वेद उनियाल-
इस देश में जितने लफंगे, बदमाश, दलाल ब्लेकमेलर शातिर लुच्चे लाइजनर थे उनमें कई पत्रकार बनकर उत्तराखंड आ गए( इनमें राज्य के कुछ लफंगे भी शामिल है) । खासकर देहरादून आ गए। कुछ तो दलाल हैं पर बडे कहे जाने वाले मीडिया संस्थानों से पत्रकारिता का सर्टिफिकेट लिए हुए हैं। उनसे निपटने तो समाज ही आगे आएगा। लेकिन छोटा सा देहरादून और दो हजार पत्रकार। कहां के लिए काम कर रहे हैं ये किसके लिए काम कर रहे हैं ये। बमुश्किल पूरे उत्तराखंड में दो सौ पत्रकार है, जिनका वाकई अपने पेशे से कोई नाता है। या जिन्होंने इस पेशे में आकर उसे सीखा है। बाकी सबका ज्यादा नहीं दो या तीन साल पुराना इतिहास टटोलिए। खतरनाक है ये सब । जो भी मुख्यमंत्री इस हालात की अपने स्तरं पर जाँच नही कराएगा वो दम ठोंककर नहीं कह सकता कि उसने साफ सुथरा प्रशासन दिया। मछली वाला, पकोडी वाला, तारपीन तेल वाला, हर माल पाँच रुपए में बैचने वाला शादी की वीडियो बनाने वाला, बैंड पार्टी मे लाइट लेकर चलने वाला सब उत्तराखंड में आकर या रहकर पत्रकार बन गए हैं। गढी कैंट देहरादून में पत्रकार बने बल्कि ब्यूरो प्रमुख बने ब्लेकमेलर के जरिए दलाली करने और दुकानदार को गंभीर रूप से घायल करने की सूचना मिली है। कई लफंगे टुच्चे तो टाइकोट पहनकर डब्बे नुमा टीवी चैनल में अतराष्ट्रीय विषयों पर बहस भी करवा रहे हैं। ट्रंप, मोदी ,योगी से नीचे की बात पर वो बहस नहीं करते। कैबिनेट मंत्री से ऐसे बात करते हैं मानो उनकी विधानसभा सीट में पाँच छह हजार वोट इन्होंने ही डलवाए हो। संभव है इंटर की डिग्री भी उनके पास न हो। ये उत्तराखंड में हर चीज के विशेषज्ञ हैं। किसी भूगर्भशास्त्री को डांट सकते हैं। किसी लोक कलाकार को सीट से उठाकर अपमान कर सकते हैं ।आईएएस के केबिन में जाकर उसके वरिष्ठ कर्मचारी को हडका सकते हैं। परिजनों को घुमाने के लिए डाकबंगले मांग सकते हैं। आईआईटी किए इंजीनियर इनके सामने पानी भरे, आखिर लोकनिर्माण मंत्री से करीबी ताल्लुक हैं इनके। मेहनत से एमबीबीएस किए डाक्टर इनको देखकर झेंपने लगे। आखिर स्वास्थ्य मंत्री के दोस्त होते हैं ये। डीएम इनके लिए कुछ नही क्योकि चीफ़ सेक्रेटरी या अपर सचिव को साथ का मान लेते हैं । मोदी प्रणव ऐसे कहते हैं जैसे पड़ोसी मित्र को पुकार रहे हों। डीएम का नाम ऐसे लेते हैं जैसे अपनी फैक्ट्री का कोई पुराना कर्मचारी हो। सूचना विभाग को ऐसे समझते हैं जैसे ससुरजी ने सूचना विभाग दहेज मे दिया हो एक लफ़ंगे का देहरादून में स्थानांतरण हुआ तो किसी होटल में रुकने के बजाय सरकारी बीजापुर गेस्टहाउस को ही ठिकाना बना दिया, आवाज़ नही उठती तो अभी तक वहीं रहता
सबसे पहले मुख्यमंत्री जांच कराए कि मीडिया चैनल और अखबारों ने जिन लोगों को पत्रकार होने के कार्ड परिचय पत्र बांटे हैं , वो कौन है उनका विगत परिचय क्या है। कैसे जिस राज्य में गिनती के अख़बार पत्र पत्रिकाएं मीडिया चैनल है वहां अकेले देहरादून में दो हजार से ज्यादा पत्रकार है। कई चैनलों पत्र पत्रकाओं ने चालू टाइप लोगों को मीडिया कार्ड बाँटे हुए हैं जब चैनल मालिक संपादक इलाक़े में जाते है तो ये सब सुविधाएँ उपलब्ध कराते हैं ।
मुख्यमंत्री जी अब गौर करें और फूल माला के कार्यक्रमों से निजात पाकर थोडा इस तरफ ध्यान दे। वरना पत्रकारों का सोना गाछी जैसा बन जाएगा देहरादून । यहां हर पाँच आदमी में एक आदमी पत्रकार नजर आ रहा है। कुछ ऐसो भी है कि राज्य से बाहर बदली होने पर भी नहीं जाते। भले उनका यहां कुछ न हो। न मौसा , न फूफा , न साढ़ू। न साली न घर ,न ठिकाना पर रहना उत्तराखंड में हैं क्योंकि काली कमाई यहीं हैं। प्रमोशन ठुकरा दिए भाई लोगों ने। नजाकत भरे शहर ठुकरा दिए भाई लोगों ने। नौकरी छोड देते हैं फंडा यही कि रहना देहरादून में है, क्योंकि दलाली यही हैं। सच राजधानी बनने के बाद दून शहर दलालों का हो गया है। नाम पत्रकार का और काम दल्लेग्री का । हमारा राज्य की जनता से अनुरोध अगर पत्रकारिता के नाम पर ऐसा कोई ब्लेकमेलर, लफंगा , लुच्चा आपको तंग करता है, धौंस देता तो आप खुलकर इस बात को उठाए हमारे पास आएं हम ऐसे लोगों को बेनकाब करेंगे। जैसे कि एक मसूरी में एक नेता ने एक संपादक और उसके साथ आए ब्यूरो प्रमुख को इस बात पर डांट कर घर से भगाया कि वह मंदिर के नाम पर जगह चाहता था। हां आप गलत नहीं होने चाहिए। जहां गलत है, अपने पहाड़ को उत्तराखंड को बचाने के लिए उसका विरोध कीजिए। उत्तराखंड की पत्रकारिता बेहतर अच्छा करने में नेता भले हमारा साथ न दें, लेकिन उत्तराखंड की मातृशक्ति और युवा शक्ति आगे आएगी और आ रही है।