तारकेश कुमार ओझा
दरअसल भीड़तंंत्र में संवेदना का समाजशास्त्र कुछ एेसा ही अबूझ है। रोहतक की बहनों का मामला भी एेसा ही है। वीडियों क्लिप के जरिए उनकी कथित बहादुरी का किस्सा सामने आते ही हर तरफ उनका महिमामंडन शुरू हो गया। चैनलों पर चारों पहर खबरें चलती रही। सरकार औऱ राजनेताओं की ओर से अभिनंदन – सम्मान के साथ पुरस्कार की घोषणा बराबर की जाती रही। तब किसी को मामले की तह तक जाने की जरूरत महसूस नहीं हुई। लेकिन स्वाभाविक रूप से दूसरा पक्ष सामने आते ही बहादुरी पर सवाल भी खड़ा हो गया। दरअसल समाज की यह विडंबना शुरू से एेसी ही है। अपराध जगत के मामले में यङ विडंंबना कुछ ज्यादा ही गहराई से महसूस की जाती है। अक्सर किसी अपराधी के मुठभेड़ में मारे जाने पर पहले तो उन्हें मारने वालों पुलिस जवानों का जम कर महिमांमंडन होता है, फिर इस पर सवाल भी खड़े किए जाते हैं। किसी जमाने के एेसे कई कथित जाबांज पुलिस अधिकारी इनकाउंटर स्पेशलिस्ट आज गुमनामी का जीवन जी रहे हैं। कुछ तो नौकरी से निकाले भी जा चुके हैं या जेल की सजा भुगत रहे हैं। जबकि घटना का दोनों संभावित पहलू किसी त्रासदी से कम नहीं है। अब रोहतक प्रकरण का ही उदाहरण लें। कथित बहादुर बहनों के मामले में सच्चाई से अवगत होने के बाद ही किसी निष्कर्ष पर पहुंचने की जरूरत पहले ही थी। लेकिन आज के जमाने में हर बात के लिए हड़बड़ाहट है। किसी को नायक साबित करना हो या खलनायक। अक्सर देखा जाता है कि किसी पर कोई आरोप लगते ही बगैर सोचे – समझे उसे अपराधी साबित करने की कोशिश हर तरफ से होने लगती है। विपरीत परिस्थितयों में किसी का अनावश्यक महिमामंडन करने में भी एेसी ही आतुरता नजर आती है। एक य़ा कुछेक लोगों के डराए जाने पर बड़ी संख्या में लोग भयाक्रांत हो जाते हैं तो वहीं किसी के पीटे जाने पर हर कोई उसकी पिटाई में भी जुट जाता है। अब जरूरतमंद य़ुवकों की मदद के मामले में भी एेसा ही हुआ। एक भाग्यशाली युवक के मामले में देखा गया कि मामला चूंकि हाईप्रोफाइल अाइअाइटी संस्थान से जुड़ा है तो स्वाभाविक ही छात्र की मदद की पहल हुई, औऱ जैसे ही दूसरों ने देखा कि मदद हो रही है तो सभी उसकी सहायता को पिल पड़े। जबकि दूसरों के मामले में कोई पहल नहीं हुई तो लोगों ने उनका नोटिस लेना भी जरूरी नहीं समझा। क्या यह मानवीय संवेदना का अबूझ समाज शास्त्र है। जैसे प्रधानमंत्री के स्वच्छ भारत मिशन पर पहल होते ही हर तरफ लोग निकल पड़े। कल तक यही भीड़ अन्ना टोपी लगाए घूम रही थी या अरविंद केजरीवाल के भ्रष्टाचार विरोधी मुहिम की मुरीद थी। लेकिन आज किसी को यह जानने की भी फुर्सत नहीं कि अब अन्ना कहां औऱ किस हाल में है।
(लेखक दैनिक जागरण से जुड़े हैं।)