साहित्यकर्म और पत्रकारिता बेहद एवरेज स्किल-सेट यानी मामूली हुनर वाले काम हैं. भाषा की बुनियादी तमीज एकमात्र जरूरी क्वालिफिकेशन है और प्रैक्टिस से इसे हासिल करना मुश्किल नहीं है. बाकी चीजें, करते हुए सीखी जा सकती हैं. कोई भी कर सकता है ये काम. फेसबुक और सोशल मीडिया में लाखों लोग हैं, जो स्थापित पत्रकारों और साहित्यकारों से बढ़िया और असरदार लिख रहे हैं. टूट रहे हैं ढेर सारे मिथक और गिर रही हैं कई चमकीली मूर्तियां.
“मैं बताऊंगा, तब जाकर तुम जानोगे” वाले युग के अंत की शुरुआत हो चुकी है. सूचना के पहले स्रोत के तौर पर सोशल मीडिया के महत्व का लगातार बढ़ना, इस बदलते समय का सबसे महत्वपूर्ण संकेत है. अंतिम सत्य बताने की तो अब किसी भी औकात नहीं है. सब अपने-अपने हिस्से का सच ढूंढने में सक्षम हो रहे हैं.
स्वागत है 21वीं सदी के लोकतांत्रिक होते समय में.
(इंडिया टुडे के कार्यकारी संपादक दिलीप मंडल के फेसबुक वॉल से साभार)