चैनलों ने कभी सोचा भी नहीं होगा कि जिस दिल्ली में विपक्ष मर गया, वहां इतने छप्पर फाड़ मुद्दे मिलेंगें..आप एंकर्स की बॉडी लैंग्वेज पर गौर करें,लगेगा गाँव की कब्ज़ाई ज़मीन वापस मिल गयी. जब खबर भी पार्टी ही दे,स्टिंग भी पार्टी ही करे, स्कूप भी वही क्रिएट करे तो अब चैनल को क्या चाहिए..ये आपके लिए जनता और उसकी भावना के ठगे जाने का दौर भले ही हो लेकिन मीडिया स्टूडेंट के लिए टीवी पत्रकारिता का एक नया अध्याय है
मीडिया के लिए ये जश्न और टीआरपी बटोरने भर का दौर नहीं है,(हालांकि टीवी के धंधे में अब trp बहुत पीछे छूट गयी चीज है),अफ़सोस करने की बात है कि जिस स्टिंग ऑपरेशन को उसने एक बेहतरीन औज़ार के तौर पर लाया और बाद में इसके जरिए धंधे पर उतर आए, उसे कैसे राजनीतिक पार्टी ने उससे छीनकर झुनझुना बना दिया.स्टिंग ऑपरेशन का भारतीय मीडिया के सन्दर्भ में लिखा जाएगा, उसमे ज़्यादा पन्ने राजनीतिक दलों की ओर से की गयी स्टिंग की होंगे,उसके बाद मीडिया के इसके जरिए की जानेवाली दलाली की और सबसे कम पन्ने इसके उजले पक्ष के.
(स्रोत – एफबी)