नरेंद्र नाथ
बतौर वित्त मंत्री न्यू इंडिया,ग्लोबल इंडिया का मंत्र देने वाले डॉ़ मनमोहन सिंह स्वभावत: शालीन और मृदुभाषी रहे। अकेले दम तकरीबन कंगाल हो चुके देश को 1991 संकट से निकालने वाले मनमोहन जब बतौर पीएम आखिरी बार मीडिया से बोले तो उन्होंने बस इतना भर कहा- उम्मीद है इतिहास उन्हें सही जगह देगा और नए सिरे से जज करेगा। उनकी बात में वेदना भी थी। लेकिन शिकायत नहीं की।
पीएम के तौर पर मनमोहन सिंह का टर्म मिश्रित रहा। सर्वसम्म्त राय है कि यूपीए 2 के अंतिम दिनों में वह बेहद औसत रहे। गलत फैसले लिये। यपीए 1 का सफल टर्म ओवरशैडो हो गया। लेकिन उन्हें इसकी कीमत कहीं अधिक चुकानी पड़ी। जोकर बना दिये गये। मनमोहन का मतलब बस जोक और मजाक का विषय बन गया। नफरत की बोरियां उनपर उडेल दी गई। किये गये तमाम अच्छे कार्य डस्टबीन में डाल दी गई।
जब पीएम पद से मुक्त हुए तो दूसरों की तरह मनमोहन सिंह भी किताब लिख सकते थे। आईं-बाईं-साईं बयान दे सकते थे। खुद को डिफेंड करने के लिए सनसनीखेज बयान-इंटरव्यू दे सकते थे। ऐसा करने का ट्रेंड रहा है। रिटायर करने के बाद नेता हो या अभिनेता या ब्यूरोक्रेट, अपने देश में सिंघम और ईमानदार का दादा बन जाता है। लेकिन मिडिल क्लास वैल्यूज वाले मनमोहन सिंह रिटायर करने के बाद अपनी दुनिया में मशगूल रहे। मतलब उनका स्वभाव ही ऐसा था।
-आज मनमोहन सिंह का जिक्र इसलिए कि वह कल जापान जा रहे हैं। वह पहले भारतीय हैं जिन्हें जापान सरकार अपना सबसे बड़ा सिविलयन सम्मान पुरस्कार दे रही है। उनके बारे में जापान ने कहा-मार्डन इंडिया का शिल्पकार। इस मौके पर राजनीतिक मत-विरोध अपनी जगह कम से कम बधाई तो बनता है।
(स्रोत-एफबी)