तारिक फतेह के साथ मारपीट हुई यह दुखद है, लेकिन उससे ज्यादा दुखद यह है कि इसकी सूचना अभिव्यक्ति की आजादी वाली गैंग बांट रही है। वह भी मजे लेकर। हंसते खिलखिलाते हुए। भला हुआ। बड़ा अच्छा हुआ। यह नफरत फैला रहा था। इसको जवाब मिल गया।
तो लिबरल जिहादियों का फरमान मान लिया जाए कि तारिक फतेह जैसे “पाकिस्तानी” नफरत फैलाते हैं और जाकिर नाईक जैसे “हिन्दुस्तानी” प्यार का दरिया बहाते हैं?
हिन्दुस्तान के पाकिस्तान परस्त मुसलमानों की तारिक फतेह से नफरत जग जाहिर है। एक बीमार समुदाय में भला चंगा आदमी बीमार न घोषित किया जाए तो भला वे खुद को निरोग कैसे घोषित करेंगे लेकिन ताली बजाने से पहले यह तो देख लेते कि जिसने तारिक फतेह के साथ मारपीट की है वह कौन है? एक कश्मीरी नौजवान अगर तारिक को मारकर सच्चा हिन्दुस्तानी बन जाता है तो हम उसका स्वागत करेंगे लेकिन क्या वह ऐसा करेगा?
तारिक फतेह पर यह हमला अभिव्यक्ति की आजादी पर हमला तो नहीं है क्योंकि तारिक पंजाबी नस्ल का बंदा है, इतने से हार नहीं मानेगा लेकिन उनका मानसिकता दिवालियापन जरूर है जो खुश होकर ताली बजा रहे हैं।
(पत्रकार संजय तिवारी के फेसबुक वॉल से साभार)