्ली में जिम्मेदार विपक्ष के तौर पर सामने आ सकती है। किरण बेदीजी की काबिलियत का मूल्यांकन केवल मुख्यमंत्री बनने पर ही नहीं विपक्ष का नेता बनने पर भी हो सकता है। कांग्रेस जितने भी विधायक जीते उनसे फिर अपनी नई शुरुआत कर सकती है।
3- दिल्ली बेहतर हो यह कौन नहीं चाहेगा। सच ये है कि दिल्ली बहुत अच्छी बनी भी है। एशियाड 82 से पहले की दिल्ली और थी। सड़कों में धुंआ था और नीला आसमान कभी नजर नहीं आया। कोई यह नहीं कहेगा कि कांग्रेस ने दिल्ली में काम नहीं किया। बहुत कुछ किया है। मगर अभी बहुत कुछ किया जाना है। भाजपा या आप पार्टी किसी एक को नहीं , दोनों को मिलकर यह करना है। दोनों अहंकार में चले तो पतन ही होगा। सत्ता किसी एक को मिलेगी पर उसके परचक्के उड़ते रहेंगे।
4- दिल्ली के संभ्रांत इलाकों को बहुत कुछ मिला है। जहां सांसद , राजदूत, मंत्री राजनीतिक पार्टियों के नेता, अध्यक्ष रहते हैं ये इलाके धरती के इंद्र लोक लगते हैं। यहां की कोठियां पुराने राजाओं , सामंतो के महल जैसे लगते हैं। इन महलों के अंदर की शोभा अनुपम है। हालैंड में इतने फूल नजर नहीं आएंगे जितने इन महलों के अंदर हैं। तरह तरह के वृक्ष, सुंदर पगडडियों की तरह गलियारें। फवारे, लता बेल। क्या नहीं हैं यहां
वहां गुजरते हुए ऐसा लगता है जैसे आप इंद्रसभा से गुजर रहे हो। लेकिन दिल्ली के बदनसीब इलाके इसके दस किमी की दायरे में ही आते हैं। केवल शब्दों की ळफ्फाजी इनकी दुर्गती ठीक नहीं कर सकती। इसके लिए जुटना होगा। मन से काम करना होगा।
5- दिल्ली के चुनाव को टीवी मीडिया ने महाभारत बना दिया। प्रचार में स्तरहीनता आप और भाजपा दोनों तरफ से दिखी। कांग्रेस थोड़ा संयत थी। टीवी पर राजनीतिक पार्टियों के लोग हल्ला करते हुए दिखे। असभ्य लोगों की तरह बर्ताव करते दिखे। कुछ ही पत्रकार निष्पक्ष विश्लेषण करते दिखे। वरना कइयों ने राजनीतिक दलों के झंडे थामे हुए थे।
दिल्ली के लोग यही चाहेंगे कि चुनाव के नतीजों के बाद यह घृणा कम हो। जिस तरह का प्रचार हुआ बातें हुई उसमें यह लगा कि दिल्ली की संवारने की नहीं बल्कि कर्णधारों में दिल्ली को लूटने की हवस ज्यादा है। दिल्ली की सत्ता के लिए ऐसी तड़फ तो नादिरशाह में भी शायद नहीं रही होगी। प्लीज इससे बाहर आएं । लोगों को विश्वास में लें। दिल्ली अच्छी बनेगी तो देशभी अच्छा बनेगा। @fb