वरिष्ठ पत्रकार ‘ओम थानवी‘ ने सरकार को चेताया है कि नोटबंदी के बाद कलाबाज़ारी में कमी होने की बजाए बढोत्तरी ही हुई है.रोज-रोज नए नियम बदलने से जनता का मौद्रिक व्यवस्था और सरकार से विश्वास उठ रहा है. पढ़िए उनका पूरा विश्लेषण –
दिन में ही मनमोहन सिंह ने चेताया था कि आए दिन नए क़ायदे गढ़ना सरकार और रिज़र्व बैंक की छवि धूमिल करता है – कर रहा है। और ढीठ सरकार ने शाम को फिर नए क़ायदे/नियम/क़ानून मुनादी कर दिए!अब, आधी रात से, लोग नोट बदलवा नहीं सकेंगे – सिर्फ़ खाते से निकलवा सकेंगे।
ऐसा फ़ैसला शायद क़तारों की बदौलत हुई मौतों और बाक़ी अफ़रातफ़री से घबरा कर किया गया है। पर इसकी क्या जुगत कि अब खातों से पैसा निकलवाने को वह मारामारी बंद हो जाएगी? खाते से 2000 नहीं, 24000 हज़ार की सीमा है। ज़ाहिर है, वहाँ पैसा जल्द ख़त्म होगा या आवश्यकतानुसार मिलेगा नहीं। सरकार फिर झूठी पड़ेगी। लोग फिर आहत और ठगे हुए महसूस करेंगे। ग़लतियाँ पर ग़लतियाँ। अंतहीन। इसलिए मनमोहन सिंह ने नोटबंदी के मूल फ़ैसले को ही “विराट बदइंतज़ामी” कहा है।
फिर, उनका क्या होगा जिनका किसी बैंक में कोई खाता ही नहीं है? वे अब – इस नए नियम के बाद – अपने नोट मामूली ख़र्च के लिए भी कैसे, कहाँ से बदलवाएँगे?
अर्थव्यवस्था एक नई और अजीबोग़रीब कालाबाज़ारी की तरफ़ बढ़ रही है।