तारकेश कुमार ओझा
जीवन में पहली बार स्टिंग की चर्चा सुनी तो मुझे लगा कि यह देश में धर्म का रूप ले चुके क्रिकेट की कोई नई विद्या होगी। क्योंकि क्रिकेट की कमेंटरी के दौरान मैं अक्सर सुनता था कि फलां गेंदबाज गेंद को अच्छी तरह से स्विंग करा रहा है या पिच पर गेंद अच्छे से स्विंग नहीं हो रही है वगैरह – वगैरह। लेकिन चैनलों के जरिए समझ बढ़ने पर पता चला कि यह स्टिंग तो भेद पाने का नया तरीका है। शुरूआती दौर में कई अच्छे – भले राजनेताओं को कमबख्त इसी स्टिंग की वजह से सुख – सुविधा भरी दुनिया छोड़ कर घर बैठ जाना पड़ा। समय के साथ स्टिंग लगातार जारी रहे, लेकिन कुछ सच्चे तो कुछ झूठे साबित हुए। आलम यह कि इस स्टिंग की वजह से हम जैसे कलमघसीटों को नेताओं से काफी लानत – मलानत झेलनी पड़ी। मिलते ही नेता लोग सवाल दागने लगते… भैया कुछ स्टिंग वगैरह तो नहीं कर रहे हो ना … आप लोगों का क्या भरोसा… पता नहीं कलम की नोंक या बटन में कैमरा छिपा कर लाए हो…। नए दौर में कुछ राजनेता अपनी सभाओं से जनता को भ्रष्टाचार पर स्टिंग करते रहने को लगातार प्रेरित करते रहे।
लेकिन आश्चर्य़ कि भ्रष्टाचार पर कोई स्टिंग तो सामने नहीं आया , अलबत्ता इसकी सलाह देने वालों के धड़ाधड़ स्टिंग चैनलों पर छाने लगे। कोई कह रहा है … मेरे पास दस और स्टिंग है तो कोई इसकी संख्या तीस बता रहा है। दूसरी ओर जनता को भ्रष्टाचार पर स्टिंग की नेक सलाह देने वाले ने सत्ता मिलते ही एेसी चुुप्पी साधी कि हमें स्वर्ग सिधार चुके एक काल – कवलित राजनेता की याद हो अाई। जिन्होंने कुछ साल पहले उत्तर प्रदेश की धरती पर एेलान किया था कि जब तक यहां उनके दल की सरकार नहीं बन जाती, वे दिल्ली नहीं जाएंगे। लेकिन सभा खत्म होते ही वे दिल्ली के लिए उड़ गए। जो जनाब अखबारों ही नहीं समाचार चैनलों पर भी बस बोलते ही रहते थे। मुख्यमंत्री बनते ही एेसी चुप हुए कि आज उन्हें ले कर ही स्टिंग पर स्टिंग के दावे हो रहे हैं, लेकिन श्रीमानजी ने मानो जुबान पर जैसे टेप ही चिपका लिया है…। तो हम बात कर रहे थे कि क्रिकेट के स्विंग की तरह राजनीति के स्टिंग की तो अरसे से इसका बाजार भाव एकदम गिरा हुआ था। जिस स्टिंग पर मीडिया बनाम राजनेताओं की मोनोपोली या यूं कहें कि एकाधिकार था। वह समय के साथ गली – मोहल्लों में पांव पसारने लगा। नारद मुनि की छवि रखने वाले मेरे एक मित्र दोस्तों के बीच गप्पें मारने के दौरान अक्सर किसी अनुपस्थित दोस्त की चर्चा छेड़ देते, और मानवीय कमजोरी के तहत अगला जब उसके बारे में कुछ बोल बैठता तो उसे मोबाइल पर टेप कर संबंधित को सुनाते हुए अपने साथ ही दूसरों के भी मनोरंजन की व्यवस्था करता। यह उसकी आदत सी बन गई थी।
बहरहाल राजधानी दिल्ली के हालिया स्टिंग पुराण ने इसका बाजार भाव एकदम से आसमान पर पहुंचा दिया है। क्योंकि चैनलों पर रात – दिन इसी से जुड़ी खबरें दिखाई – सुनाई देती है। जब भी टीवी खोलता हूं, वहीं गिने – चुने चेहरों को बहस करते देखता हूं। नीचे ब्रकिंग न्यूज की पट्टी … एक औऱ स्टिंग का दावा… फलां ने फलां स्टिंग को झूठा करार दिया। फिर पर्दे पर कुछ चेहरे उभरते हैं … सुनाई पड़ता है – अगर आरोप साबित हो जाए तो मैं राजनीति से संन्यास ले लूंगा… एक और चेहरा … स्टिंग तो सोलह आना सही है… स्टिंग करना हम भी जानते हैं… तभी एक और ब्रेकिंग न्यूज… फलां ने एक और स्टिंग का दावा किया…। आश्चर्य कि सभी स्टिंग में उसी की आवाज जो खुद दूसरों को स्टिंग की प्रेरणा देता था। क्या देर रात और क्या तड़के। इससे सोच में पड़ जाता हूं कि स्टिंग प्रकरण के चलते चैनल वालों के साथ क्या नेताओं ने भी खाना – सोना छोड़ दिया है। बहरहाल इतना तो तय है कि जो हैसियत क्रिकेट में स्विंग की है, तकनीकी ने लगभग वैसी ही स्थिति राजनीति में स्टिंग की बना दी है। जो भविष्य में पता नहीं किस – किस की गिल्लियां बिखेरेगी।
(लेखक पत्रकार हैं)