अजीत अंजुम, प्रबंध संपादक, न्यूज़24
आजतक वाले भाई लोगों ने माहौल तो खूब बनाया,लेकिन एबीपी न्यूज के सामने टिक नहीं पाए !
मैं जब भी ‘एबीपी’ न्यूज चैनल पर ‘प्रधानमंत्री’ कार्यक्रम देखता हूं , तारीफ किए बिना रहा नहीं जाता . अभी – अभी मैं वीपी सिंह का दौर , मंडल कमीशन और आडवाणी की रथयात्रा की राजनीति पर ये खास कार्यक्रम देख रहा था . किसी चैनल ने कभी इतना रिसर्च करके राजनीतिक इतिहास पर इतना शानदार कार्यक्रम नहीं बनाया . अच्छी बात ये है कि तथाकथित रेटिंग के डब्बों से इस कार्यक्रम को रेटिंग भी मिलती है . कार्यक्रम के अंत में रेफरेंस के तौर पर किताबों की लंबी लिस्ट देखकर लगा कि हिन्दी टीवी चैनल पर शायद की कभी कोई कार्यक्रम बना हो , जिसके लिए इतना रिसर्च किया गया हो . वीओ , रिसर्च , नाट्य रुपांतरण , स्क्रिप्ट से लेकर हर स्तर पर ये कार्यक्रम देखे जाने लायक है .
कमियां निकालने बैठें तो इसमें भी निकाली जा सकती लेकिन न्यूज चैनल की सीमाओं को जानते हुए मैं सिर्फ तारीफ ही करुंगा . बाकी काम आलोचकों का है . जो हर अच्छी चीज में भी अपने मतलब की चीज निकाल लेते हैं . जाने बगैर कि न्यूज चैनल की सीमाएं क्या हैं . आसाराम और तमाशाराम के इस दौर में एबीपी का ये कार्यक्रम देखा और सराहा जा रहा है . रेटिंग भी मिल रही है . इससे अच्छी बात और क्या हो सकती है . पत्रकारिता के छात्रों को तो ये कार्यक्रम जरुर देखना चाहिए .
इतिहास में जिसे दिलचस्पी न हो उसे इतिहास बहुत बोझिल लगता है लेकिन इस कार्यक्रम को हर तरह के लोग देख रहे हैं . देखते हुए ऐसा लगता है कि जैसे इतिहास वर्तमान बनकर सामने खड़ा हो गया हो . राजनीतिक इतिहास में दिलचस्पी की वजह से मैंने भी कई बार सोचा था कि अलग बनाया जाए , किया जाए लेकिन वक्त और वजट हमेशा आड़े आया . जो चाहा , कर नहीं सका. तभी इस कार्यक्रम को देखकर ऐसे कार्यक्रम न बना पाने का अफसोस होता है .
रेटिंग न मिलने का जोखिम , जल्दबाजी में कार्यक्रम बनाने की मजबूरी , बजट न होना …सतही रिसर्च …ऐसे बहुत सी वजहें हैं , जिनसे न्यूज चैनल जूझते हैं लेकिन एबीपी ने इस पैमाने को तोड़ा है . ‘आजतक’ ने एबीपी को जवाब देने के लिए शेखर कपूर के मुकाबले कबीर बेदी को खड़ा किया . एक दाढ़ी वाले का जवाब देने के लिए दूसरा दाढ़ी वाला जंग की कहानी लेकर आया . एक – दो हफ्ते रेटिंग में ऊपर भी गया …आजतक वाले भाई लोगों ने आ गए और छा गए जैसा माहौल भी बनाया… पीट दिया भाई पीट दिया , प्रधानमंत्री को पीट दिया जैसे ढ़ोल भी बजाए लेकिन मैदान में टिक नहीं पाए.
पता नहीं आपकी क्या राय है लेकिन राजनीति के उतार – चढ़ाव को समझने के लिए टीवी पर इससे बेहतर कार्यक्रम पहले कभी नहीं बना ….इतिहास को बनते – बिगड़ते देखने वाले लोगों से बातचीत और रिसर्च के आधार पर एक अच्छी कहानी बनाकर पेश करने में ये ‘ प्रधानमंत्री ‘ की टीम सफल रही है . इस कार्यक्रम से जुड़े संजय नंदन , अपूर्व श्रीवास्तव और फ्रेंकलिन निगम , …अंजु जुनेजा और संपादकों को भी एक बार फिर से बधाई …एबीपी की खासियत ये है कि ये चैनल हमेशा एक्सपेरीटमेंट करता रहा है . दूसरे चैनल इसके एक्सपेरीमेंट से प्रेरित होकर नकल करते हैं कई बार …
(स्रोत – एफबी)