अतुल चौरसिया
मेरा दो नजदीकी आमना सामना सुनंदा पुष्कर से हुआ था. एक बार जब आईपीएल में उनकी स्वेट इक्वटी को लकर बवाल मचा था तब की घटना है. पूरे हिंदुस्तान का मीडिया उन्हें ढूंढ़ रहा था. आखिर जिस पुष्कर की बात ललित मेदी ने ट्विटर पर की है वे कौन हैं, कहां है. तब सुनंदा पुष्कर तहलका के दफ्तर में मौजूद थीं. हमेशा की तरह हम लोग एक बड़े स्कूप वाली स्टोरी (जैसा की तहलका की छवि है) मानकर इस राज को जज्ब किए हुए थे. किसी को खबर नहीं कि जिस सुनंदा को दुनिया खोज रही है वो पूरा दिन हमारे दफ्तर में मौजूद थी. निहायत ही खूबसूरत और तौल-तराश कर बोलने वाली जुबान. मित्र शांतनु गुहा रे के साथ हम इस गुफ्तगू में तल्लीन थे कि काश तहलका टीवी चैनल होता तो आज दुनिया तहलका की नजरो से सुनंदा को देखती पर अफसोस कि हम पीरियॉटिकल्स हैं. खैर वो दिन बीत गया, दरअसल हमें भी तभी पता चला की कोई सुनंदा पुष्कर है और शशि थरूर की करीबी हैं. इसके बात साल 2011 के नवंबर महीने में एक बार फिर से सुनंदा से आमना सामना हुआ. यह गोवा की बात है. तब तहलका ने पहला थिंक फेस्ट आयोजित किया था. गजब का जोश था. वहां सुनंदा भी थी पूरे तीन दिन, शशि थरूर के साथ. हम कभी दूर-कभी पास से इस इस सेलीब्रेटी जोड़े का आकलन अपनी औकात भर करते रहे. एक निष्कर्ष हमारे बीच निकला कि यार ये किस तरह के रिश्ते होते हैं, जिनमें पति-पत्नी के सहज कसाव की जगह फोटो ऑप की संभावनाएं ज्कीयादा तलाशी जा रही थीं. एक नतीजा यह भी रहा कि सुनंदा, शशि के पीआर की भूमिका में थीं. खैर ये हमारी नासमझ अक्ल के आकलन थे, अहम बात है कि सीधा संपर्क भी सुनंदा से नहीं हुआ था इसलिए हम आकलनबजियों में ही व्यस्त रहे. और आज वो अजीबो गरीब हालत में दुनिया छोड़ गई. क्षणभंगुरता में आस्था फिर से प्रबल हो गई.
(लेखक तहलका के दिल्ली ब्यूरो के प्रमुख हैं. उनके एफबी वॉल से साभार)