वाजपेयी,आडवाणी के दौर में बीजेपी ने हमेशा मेनका एवं वरुण गांधी को प्रमुखता दी।राजनाथ सिंह ने वरुण को महासचिव पद देकर संगठन में पर्याप्त महत्व दिया।
लेकिन लोकसभा चुनाव2014 की मोदी लहर में वरुण गांधी ने अपनी चुनावी सभाओं में मोदी का जिक्र तक नहीं किया इतना ही नहीं उन्होंने कोलकाता में मोदी की सभा में जुटी लोगो की संख्या पर कटाक्ष किया।
मोदी सरकार बनने के बाद मेनका गांधी को कैबिनेट मंत्री बना कर उनके महत्व को बरकरार रखा गया लेकिन वरुण के तेवर नेतृत्व के प्रति रूखे रहे ।शाह के बीजेपी अध्यक्ष बनने के बाद तल्खी और बढ़ी।फलस्वरूप शाह ने उन्हें महासचिव पद से मुक्त कर दिया।
अनेक सर्वे के बाद वरुण गांधी यूपी में सीएम पद के लिए संघ और बीजेपी की पहली पसन्द थे।लेकिन मोदी,शाह से बिगड़ते सम्बन्ध, कांग्रेस से लगाव,भाईचारे ने उनकी उनकी लुटिया डुबो दी।बीजेपी के इलाहाबाद में राष्ट्रीय अधिवेशन में उनकी बचकानी हरकतों की वजह से वे शाह के निशाने पर आ गए ।परिणामस्वरूप यूपी चुनाव में वरुण का पत्ता साफ़ कर दिया गया।
शाह और मोदी की वरुण गांधी से हमेशा अपेक्षा रही की वो गांधी परिवार,और कांग्रेस पर मुखर रहे लेकिन इसके उलट वरुण राहुल गांधी से मेलमिलाप करते दिखे कई कांग्रेस के नेताओं से उनकी गलबहियां छुपी नहीं है।
वरुण के सामने असमंजस है की कांग्रेस उनको कभी स्वीकार नहीं करेगी और बीजेपी में वो सहज नहीं है।बेहतर यही होगा की वो अलग पार्टी बनाएं लेकिन उन्हें अमर सिंह से जरूर सीख लेनी होगी।