‘इस प्यार को क्या नाम दें’ की खुशी से मशहूर हुई सनाया इरानी की वापसी अब सोनी टीवी पर मार्डन बहू ‘छनछन’ से हुई है. एनआरआई बहू खुशी बनने में जितनी मशक्कत सनाया को करनी पड़ी, उससे कम मेहनत छनछन यानी मार्डन बहू बनने में करनी पड़ रही है क्योंकि वो अपने स्वभाव से भी वैसी ही है. मीडिया को दिए इंटरव्यू में अपने स्वभाव के साथ मार्डन बहू की इमेज इमर्ज करने के पीछे संभव है व्यासायिक हित हो और दर्शकों को ये बताना भी कि कॉन्वेंट से पढ़ी बहुएं इसी तरह होती हैं, टिपिकल बहुए नहीं जो ओपनिंग सीन से ही तुलसी में पानी डालती नजर आती हैं. गौर करें तो ये सीरियल दिसंबर में जीटीवी पर शुरु हुए आज की हाउसवाइफ है, सब जानती है की प्रतिक्रिया में शुरु किया गया सीरियल लगता है. जहां पेशे से पत्रकार सोना शादी के बाद सबकुछ छोड़कर आदर्श पत्नी/बहू बनने में अपने को खपा देती है. छनछन इसके ठीक उलट करने जा रही है. वो शादी के पहले जितनी बिंदास, बोल्ड और मुंहफट है, शादी के बाद भी वैसी ही रहेगी.
शुरुआत के एपीसोड देखकर आपको एनडीटीवी इमैजिन के राधा की बेटियां कुछ कर दिखाएगी का ध्यान आएगा और कहानी का बड़ा हिस्सा सास बिना ससुराल का लेकिन बहनों के बजाय दोस्तों को चरित्र के रुप में शामिल करने से कहानी बदल जाती है. इन चरित्रों में फेमिनिज्म का वो फ्लेवर शामिल है जहां पितृसत्तात्मक समाज के प्रतीक लड़के को औकात दिखाने, अपने पैरों पर खड़े होने, बिना दहेज के शादी करने और सास के आगे छाती तानकर खड़े रहने को पिछले सास-बहू के बाकी सीरियलों से अलग दिखने के लिए काफी मान लिया गया है…एकबारगी तो ऐसी कोशिशें रोमांचित करती है और हम छनछन में सिमोन और वर्जिनिया के अक्स देखने लग जाते हैं लेकिन बहुत जल्द ही वो भगवानजी और राधा-वल्लभ की शरण में ऐसे गिरती है, रिश्वतखोर पुजारी के मंदिर में भगवान और बराबरी की चक्करघिन्नी में ऐसे उलझकर रह जाती है कि हम मार्डन बहू मतलब सोच के बजाय महज जीवन शैली के स्तर पर बिंदास स्त्री के रुप से आगे बढ़ नहीं पाते. तब आपको लगेगा कि एमटीवी रोडीज,स्पिटविल्लाज और लव,सेक्स और धोखा जैसे रियलिटी शो में शामिल लड़कियों को अगर बहू की शक्ल में दिखाया जाए तो वैसी ही दिखेगी, जैसी कि छनछन दिख रही है. सीरियल को क्रेडिट दी जानी चाहिए कि उसने टीवी की उस दुनिया और सास-बहू सीरियलों की स्त्रियों के बीच एक पुल बनाने का काम किया है.
इन सबके बीच छनछन की फैमिली यानी मायका कुछेक एपीसोड तक दिखाया जाता रहे तो एक दिलचस्प फैमिली कैरेक्टर से गुजरने का सुख दर्शकों को मिल सकेगा जहां पिता मार्डन आर्टिस्ट है, मां इतिहास की प्रोफेसर,भाई वाइल्ड फोटोग्राफर और छनछन खुद पेट लवर और ट्रेनर है. फैमिली कैरेक्टर के स्तर पर सीरियलों में ऐसी विविधता नहीं मिलती. लेकिन ये सब छनछन के बेटी होने तक ही है, बहू बनते ही सीरियल की पटकथा पहले से तय है और तब आप सवाल करेंगे- आखिर एक ही बहू को कितनी बार परिभाषित करोगे भाई ? आदर्श बहुओं को देखती अभ्यस्त आंखें इस मार्डन बहू में भी चालू पैटर्न खोजने में शायद ही वक्त लगाए. (मूलतः तहलका में प्रकाशित)
(विनीत कुमार- युवा मीडिया समीक्षक, टीवी कॉलमनिस्ट( तहलका हिन्दी) और मंडी में मीडिया किताब के लेखक.)