साल 2007-08 में दिल्ली मेट्रो की सीढ़ियों से उतरते हुए आपने गौर किया होगा कि चारों तरफ दैत्याकार किऑस्क लगे हैं जिनमे न्यूज़ चैनल की माइक से रोशनी निकल रही है..आपको उस वक्त समझने में थोड़ी दुविधा भी हुई होगी कि ये किसी बैटरी का विज्ञापन है या टॉर्च का..लेकिन नीचे की पंचलाइन पर नज़र जाते ही आप समझ जाते हैं कि ये न्यूज़ 24 नाम से बीएजी प्रोडक्शन की ओर से लांच किए जा रहे न्यूज़ चैनल का विज्ञापन है.
न्यूज़ मीडिया का ये वो दौर रहा है जब क्या एलियन गाय का दूध पीते हैं टाइप से चैनल पाट दिए गए थे..इस बीच ये चैनल खबर के दावे के साथ हमारे बीच आया..इसमें आजतक से छिटके और कुछ निकाल-बाहर किए गए दिग्गजों ने मिलकर एक टीम बनायीं थी और एस पी सिंह के दौर की पत्रकारिता की यूटोपिया रचने में लग गए थे…आगे अनुराधा प्रसाद की बंटाधार एंकरिंग नामा और चालीसा पत्रकारिता से इस चैनल का क्या हुआ,हम सब जानते हैं.
अब 2015 में इसी पंचलाइन से पूरे दिल्ली शहर को पाट दिया गया है और इसे देखने के लिए मेट्रो की सीढ़ियों से उतरने की नहीं,चढ़कर और कई बार गर्दन उचकाकर देखने की ज़रूरत पड़ती है. इस बार न्यूज़ वापस लाने का कारनामा इंडिया टुडे नाम का वो चैनल करने जा रहा है जिसका पुराना नाम हेडलाइंस टुडे हटाकर पत्रिका के नाम पर रखा गया है.
अलग से कहने की ज़रूरत नहीं कि news is back ये पंचलाइन चैनल ने न्यूज़ 24 से मार ली है. लेकिन यहाँ सवाल कुछ और हैं. हर साल-छह महीने में किसी न किसी चैनल को विज्ञापन की शक्ल में खबर की वापसी के नगाड़े पीटने की ज़रूरत पड़ती है, न्यूज़ मीडिया के लिए इससे बकवास बात और क्या हो सकती है..आपको अपने ही पहले के काम का मजाक उड़ाने की ज़रूरत पड़ जाए, डिमीन और पूरी तरह रिजेक्ट करने की ज़रूरत पड़ जाए,इससे खराब बात और क्या हो सकती है. आपको 10-12 साल में अपने पुराने नाम के चैनल की कोई ऐसी स्टोरी इतनी दमदार नहीं लगती है कि आप उसकी दम पर ब्रांडिंग कर सकें तो इससे ज़्यादा दुर्भाग्य की बात और क्या हो सकती है?
रही बात सर्कस के बंद हो जाने की तो बिना मदारी के बदले, सर्कस कभी बंद हो सकते हैं क्या ? …और एक-दो मदारी की जगह एंकर जुटा भी लिए गए हैं तो इससे सर्कस की क्वालिटी बेहतर हो सकेगी, चैनल की तो हरगिज नहीं…आखिरी बात,चैनल जिस तरह से सर्कस का मज़ाक उड़ा रहा है,कभी उसकी प्रोफेशनलिज्म पर गौर करे तो अफ़सोस ही होगा कि काश हम भी ऐसा कर पाते.
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