एक घंटे का प्रोग्राम हो. एंकर मिलाकर कुल आठ लोग बोलने वाले हो. बोलने वालों में नेता, वकील और अध्यापक भी हो तो सबको बोलने के लिए वाजिब समय मिले, ये जरूरी नहीं.
ऐसे में यदि एंकर रवीश जैसा जब्बर किस्म का न हो तो दो नेता ही आपस में बतकही कर स्क्रीन की बहस को संसद के हंगामे में तब्दील करके पूरा समय खपा देते हैं और पैनल के दूसरे लोग स्क्रीन पर बस मूर्तिवत बैठे रह जाते हैं.
ऐसे में खीजना स्वाभाविक है. शनिवार को एनडीटीवी पर प्रसारित ‘प्राइम टाइम’ में ऐसा ही हुआ जब नजमा हेपतुल्लाह और मशहूर वकील माजिद मेनन खीज गए और लाइव के दौरान ही एंकर कादम्बिनी शर्मा से अपनी नाराजगी जता दी.
माजिद मेनन जहाँ ऑडियो से परेशान थे तो नजमा हेपतुल्लाह सवाल न पूछे जाने से आक्रोशित थी. उन्हें इस कदर एंकर पर गुस्सा आया कि बीच बहस में ही उन्होंने कह दिया कि मुझे बस बैठा के रख दिया है.
इसपर कादम्बिनी शर्मा ने उन्हें तुरंत बोलने का मौका देकर कुछ हद तक संतुष्ट किया. उधर माजिद मेनन दोहरी मार से जूझ रहे थे. एक तो ऑडियो खराब और दूसरा उन्हें बोलने का मौका ही नहीं मिल रहा था.
बहरहाल ऐसा कई बार देखने को मिलता है जब जरूरत से ज्यादा एक्सपर्ट स्क्रीन पर बुला लिया जाता है. लेकिन इनमें से कुछ एक्सपर्ट बस स्क्रीन पर सजे ही रह जाते हैं और प्रोग्राम खत्म हो जाता है. उन्हें बोलने का मौका ही नहीं मिलता.
चैनल वाले आठ – आठ विंडो तो काट देते हैं लेकिन बोलने का मौका तो एक बार में एक को ही मिला सकता है ना. ऐसे में कादम्बिनी शर्मा भी करें तो क्या करें?