यह लेख किसी मोदी-विरोधी ने नहीं लिखा है, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की धारा के पत्रकार माने जाने वाले हरिशंकर व्यास ने दैनिक ‘नया इंडिया’ में लिखा है जिसके वे संस्थापक-सम्पादक हैं। वे कहते हैं – “अच्छे दिन के वायदे और भारत को बदलने की उनकी मेहनत के जीरो नतीजे का इससे बड़ा दूसरा खुलासा नहीं हो सकता … बावजूद इसके उन्हें (मोदी को) जस के तस हालात समझ नहीं आ रहे हैं तो निश्चित ही फिर दिल्ली की सत्ता और उसके अफसरी तिलिस्म के भ्रमजाल में मोदी फंस गए हैं। तभी अठारह घंटे काम करने के बावजूद नतीजा ढाक के तीन पात वाला है। … सरकार ढर्रे में बंध गई है। अफसरों को समझ आ गया है कि बौने मंत्रियों की बौनी सरकार को कैसे उल्लू बनाया जाए। प्रारंभ में खौफ, सुधार और कुछ करने की जो ललक थी वह अब तमाशा देखने, टाइम पास करने, शिकायते पालने में बदल चुकी है। कोई आश्चर्य नहीं जो सुधार भी उलटी दिशा में जा रहे हैं।” (ओम थानवी,वरिष्ठ पत्रकार)
हरि शंकर व्यास का लेख –
विश्व बैंक ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को आईना दिखाया है। अच्छे दिन के वायदे और भारत को बदलने की उनकी मेहनत के जीरो नतीजे का इससे बड़ा दूसरा खुलासा नहीं हो सकता कि कारोबार की सहूलियत में, इज ऑफ बिजनेश में भारत सिर्फ एक अंक बेहतर हुआ! 190 देशों की लिस्ट में भारत अभी भी 130 वें नंबर पर है। बैंक ने भारत को एक सीढी बेहतर हुआ माना है। हालांकि रैकिंग में पिछले वर्ष भी भारत 130 वें नंबर पर था। विश्व बैंक की माने तो एक वर्ष में इंडोनेशिया, पाकिस्तान, ब्रुनई ने अपने को उल्लेखनीय तौर पर सुधारा। मगर भारत का ऐसा कोई रिपोर्ट कार्ड नहीं। क्यों? आखिर नरेंद्र मोदी ने तो सत्ता संभालने के पहले दिन से ठान रखी है कि भारत को बिजनेश का, मैक इन इंडिया का रोल म़ॉडल बनाना है। बार-बार लगातार दर्जनों बार उन्होंने सचिवों की बैठके की होगी, आर्थिकी के जिम्मेवार मंत्रियों अरूण जेतली, सीतारमण आदि को कई दफा मोटिवेट किया होगा। दुनिया में जा-जा कर निवेशकों से कहा कि आओ भारत, लगाओं पूंजी, हम कानून-कायदे, तौर-तरीके ऐसे सरल बना दे रहे हंै कि देश बिजनेश का सर्वाधिक सहूलियत वाला गंतव्य बन रहा है।
सोचें, कितनी मेहनत, कितनी बड़ी-बडंी बाते और अंत नतीजा विश्व बैंक का यह ऐलान कि भारत नहीं सुधरा। बिजनेश लायक नहीं। उससे बेहतर तो पाकिस्तान, ब्रुनई, इंडोनेशिया जैसे देश अच्छे बने हैं। वे सुधरे हैं और वहां धंधा करना ज्यादा सहूलियत पूर्ण है।
संदेह नहीं कि विश्व बैंक की रिपोर्ट देख प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भन्नाए होंगे। दुखी हुए होंगे। यों भाई लोग विश्व बैंक की रिपोर्ट में खोट निकाल रहे हंै। अंगूर खट्टे बता रहे हंै। कह रहे हैं कि वह तो पक्षपातपूर्ण है। भारत की रियलिटी उसे समझ नहीं आती। प्रधानमंत्री दफ्तर, केबिनेट सचिवालय के अफसरों से लेकर अरूण जेतली, निर्मला सीतारमण, रविशंकर प्रसाद से ले कर श्रम, इंफ्रास्ट्रक्चर मंत्रालयों के तमाम मंत्री अपने-अपने प्रजेंटेशन से फिर नरेंद्र मोदी को झांकी दिखाएंगे कि आप चिंता नहीं करें अगले साल सब ठीक होगा। भारत रैंकिग में सौ से नीचे पहुंच जाएगा।
