विष्णुगुप्त
यह क्या चौथा खंभे का हस्र हुआ
यह क्या चौथा खंभे का पतन हुआ
यह क्या चौथा खंभे का अनैतिकरण हुआ
यह क्या चौथा खंभे का अपसंस्कृतिकरण हुआ
यह क्या चौथा खंभे अमानवीयकरण हुआ
यह क्या चौथा खंभे का अपराधीकरण हुआ
यह क्या चौथा खंभे का परसंप्रभुताकरण हुआ
खबर बनाने वाले ही खबर बन गये
सनसनी फैलाने वाले ही सनसनी के शिकार बन गये
स्किन पर चमकने वाले ही कब्र बन गये
स्टिंग के शिकारी ही शिकार बन बन गये
नैतिकता का पाठ पढ़ाने वाले ही अनैतिक बन गये
सदाचार-भष्टाचार का पाठ पढ़ाने वाले ही दुराचरी- भ्रष्टाचारी बन गये
महिला सम्मान की बात करने वाले ही बलात्कारी बन गये
स्टिंग आपरेशन से जेल कोभिजवाने वाले ही जेल के अपराधी बन गये
सत्य-अहिंसा का झंडा ढोने वाले ही लहू और आबरू के कातिल बन गये
यह कैसी हवस की आग है
आदमी नहीं हैवान-जानवर है
दोस्त की बेटी को भी बेटी न समझा
स्वयं की बेटी के दोस्त को बेटी न समझा
सहयोगी-कर्मयोगी की इज्जत को इज्जत न समझा
जिसको खिलाया गोद में उसको ही बना दिया हवस का शिकार
न चैथे खंभे की लाज
न लोकलाज का डर
न संपादक पद की गरिमा खोने का डर
न स्वयं के परिजनों की नजरों में गिरने का डर
न पुलिस परीक्षण-जांच का डर
न न्यायालय की सजा का डर
न जेल की चाहरदीवारी में जलालत भोगने का डर
न स्टिंग-पर संप्रभुता कीकमाई खोने का डर
हिंसक-दुराचरी, कुचक्रवादी, भ्रष्टाचारी बलात्कारी के पास कलम ही क्यों थी
संपादक जैसी कुर्सी इनके पास क्यों थी
चौथा स्तंभ के वे कैसे और क्यों बन गये महारथी
मीडिया के चमकते सितारे क्यो बन गये
ये प्रेरक और आदर्शवादी मीडिया शख्यियत क्यों बन बैठे
जिन्हें जेलों में रहना था वे स्क्रीन के स्टार हुए क्यों
हजारों करोड़ों के मालिक ये बने क्यों
कहां से आता है इनके पास कुचक्र-हिंसकवादी रकम
आज संपादक -पत्रकार के खोल में कोई वीरप्पन है
आज संपादक-पत्रकार के खोल में कोई नीरा राडि़या है
आज सपंादक-पत्रकार के खोल में ओसामा बिन लादेन है
आज कोई संपादक-पत्रकार के खोल में ए राजा है
आज कोई संपादक पत्रकार के खोल में फई है
आज कोई संपादक पत्रकार के खोल में आईएसआई है
चंद रूपये के टुकड़ों के लिए
विदेश के दौरों के लिए
पंचसितारा संस्कति के भोग के लिए
अपसंस्कति के वाहक बनने के लिए
एनजीओ फंड के लिए
कारपोरेटेड लाभ के लिए
नेताओं की चमचागिरी के लिए
ईमान बेचते है
जमीर बेचते हैं
देश बेचते हैं
परिवार बेचते हैं
गरीबों के भावनाएं बेचते है
किसानों की तकदीर बेचते हैं
हम भी कम दोषी हैं नहीं
हम असलियत जान कर भी चुप थे क्यों
हमारी कान-आखें तब क्यों नहीं खुली
हम तब क्यो नही सजग हुए
चौथा स्तंभ की नैतिकता क्यों नहीं जागी थी
कहां थे चैथे स्तंभ के पैरबी कार
कहां थे सवैधानिक नियामक
क्यों नहीं गरजी इन पर नैतिकता और विश्वसनीयता की आवाज
