निखिल आनंद गिरी
किसी कूटभाषा में (कोडवर्ड में)दिल्ली को अगर ‘प्रॉपर्टी डीलर्स’ का शहर कह दें तो समस्तीपुर को ‘कोचिंग सेंटर्स’ का शहर कह सकते हैं. जितना कचरा दिल्ली में है, उससे कहीं कम हमारे समस्तीपुर में नहीं है. कचरे के ढेर पर भी कोचिंग सेंटर खुले हैं.
खेत-खलिहान, फूस-मकान, गली-पगडंडी हर जगह कोचिंग सेंटर्स के बोर्ड लगे दिखते हैं. सुबह पांच बजे जब दिल्ली की एक आबादी सोने को जाती है, यहां मुंह पर मफलर-गांती बांधे स्टूडेंट(लड़कियों की भी बड़ी संख्या) साइकिल पर एक रिदम में कोचिंग सेंटर की तरफ चले जाते हैं.
ज़िला शिक्षा पदाधिकारी(डीईओ) का ऑफिस ऐसा है कि कोई टूरिस्ट यहां घूमने के लिए आये तो कोई लोकल गाइड इस दफ्तर को सम्राट अशोक के समय का खंडहर बताकर लाखों कमा सकता है. फाइलें इतनी सड़ गई हैं कि कबाड़ी भी लेने को तैयार न हों.
सरकारी स्कूलों में या तो टीचर नहीं हैं, और जो हैं वो लगभग किसी न किसी जुगाड़ से हैं. ऐसे में यहां के पढ़े-लिखे बेरोज़गार या तो दिल्ली भागते हैं या कोचिंग खोल लेते हैं. मरियल शिक्षा व्यवस्था में कोचिंग एक शानदार बिज़नेस है. बस पटना सचिवालय से सेटिंग रखिए और दसवी-बारहवीं परीक्षा के ठीक पहले ‘एटम बम गाइड’ बच्चों के हाथ में. रिज़ल्ट दनादन.
समस्तीपुर के पत्रकार साथियों की भी अच्छी कमाई हो जाती है कोचिंग सेंटर्स की धांधली छिपाने और सबसे अच्छा बताने में.इस तरह से मेरा शहर अपार संभावनाओं का शहर है. बिद्या कसम.
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