यह नरेंद्र मोदी की आंखों में, देश की आंखों में धूल झौकना है। अपने को हैरानी यह है कि नरेंद्र मोदी की तासीर गुजराती है। उन्हंे धंधे, बिजनेश की जमीनी हकीकत की समझ होनी चाहिए तो फीडबैक भी। बावजूद इसके उन्हंे जस के तस हालात समझ नहीं आ रहे हंै तो निश्चित ही फिर दिल्ली की सत्ता और उसके अफसरी तिलिस्म के भ्रमजाल में नरेंद्र मोदी फंस गए हंै। नरेंद्र मोदी का अफसरों पर नहीं बल्कि अफसरों का नरेंद्र मोदी पर कंट्रोल है। तभी 24 घंटे में से अठ्ठारह घंटे काम करने के बावजूद नतीजा ढाक के तीन पांत वाला है।
यह दशा अगले साल भी रहेगी, 2017, 2018 व 2019 में भी रहेगी। भारत को 190 देशों की लिस्ट में 100 तक भी पहुंच पाए, इसके लक्षण अब इसलिए खत्म है क्योंकि सरकार की ताजगी खत्म हो गई है। सरकार ढर्रे में बंध गई है। अफसरों को समझ आ गया है कि बौने मंत्रियों की बौनी सरकार को कैसे उल्लू बनाया जाए। प्रारंभ में खौफ, सुधार और कुछ करने की जो ललक थी वह अब तमाशा देखने, टाइमपास करने, शिकायते पालने में बदल चुकी है।
तभी कोई आश्चर्य नहीं जो सुधार भी उलटी दिशा में जा रहे हैं। जिस जीएसटी सुधार का हल्ला है वह जनता, व्यापारी, कारोबारी सभी के लिए अगले वर्ष झंझाल बनेगा। इस टैक्स को भी छह –सात स्लैब का बना दिया जा रहा है। टैक्स की रेट भी ज्यादा और उपकर याकि सेस आदि के झंझट भी अलग। व्यापारी को सीए और टैक्स विभाग का मेनेजमेंट करते रहना होगा। मतलब वित्त मंत्रालय ने तैयारी करा दी है कि दुनिया में सर्वाधिक विकृत रूप से जीएसटी भारत में लागू हो। विश्व बैंक की ताजा रपट में जो न्यूजीलैंड आज नंबर एक पर है। वहां जीएसटी है लेकिन वह एक स्लैब और एक रेट के साथ है। रेट भी इतनी कम की दुनिया का हर कारोबारी वहां जा कर फैक्ट्री खोलने, काम करने को भागे! इससे एकदम उलटा भारत में होगा।
क्या ये बाते नरेंद्र मोदी को कोई नहीं बताता होगा? पता नहीं। मगर अफसर, अरूण जेटली, निर्मला सीतारमण निश्चित ही भारत की हकीकत, जरूरतों पर उलटी पट्टी पढ़ाते होंगे। मैं पहले भी लिख चुका हूं कि नरेंद्र मोदी यदि भाजपा के व्यापारी-सीए सांसदों को भी बुला कर पूछे कि कारोबार में क्या मुश्किल है तो समझ आएगा कि गड़बड़ क्या है? हकीकत आज यह है कि पूरे भारत में व्यापार-बिजनेश का माहौल और जोश पैंदे पर है। व्यापारी-उद्ममी ने यह बात गांठ बांध ली है कि ये पांच साल तो गए। किसी तरह सांस लेते रहो।
मतलब बिजनेश में सहूलियत बढ़ने की बात तो दूर जो कामधंधा कर रहे है उनका जीना और दूभर बना है। इस बात को पिछले दिनों कोझीकोड से लौटते वक्त भाजपा सांसदों ने अरूण जटली, पीयूष गोयल को भी सांसदों ने बताया बताते है। अपने एक मित्र सांसद ने गपशप करते हुए बताया कि वह भाजपा की कराई चार्टर उड़ान थी। उस चार्टर उड़ान में छह-आठ मंत्री, पार्टी पदाधिकारी और दर्जनों सांसद थे। दो-ढाई घंटे की फ्लाइट में मौका देख सीए-कारोबारी सांसदों ने आगे जा कर अरूण जटली, पीयूष गोयल से बात की। पूरी यात्रा में अरूण जेटली को समझाया जाता रहा कि आप क्यों कारोबार को चौपट कर दे रहे हैं। कैलाश विजयवर्गी से लेकर कई सांसदों ने नीतियों-टैक्स विभाग की मार की दस तरह की मुश्किले गिनाई। सांसदों ने चेताया कि बिजनेश और ठप्प हो जाएगा। सोचें, देश की मनोव्यथा की जनप्रतिनिधी जुबानी उस चेतावनी को क्या अरूण जेटली को नरेंद्र मोदी को नहीं बताना था? क्या उन्होंने अपना यह रिपोर्ट कार्ड बताया होगा कि उनके विभाग की रीति-नीति को ले कर सांसदों में ऐसी फीलिंग है?
सो सवाल यह है कि जब अपने सांसदों, देशी उद्ममियों की फीलिंग से ही नरेंद्र मोदी बेखबर हैं तो हकीकत से दो-दो हाथ कर बिजनेश का जीना आसान भला कैसे बना सकते है?
(फेसबुक और नया इंडिया से साभार)