क्यों नहीं गरजी इन पर प्रेस परिषद की संहिताएं
क्यों नहीं गरजी आयकर विभाग की संहिताएं
क्यों नहीं गरजी इन पर रिजर्व बैंक के विदेशी मुद्रा नियमन की व्यवस्था
क्यों नहीं गरजी इन पर संसदीय संहितांओं की व्यवस्थाएं
शर्मसार ये कहां हुए
शर्मसार हुई कलम
शर्मसार हुई संपादक की कुर्सी
शर्मसार हुई चैथे खंभे की विश्वसनीयता
कलम के दुराचारियों ने नैतिकता बार-बार बाजार में बेचा
रूपये के चंद टुकड़ों के लिए इंसानियत को बार-बार दफनाया
महिला आबरू का ढाल बना कर सत्ता-नौकरशाही तक जाल फैलाया
महिला आबरू की रिश्वत खिलायी थी
महिला आबरू की रिश्वत खिलाकर नैतिकता की कब्र फैलाया
महिला आबरू का रिश्वतखोरी करना क्या अपराध नहीं था
स्टिंग के लिए न्याय और परम्परा की कि थी हत्या
तोड़-मरोड़ कर फंसाया था
साजिशों के दुष्चक्र को चक्र बनाया था
अभावग्रस्त संघर्ष से निकली आवाज को दफनाया था
फिर भी ये विश्वासी हो गये
क्योकि इनके साथ थी सत्ता
इनके साथ थी देशतोड़क हथकंडा
इनके साथ थी विरोधी देशो के पैसों की शक्ति
इनके साथ थी आईएसआई
इनके साथ थे धर्मनिरपेक्षता के गिरोह
सत्ता और देशद्रोही शक्ति का ही कमाल है
अखबार, मैगजीन और चैनल इसका प्रतिफल है
गुमान, अंहकार और पाप लबालब भरा था
सभी को अपने मुट्ठी में कैद करने का भ्रम था
भ्रम टूटते हैं
अहंकार दफन होते हैं
अराजकता पर नियति का भी डंडा चलता है
आत्म विश्वास-स्वाभिमान के सामने टूटता है शक्ति का भ्रम
अराजक -सत्ता शक्ति की नजदीकी होने का गरूर टूटा
बच निकलने का पैंतरेबाज तिलस्म टूटा
काम न आया पद का लालच
काम न आया पैसे का लालच
काम न आया भय और उत्पीड़न का हथकंडा
काम न आया पर्सनालिटी लांक्षित कराने का पैंतरा
सब बिकाउं नहीं होते
सब डरपोक नहीं होते
सब चुपचाप अपराध सहनेवाले नहीं होते
सब कैरियर के लिए समझौतावादी नहीं होते
सलाम उस चैथे खंभे की सेनानी को
जिसने सरेआम चैथे खंभे के खोलधारियों को दिखाया उसका असली चरित्र
समाज और देश के सामने किया नंगा
पुलिस और न्याय व्यवस्था की परीक्षण का हथकडी पहनाया
सत्ता-मीडिया का गठजोड़ को किया पर्दाफाश
घाटे पर घाटे
घाटे एक-दो करोड़ नहीं
सैकड़ों-हजारों करोड़ का
फिर भी तललका रेंगता क्यों
किस पैसे और किस सहायता से
माहरे-और कठपुतलियां बनने का ही कमाल है
पकड़ो गर्दन ऐसे फर्जी मीडिया मोहरे-कठपुतलियों का
पकड़ों गर्दन ऐसे मीडिया दुराचारियों-बलात्कारियों का
अगर नही ंतो फिर चैथे खंभा होने का गर्व कैसा
तुम भी हो जाओगे दफन
जैसे राजनीति
जैसे न्यायपालिका
फिर कैसा चौथा स्तंभ
(लेखक विष्णुगुप्त हिन्दी के वरिष्ठ पत्रकार हैं और इन्होंने मीडिया भ्रष्टाचार पर अनेका-नेक टिप्पणियां लिखी हैं। इनसे 09968997060 नबंर पर संपर्क स्थापित किया जा सकता है।)