अभय सिंह,राजनैतिक विश्लेषक
“बोया पेड़ बबूल का आम कहां से होय”ये कहावत समाजवादी पार्टी पर सटीक बैठती है। समाजवाद की छाया तले उनके परिवार में तो समाजवाद जरूर आया लेकिन उत्तरप्रदेश में समाजवाद कब आएगा ये यक्ष प्रश्न है।देश के सबसे बड़े सूबे में एक ही परिवार के 28 से भी अधिक सदस्य किसी न किसी बड़े ओहदे पर काबिज है और आज वे आपस में ही पदों,अधिकारों की बंदरबांट में एक दूसरे की पोल खोल रहे है,क्या यही लोहिया का समाजवाद है जिनके पदचिन्हों पर चलने की रोज क़समें खायी जाती हैं।
वर्ष 2012 के विधानसभा चुनाव में पूर्ण बहुमत से समाजवादी सरकार की वापसी हुई तो नेता जी ने शिवपाल को दरकिनार कर अनुभवहीन अखिलेश को अपने उत्तराधिकारी के रूप में सूबे का सीएम बनाया साथ ही पार्टी की कमान भी सौंप दी ।
शिवपाल ने पितातुल्य भाई के निर्णय को सर आँखों पर लिया ।लेकिन शिवपाल ने ये बात जरूर कही कि नेता जी को 2014 लोकसभा चुनाव तक सूबे का मुखिया बने रहना चाहिए ताकि उन्हें पीएम के पद पर प्रोजेक्ट किया जा सके इसके बाद ही अखिलेश को गद्दी सौंपी जाय ।
लेकिन नेता जी पुत्रमोह में ये निर्णय ले लिया जिसका परिणाम ये हुआ कि अखिलेश की अनुभवहीनता की आड़ में साढ़े पांच सीएम की सत्ता सूबे पर काबिज हुई।
सरकार बनने के कुछ ही वर्ष बाद मुजफ्फरनगर का भयानक दंगा हुआ जिसमें सैकड़ो लोग मारे गए ,50 हजार से अधिक लोग विस्थापित हुए ,सरकार एवं उनके वरिष्ठ मंत्री पर तुष्टिकरण के आरोप लगे जिससे अखिलेश सरकार पर अमिट कलंक लगा जिसका जवाब उन्हें 2014 के लोकसभा चुनाव में जनता ने दिया और पार्टी परिवार में सिमट गयी।
बस इसी करारी हार ने नेता जी को पुत्रमोह से दूर किया और भाई के करीब लाया।जनसभाओं में नेता जी ने लगातार अखिलेश को नसीहत दी।
इसके उलट सीएम अखिलेश जमीनी विकास के कार्यों की बजाय अपने छवि की ब्रांडिंग हेतु प्रिंट ,इलेक्ट्रॉनिक मीडिया पर लगातार 4 सालो से प्रदेश की गरीब जनता का पैसा पानी की तरह बहा रहे है।अगर इन पैसों को प्रदेश की बिजली व्यवस्था में सुधार के लिए उपयोग किया जाता तो कम से कम मुफ़्त में बांटे गए लैपटॉप,टैबलेट आसानी से चार्ज हो जाते जो आज की तारीख में बिजली के अभाव में बंद पड़े हैं ।
उत्तरप्रदेश में बिजली,सड़क,कानूनव्यवस्था,भ्रष्टाचार, सरकारी भर्तियों में धांधली ,जातिवाद,जैसे प्रमुख मुद्दों पर अखिलेश सरकार पूरी तरह नाकाम है।आज प्रदेश की गिरती कानून व्यवस्था,बिजली की भारी कमी,एवं जर्जर सड़कों के कारण निवेश आना संभव नहीं है।प्रदेश में उद्योग धंधो की संख्या अन्य राज्यों की तुलना में अत्यंत नगण्य है।प्रदेश में रोजगार की भारी कमी के चलते लाखों युवक पलायन पर मजबूर है।
आखिर किस विकाश की बात कर रहे है सीएम अखिलेश। पिता की नसीहतों को दरकिनार करके बड़ो ,पुराने सहयोगियों,नेताओ का अपमान करके ,अयोग्यचापलूसों ,गुंडों को पार्टी में बड़े पद देकर अखिलेश जी किस समाजवाद को बढ़ावा दे रहे है।
नेता जी की अखिलेश से यही उम्मीद है की वे पार्टी को साथ लेकर चले,अपना दिल बड़ा करे,सभी का सम्मान करें ,साथ ही प्रदेश की जनता के साथ न्याय करे।क्या पिता के मन की बात को सीएम अखिलेश समझेंगे या अलग राह चुनेंगे?
अभय सिंह
राजनैतिक विश्लेषक