लागी तुझसे लगन( कलर्स चैनल) की नकुषा( जिसे जान-बूझकर बहुत ही कुरुप दिखाकर सामाजिक सच बतान के दावे किए गए थे) नच बलिए 5 की डांस फ्लोर पर बतौर प्रतिभागी मौजूद है. उधर दीया और बाती हम( स्टार प्लस) के संध्या और सूरज अतिथि के रुप में शामिल किए गए.
गौर करें तो टीवी सीरियलों के उन किरदारों की लंबी फेहरिस्त है जो पहले अपनी किसी खास भूमिका में रहकर दर्शकों के बीच पहचान बनायी और फिर एक-एक करके रियलिटी शो में शिफ्ट होते चले गए.
दूसरी तरफ रियलटी शो से पहचान बनाकर बाद में लाफ्टर शो, डांस और गानों पर आधारित शो के जज बन गए. ललिया(अगले जनम मोहे बिटिया ही कीजौ) का रतन का स्वयंवर में और राहुल महाजन का बिग बॉस से छोटे मियां का जज के रुप में जाना ऐसा ही उदाहरण है.
टेलीविजन के भीतर अगर ऐसी परंपरा तेजी से बनती जा रही है कि अगर आपने एक बार अपनी पहचान बना ली तो फिर कुछ भी परफार्म कर सकते हैं, इसमें गलत क्या है ?
देखा जाए तो इसमें गलत कुछ भी नहीं है. हर किरदार और शख्स को हक है कि वो अपना नफा-नुकसान देखकर काम करे. लेकिन फिर चैनलों के उन दावों का क्या कीजिएगा जहां वो देशभर में भटक-भटककर डांस और गाने की प्रतिभा खोजने और उसे एक मंच पर लाकर प्रतियोगिता कराने की बात करता है. अगर ये एक तरह से तय है कि टीवी पर एक बार कोई पॉपुलर हुआ नहीं कि उसके भीतर तमाम तरह की प्रतिभाएं( डांस करने से लेकर गाने और कॉमेडी करने तक की) आ जाती है तो फिर लोगों के बीच ये पाखंड रचने की कोशिश क्यों कि देशभर की प्रतिभाएं चैनल की नजर से गुजरकर हम तक आती है ?
क्या ये समझना मुश्किल है कि राहुल महाजन का छोटे मियां में जज बनना और नकुषा का नच बलिए 5 में शामिल होना जितनी चुटकी का खेल है, उससे कई गुना मुश्किल एक सामान्य शख्स को ऑडिशन भर तक पहुंचना है.
दूसरा कि चैनल पहले से अर्जित पॉपुलरिटी को ऐसे रियलिटी शो में शामिल करके दूहना चाहते हैं, उनमें गुणवत्ता का सवाल कहां तक सही अर्थों में रह जाता है ? ये कौन नहीं जानता कि जितने किरदार ऐसे रियलिटी शो में शामिल होते हैं, सबके सब न तो अच्छे गायक होते हैं और न ही अच्छे डांसर. केबीसी विजेता सुशील कुमार ने झलक दिखला जा में डांस के नाम पर क्या किया, ये हममे से कितनों से छिपा है ?
मामला साफ है कि चैनल टीवी के पॉपुलर चेहरे को ओवरऑल एक परफार्मर या इंटरटेनर में तब्दील करना चाहता है और कर भी रहा है. उसे जो मन आए करे लेकिन उसे देशभर का डांस मुकाबला, गाने का महामुकाबला करार देना कहां तक सही है ?
आरक्षण से आए ये टीवी कलाकार और सामान्य शख्स के बीच घुड़दौड़ कराने की क्या जरुरत है या फिर उन्हें अलग करके भी ऐसी इमेज बनाने का क्या तुक है ? (मूलतः तहलका में प्रकाशित)
(विनीत कुमार- युवा मीडिया समीक्षक, टीवी कॉलमनिस्ट( तहलका हिन्दी) और मंडी में मीडिया किताब के लेखक.)